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श्री पार्थपद्मावती माता का अपूर्व प्रभाव
श्री पार्श्व पद्मावती देवी तेइसवे तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ प्रभु की आधिष्ठायिका देवी है। वे न केवल जिन शासन की रक्षा करती है अपितु चमत्कारो के लिये भी प्रसिद्ध है।
श्री पद्मावती माताजी का दिव्य स्वरुप अवर्णनीय है। फिर भी परम्परागत उनके स्वरुप का जो वर्णन प्राचीन ग्रंथो में मिलता है। उसके अनुसार वे स्वर्णवर्णी अथवा रक्तवर्णी मानी जाती है। वे कुर्कुट सर्प की सवारी करती है। उनके चार भुजाएँ, तीन नेत्र और तीन सर्प फण है। उनके दाहिने दो हाथों में कमल और नागपाश है, बाये दोनो हाथों बीजोरा फल तथा अंकुश है। दिगम्बर ग्रंथो में वर्णित उनका स्वरुप भिन्न है।
श्री पद्मावती देवी के स्वरुप भेद की मान्यता काल प्रवाह के प्रभाव का फल हो सकती है। प्रागैतिहासिक काल से सम्बन्धित सिंधु घाटी के मोहन-जोदड़ों के खनन से प्राप्त श्री पद्मावती देवी की प्रतिमा प्राचिनतम मानी जाती है। श्री पद्मावती माताजी का आराधकों के लिये जो स्वरुप निश्चित है। वह इस प्रकार है। वे रक्तवर्णी है। वे कमलासन पर विराजित है। अपने मस्तक पर भगवान श्री पार्श्वनाथ को बिराजित किये है। वे प्रसन्नवदना है। वे कमल पाश, अंकुश, फल धारीणी है। आराधक उनके इसी स्वरुप को ध्यान में रखकर आराधना करता
श्री पद्मावती देवी सकल कल्याणकारी है। वे सभी जीवो को भय मुक्त करती है। वे अतिशय महिमा वन्त है इनकी एकाग्र चित्त से आराधना करने पर अनेक सिद्धियां प्राप्त होती है। श्री पद्मावती देवी की आराधना उपासना से जिन-प्रभसूरिजी को अनेक सिद्धियां प्राप्त थी उनकी सिद्धियां जग जाहिर है। उन्होने दिल्ली बादशाह मुहम्मद तुगलक के दरबार में अपनी अनेक सिद्धियों का प्रदर्शन किया था। यहाँ सिर्फ एक उदाहरण ही काफी है। एक बार उन्होने जल से भरा मिट्टी का घड़ा मंगवाया और अपने मंत्र प्रभाव से उसे अधर में टांग दिया फिर अपने डंडासन से मटकी फोड़ दी। घडा टुकडे टुकड़े हो कर गिर पड़ा लेकिन उसका जल ज्यों का त्यों अधर में ही रहा। यह देखकर सभी स्तब्ध रह गए।
श्री पार्श्वपद्मावती देवी सब आराधको के मन को आनन्दित करती है। श्री पार्श्वनाथ प्रभु की भक्ति करने वालो पर श्री पद्मावती देवी की विशेष कृपा रहती है। स्वप्न में भी उनके आशिर्वाद से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
श्री पद्मावती देवी लक्ष्मी और सौभाग्य देने वाली सम्पूर्ण विश्व को सुखी करने वाली, अपुत्रो को पुत्र देने वाली, अनेक प्रकार के रोगो को नष्ट करनेवाली, सभी पापों को क्षय करने वाली, वांछित फल प्रदान करनेवाली चिंतामणी के समान तीनो लोको की स्वामीनि भवावतारी
जब भगवान श्री पार्श्वनाथ स्वामी सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, अर्हत पदपर आरुढ हुए तो उन्होने चतुर्विध श्री संघ रुपी धर्म तीर्थ की रचना की और उस समय तीर्थंकर कल्प के अनुसार उन्हे शासन रक्षक देव और देवी की स्थापना करना आवश्यक था। इसलिये उन्होने श्री पार्श्वयक्ष
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जो अपने अंत:करण से यह मानता है कि मुझसे पाप हुआ है, वह पवित्र और निर्मल है। वे सर्वदा वंदना के पात्र है।
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