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________________ को शासन रक्षक देव और श्री पद्मावती माताजी को शासन रक्षिका देवी के रुप में स्थापित किया श्री पार्श्व पद्मावती देवी सदा जागृत है। और ८४ हजार देवीयों पर आधिपत्य रखती श्री पद्मावती माता को स्मरण करने के लिये सहस्त्र नाम स्तोत्र का उपयोग किया जाता है। किन्तु उनके १०८ नाम दर्शाने वाले पद्मावती अष्ठोत्तरशत नाम स्त्रोत्र का वर्तमान में बहुत प्रचलन है। इस स्तोत्र के नित्य प्रतिपाठ करने पर कष्ठो से छुटकारा मिलता है। निम्न श्लोक से उसके प्रभाव का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता है। "दिव्य स्तोत्र मिदं महासुख कर चारोग्य संपत्करम्। भूत प्रेत पिशाच दुष्ट हरणं पापौद्य संहारकम्।। अन्येन्यार्पित वांछितस्य निलयं सर्वाय मृत्युजंयम्। देव्या प्रीतिकरं कवित्व जनकं स्तोत्रं जगन्मंगलम्।। श्री पद्मावती देवी उस व्यक्ति पर विशेष प्रसन्न होती है जो भगवान श्री पार्श्वनाथ स्वामी का परम भक्त होता है। श्री पद्मावती देवी के मंत्रो की शक्ति का उपयोग परोपकार के लिये करना चाहिये। मंत्र शक्ति का उपयोग अन्यथा नहीं करना चाहिये। __मुनिद्वय के भावी कार्यक्रमों में श्री पार्श्वपद्मावती देवी के महापुजन को प्रधानता प्राप्त हुई है। और उनका लक्ष्य श्री पद्मावती माताजी की १०८ महापूजन पढ़ाने का है। • जिस समय शुभ कर्मा का उदय होता है उस समय मानव के जीवन में अनजाने कार्य भी लाभ-युक्त होते हैं। मानव जितना सोच नहीं सकता, कल्पना नहीं कर सकता उससे भी अधिक प्राप्त करता हैं। कीर्ति वैभव, सत्ता की जहाँ कल्पना भी न हो वहाँ भी उक्त वस्तुएँ चरणों में लौटने लगती हैं। • नयन, यह अंतर के भाव बताने वाला दर्पण है। चाहे जितना लुचा या कुटिल मानव धर्मात्मा बनने का ढोंग करे फिर भी उसके अंतर का प्रतिबिम्ब उसकी आँख में झलकता ही रहता है। कर्म ही सत्ता (प्रभाव) नही भोगनी पड़ी हैं? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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