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________________ मेवाड़ राज्य की रक्षा में जैनियों की भूमिका | १२१ ०००००००००००० ०००००००००००० सोमचन्द द्वारा किये जा रहे इन प्रयासों से चूडावत नाराज हो गये क्योंकि इन घटनाओं से उनका मेवाड़ की राजनीति में दखल कम हो गया था। मराठों के उपद्रवों को रोकने और उनके द्वारा मेवाड़ के छीने गये भाग को वापस प्राप्त करने के लिए सोमचन्द ने एक योजना बनाई, किन्तु इसकी पूर्ण सफलता के लिए चूडावतों का सहयोग आवश्यक था, अत: उसने रामप्यारी को भेजकर सलूम्बर से भीमसिंह को उदयपुर बुलवाया। इधर सोमचन्द ने जयपुर, जोधपुर आदि के महाराजाओं को मराठों के विरुद्ध तैयार किया । जयपुर व जोधपुर के सम्मिलित सहयोग से वि० सं० १८४४ की लालसोट की लड़ाई में मराठे पराजित हो गये । इस अवसर का लाभ उठाकर सोमचन्द ने मेहता मालदास की अध्यक्षता में मेवाड़ एवं कोटा की संयुक्त सेना मराठों के विरुद्ध भेजी । इस तरह निम्बाहेड़ा, निकुम्भ, जीरण, जावद, रामपुरा आदि भागों पर पुनः मेवाड़ का अधिकार हो गया। इधर सोमचन्द का ध्यान मेवाड़ के उद्धार में व्यस्त था तो उधर मेवाड़ की राजनीति में शक्तावतों का प्रभाव बढ़ जाने से चूडावत, सोमचन्द से अन्दर ही अन्दर नाराज थे। ऊपर से बे उसके साथ मित्रवत् रहते थे किन्तु अन्तःकरण से उसे मार डालने का अवसर देख रहे थे । वि० सं० १८४६ की कार्तिक सुदि ६ को कुरावड़ का रावत अर्जुनसिंह और चांवड का रावत सरदारसिंह किसी कारणवश महलों में गये, सोमचन्द उस समय अकेला था, दोनों ने बात करने के बहाने सोमचन्द के पास जाकर कटार घोंप कर उसकी हत्या कर दी। इस प्रकार अटल राजभक्त, लोकप्रिय, दूरदर्शी, नीति-निपुण एवं मेवाड़ राज्य का सच्चा उद्धारक सोमचन्द शहीद हो गया। बाद में उसके भाई सतीदास तथा शिवदास गांधी ने अपने भाई की हत्या का बदला लिया । मेहता मालदास मराठों के विरुद्ध मेवाड़ की सेना का नेतृत्व करने के सन्दर्भ में मेहता मालदास का उल्लेख ऊपर आ चुका है। इसे ड्योढ़ी वाले मेहता वंश में मेहता मेघराज की ग्यारहवीं पीढ़ी में एक कुशल योद्धा, वीर सेनापति एवं साहसी पुरुष के रूप में मेवाड़ के इतिहास में सदा स्मरण किया जायेगा। महाराणा भीमसिंह के राज्यकाल में मराठों के आतंक को समाप्त करने के लिए प्रधान सोमचन्द गान्धी ने जब मराठों पर चढ़ाई करने का निर्णय लिया तो इस अभियान के दूरगामी महत्त्व को अनुभव कर मेवाड़ एवं कोटा की संयुक्त सेना का सेनापतित्व मेहता मालदास को सौंपा गया । उदयपुर से कूच कर यह सेना निम्बाहेड़ा, निकुम्भ, जीरण आदि स्थानों को जीतती और मराठों को परास्त करती हुई जावद पहुंची, जहाँ पर नाना सदाशिवराव ने पहले तो इस संयुक्त सेना का प्रतिरोध किया किन्तु बाद में कुछ शर्तों के साथ वह जावद छोड़ कर चला गया। होल्कर राजमाता अहिल्याबाई को मेवाड़ के इस अभियान का पता चला तो उसने तुलाजी सिंधिया एवं श्रीभाऊ के अधीन पाँच हजार सैनिक जावद की ओर भेजे । नाना सदाशिवराव के सैनिक भी इन सैनिकों से आ मिले। मन्दसौर के मार्ग से यह सम्मिलित सेना मेवाड़ की ओर बढ़ी। मेहता मालदास के निर्देशन में बड़ी सादड़ी का राजराणा सुल्तानसिंह, देलवाड़े का राजराणा कल्याणसिंह कानोड़ का रावत जालिमसिंह और सनवाड़ का बाबा दौलतसिंह आदि राजपूत योद्धा भी मुकाबला करने के लिए आगे बढ़े। वि०सं० १८४४ के माघ माह में हडक्याखाल के पास भीषण भिडन्त हुई। मालदास ने अपनी सेना सहित मराठों के साथ घमासान संघर्ष किया और अन्त में वीरतापूर्वक लड़ता हुआ रणांगण में शहीद हो गया। मेहता मालदास के इस HEEN AUTTOD MASTI १ ओझा-राजपूताने का इतिहास, द्वितीय भाग, (उदयपुर) पृ० ६८६ । २ वही, पृ०६८७। ३ वही, पृ०६८७ ४ वीर विनोद, भाग-२, पृ० १७११ । ५ ओझा-राजपूताने का इतिहास, द्वितीय भाग (उदयपुर) पृ० १०११ । ६ शोध पत्रिका, वर्ष २३, अंक १, पृ० ६५-६६ । ७ ओझा-राजपूताने का इतिहास, द्वितीय भाग (उदयपुर), पृ० १८७-८८ । Si
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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