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---यतीन्द्रसूरि मारक ग्रन्थ - आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्महै जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति किसी तीव्र प्रेरक या इच्छा दिखावटी तर्क प्रस्तुत करता है, बल्कि अपने वर्तमान निष्फल को छिपाने के प्रयास में उसके विपरीत व्यवहार करता है (हिल प्रयासों को भी न्यायोचित ठहराने का प्रयास करता है। उदाहरणार्थ गार्ड आदि १९७५)।
जब एक विद्यार्थी परीक्षा में फेल हो जाता है, तब प्रायः यही मनोविश्लेषणवादी विचारधारा के अनुसार, एक व्यक्ति
कहते सुना जाता है कि पेपर बहुत कठिन थे, उत्तर पुस्तिका के के व्यवहार में कभी-कभी ऐसा देखने में आता है कि वह
जाँचने में जरूर कुछ गड़बड़ी हुई है, परीक्षाकाल में उसकी वस्तुतः कोई एक विशेष व्यवहार करना चाहता है, परंतु वह
तबीयत खराब थी और इन्हीं कारणों से वह परीक्षा में सफल वैसा न करके ठीक उसके विपरीत ही व्यवहार करते देखा जाता
नहीं हो सका, परंतु वह यह कभी स्वीकार नहीं करता कि मैंने है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति किसी एक व्यक्ति अथवा विषय के
परीक्षा में सफल होने के लिए आवश्यक परिश्रम नहीं किया। प्रति घृणा के स्थान पर प्रेम करने लगता है और प्रेम के स्थान
क्योंकि ऐसा कहने व मानने से उसके अहम् को गहरी चोट पर घृणा करने लगता है। वस्तुतः यहाँ व्यक्ति की ऐसी विपरीत
लगती है व उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी कम होती है तथा इस प्रतिक्रिया से ही उसका अहम् व समायोजन सुरक्षित रहता है।
आत्मस्वीकृति से उसकी अयोग्यता प्रत्यक्षतः सिद्ध होती है। जैसे जब एक कर्मचारी पर उसके बॉस (Boss) की नित अकारण
स्पष्टत: व्यक्ति इस कठोर व कटु स्थिति को कभी भी स्वीकार ही डाँट-फटकार पड़ती रहती है, तब ऐसी स्थिति में संबंधित
नहीं कर सकता। इस कारण वह अपने अहम् की रक्षा व सामाजिक अधीनस्थ कर्मचारी की स्वाभाविक प्रतिक्रिया अपने बॉस को
प्रतिष्ठा को बचाने के लिए अपने निष्फल प्रयासों पर पर्दा डालने उल्टी कड़ी डाँट-फटकार लगाने की भी होती है. परंत ऐसे का प्रयास करता है व लज्जा की वेदना से बचना चाहता है। व्यवहार के परिणाम को देखकर प्रायः वह ऐसा न करके ठीक युक्तीकरण के मुख्यतः दो रूप होते हैं-- इसके विपरीत बॉस के प्रति विनम्रता का ही व्यवहार करते देखा
(i) प्रथम, जिसके अंतर्गत व्यक्ति अपनी पसंद व नापसंद जाता है और निरंतर स्थिति को संभालते हुए अपने वास्तविक के अधिकार पर अपने व्यवहार का यक्तीकरण करता है, जैसे आवेगों व संवेगों को नियंत्रित व दमित कर लेता है। इस प्रकार
जब एक विश्वविद्यालय के प्रॉफसर से यह पछा जाता है कि वे
जब प्रतिक्रिया संरचना एक ऐसी रक्षायक्ति होती है, जिसके अंतर्गत
अपनी योग्यता के आधार पर एक I.A.S. आफिसर क्यों नहीं व्यक्ति अपने कष्टकर, संकट-सूचक व क्षति-जनक आवेगों व बने। इस प्रश्र के उत्तर में प्रोफेसर महोदय यह कहते हैं कि उन्हें भावनाओं को अचेतन में धकेल देता है और उनके स्थान पर आफिसर बनना पसंद ही नहीं था. तब उनका ऐसा यक्तीकरण उनके विपरीत भाव व व्यवहार को प्रदर्शित करने लगता है। इस
अपनी पसंद व नापसंद के आधार पर कहा जाता है। प्रकार यहाँ यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रतिक्रिया संरचना की रक्षायुक्ति का व्यक्तित्व के समायोजन में एक विशेष सीमा तक
(ii) द्वितीय प्रकार के युक्तीकरण के अंतर्गत व्यक्ति अपनी
विफलता के लिए बाह्य परिस्थितियों की कठोरता व क्रूरता को महत्त्वपूर्ण योगदान है।
दोषी ठहराता है। ४. युक्तीकरण (Rationalization) - जब व्यक्ति अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के प्रयास में वास्तविक कारण
इन दो मुख्य रूपों के अतिरिक्त, व्यक्ति की प्रतिक्रिया के के स्थान पर अवास्तविक कारणों के आधार किसी बात का आधार पर भी युक्तीकरण के दो और अन्य रूप होते हैं-- औचित्य सिद्ध करता है तो उस प्रक्रम को युक्तीकरण कहते हैं (i) अंगूर खट्टे हैं-इसके अनुसार जब एक व्यक्ति को मनपसंद कोलमैन, (१९७४) ने भी लिखा है कि इस विरचना में व्यक्ति लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती, तब वह उसमें अनेक दोष निकालकर अपने द्वारा किए जाने वाले कार्यों को (तों) के आधार पर अपने अहम् की रक्षा करता है। इस संबंध में लोमड़ी व मीठे उचित ठहराने का प्रयास करता है।
अंगलों की कहानी अति लोकप्रिय है। जंगल में एक ऊँचे स्थान युक्तीकरण की रक्षा-युक्ति से व्यक्ति न केवल अपने पर एक लोमड़ी सुन्दर, पके व मीठे अंगूरों के गुच्छे लटकते अतीत के अल्प व विफल प्रयासों के संबंध में ही बनावटी व
देखती है, लोमड़ी का मन अंगूरों को पाने के लिए अति लालयित
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