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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ- आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्म मिला। इससे ही मानसिक रोगियों के प्रति व्यवहार में मानवीय उपागम का प्रसार हुआ और उनके उपचार में निर्दयी व कठोर व्यवहार के स्थान पर नैतिक चिकित्सा (Moral therapy) पद्धति के महत्त्व को समझा जाने लगा। मानसिक रोगियों की नैतिक चिकित्सा का तर्कसंगत आधार अब यह माना जाने लगा है कि मानसिक रोगी, वास्तव में, एक प्रकार से सामान्य व्यक्ति ही होते हैं, परंतु उनका व्यक्तित्व कुछ कारणों से निर्बल व हीन होने के कारण Stress, मनोवैज्ञानिक व कठोर सामाजिक स्थितियों में शीघ्र ही टूट जाता है व छिन्न-भिन्न हो जाता है। अतः मानसिक रूप से ऐसे हताश व निराश रोगियों के नैतिक बल को जागृत व विकसित करने की अधिक मनोवैज्ञानिक आवश्यकता होती है। व्यवहारिक रूप में, नैतिक चिकित्सा पद्धति के फलस्वरूप अनेक रोगियों के जीवन में चमत्कारिक लाभप्रद परिवर्तन देखने में आया है। मानसिक रोगियों में नैतिक चिकित्सा के लाभकारी प्रभाव को समझकर इस तर्क के आधार पर आगे चलकर सामान्य व्यक्तियों के जीवन में भी मानसिक स्वास्थ्य अभियान का शुभारंभ हुआ। इसके अंतर्गत मनोचिकित्सकों ने मानसिक स्वास्थ्य रक्षा के नियमों की तरफ जन-साधारण का ध्यान केन्द्रित किया और यह बताने का प्रयास किया कि किस प्रकार एक व्यक्ति का व्यक्तित्व अमानुषिक व क्रूर व्यवहार से अस्तव्यस्त हो जाता है और जीवन में कभी-कभी अत्यधिक मनोवैज्ञानिक भय के कारण वह मनोविकृत भी हो जाता है। इस दिशा में कालीफॉर्ड बियर्स का कार्य विशेषतः उल्लेखनीय व प्रशंसनीय है। Jain Education International ब्रह्म का स्वरूप सत् व चित् होने के कारण स्थायी है, परंतु माया का स्वरूप अस्थायी अथवा चंचल है। इस दर्शन के अनुसार व्यक्ति के रूप में जब तक ब्रह्म, प्रकृति अथवा माया - लीन बना रहता है, तब तक व्यक्ति दुःखी ही रहता है। अतः व्यक्ति की दुःख से मुक्ति तभी संभव है, जब पुरुष की प्रकृति अथवा माया के लुभाने वाले स्वरूप से मुक्ति हो । अतः महर्षि कपिल ने, जो कि सांख्यदर्शन के रचियता हैं, ज्ञान के माध्यम से व्यक्ति को माया के लुभाने वाले छल व कपटी तथा क्षणिक रंगभरे रूप से अपने को मुक्त करने के लिए कहा है, जिससे वह प्रकृति (माया) के कारण उत्पन्न दुःखों तथा विकारों से छुटकारा पा सके। बौद्ध दर्शन का मनोचिकित्सा के प्रति दृष्टिकोण बौद्ध दर्शन के अनुसार संसार में दुःख है, दुःख का कारण तथा उसका निवारण भी है। इस दर्शन के महान रचयिता गौतम बुद्ध के अनुसार, संसार में दुःख के मूल कारण, व्यक्ति के स्वयं अपने राग, द्वेष और मोह हैं। इनके प्रभाव के कारण, जीवन में व्यक्ति अथक प्रयास करके पद, धन, सम्पत्ति व प्रतिष्ठा की प्राप्ति के लिए नित लालायित ही रहता है। परंतु इतना कुछ प्राप्त कर लेने पर भी जीवन में प्रायः उसे शांति की प्राप्ति नहीं होती। इस दर्शन के अनुसार, व्यक्ति के जीवन में स्थायी सुख व शांति की स्थिति केवल निर्वाण (Nirvana) से ही प्राप्त होती है, जिसका आधार सच्ची साधना होती है। प्राचीन भारतवर्ष में उपचार पद्धतियों के सूक्ष्म व सीमित उल्लेख के साथ-साथ यहां सांख्य दर्शन, योग-दर्शन व बौद्ध दर्शन के उपचार का वर्णन यहाँ केवल सन्दर्भ रूप में ही किया गया है तथा इनके प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य यहाँ यह स्पष्ट करना भी है कि इनका लक्ष्य तथा बल विशेषतः मानव का एक इकाई के रूप में ही उपचार पर रहा है। इनमें व्यापक रूप से, व्यक्ति के [ ३३ ] बियर्स येल विश्वविद्यालय के एक ऐसे स्नातक थे, जिन्हें स्वयं एक मानसिक रोगी के रूप में उस समय के तीन विभिन्न मानसिक चिकित्सालयों में अत्यधिक क्रूर व कठोर व्यवहार को सहना व भुगतना पड़ा, परंतु फिर भी जब उन्हें वहाँ एक सेवक का मैत्रीपूर्ण मृदु व्यवहार मिला, तब इसका उनके ऊपर अत्यधिक सुखद व स्वस्थ प्रभाव पड़ा और वे शीघ्र ही अपने आपको स्वस्थ व सामान्य अनुभव करने लगे। बीयर्स ने अपने मानसिक संस्थाओं के कुछ अनुभवों के आधार पर अपनी आत्मकथा A Mind That Found itselt लिखी और अपने व्यक्तिगत प्रयासों के द्वारा तथा शिक्षित व विचारशील व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त किया और मानसिक चिकित्सालयों में अनेक सुधार लाने के लिए उनका ध्यान आकर्षित किया। सांख्यदर्शन का मनोचिकित्सा का रूप -- इस दर्शन के अनुसार, सृष्टि की रचना में दो मूलभूत तत्त्वों का योगदान रहता है, ब्रह्म तथा प्रकृति। ब्रह्म सत् व चित् है तथा प्रकृति माया है। ब्रह्म रूप में पुरुष व माया के रूप में प्रकृति के मिलन से व्यक्ति की रचना होती है। For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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