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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्य - इतिहासआत्मा की ओर उन्मुख कराने वाली शिक्षा ही उपादेय है, क्योंकि ४. नास्ति विद्या समं-चक्षुः। महाभारत, १२/३३९/६, गीताप्रेस, यही व्यक्ति को आत्मा को स्वतंत्र कराने की शक्ति प्राप्त कराती गोरखपुर ५. ज्ञानं तृतीयं मनुजस्य नेत्रं, समस्ततत्त्वार्थविलोचन दक्षम्। आत्मस्वातंत्र्य का यह भाव व्यक्ति में श्रेष्ठ गुणों का संचार शुभाषितरत्नसन्दोह पृष्ठ १९४, निर्णयसागर प्रेस, बंबई १९२६ करता है। वह अपनी शक्ति का सम्यक् उपयोग करता है। उसके अप्पाणं ठावइस्सामि ति अज्झाइयव्वं भवइ। दसवेआलियसुतं, समक्ष उसका लक्ष्य स्पष्ट रहता है और वह उसे प्राप्त करने के ९/४/४, मूलसुत्ताणि (कन्हैयालालजी कमल), आगम लिए एकाग्रचित्त होकर अपनी संकल्प शक्ति को दृढ़ बनाता है। अनुयोग प्रकाशन, वखतावरपुरा, सांडेराव (राजस्थान), वीर दशवैकालिक में शिक्षा के संबंध में कहा गया है २८- व्यक्ति संवत् २५०३ को शिक्षा द्वारा ज्ञान प्राप्त होता है। चित्त की एकाग्रता प्राप्त होती है। स्वयं एवं दूसरों को धर्म में स्थापित करने की क्षमता प्राप्त ७. एन.एन. मजुमदार-हिस्ट्री ऑफ एडुकेशन इन इन्सिएन्ट इंडिया, होती है। अनेक प्रकार के श्रुतों का अध्ययन किया जाता है पृ. ५८, मूल ग्रंथ उपलब्ध नहीं होने के कारण यह उद्धरण जिनके कारण व्यक्ति श्रुत-समाधि में रत हो जाता है। श्रत 'डा. निशान्द शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक 'जैन - वाङ्मय में समाधि में रत व्यक्ति विविध प्रकार की विद्याओं का ज्ञान प्राप्त शिक्षा के तत्त्व' (पृ. १६), वैशाली शोध संस्थान, वैशाली १९८८ के आधार पर दिया गया है। करता है। वह अपनी इस ज्ञान-क्षमता का प्रयोग हेय-उपादेय के निर्णय में करता है। इसमें सफल होकर सम्यक् प्रयास करके ८. अलब्रेट वेबर : द हिस्ट्री ऑफ इंडियन लिटरेचर, पृ. २०परम उपादेय को प्राप्त कर सर्वदुःखों से मुक्त हो जाता है। वह २२, चौखंभा संस्कृत सीरीज, वाराणसी-१९६१ सत-चित्-आनंद की अवस्था में रमण करने लगता है। उसके ९. स्वामी माधवानंद एवं रमेशचंद्र मजमदार-ग्रेट वीमेन ऑफ मन में सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया:' का भाव हिलोरें । इंडिया, पृ. ९५, अद्वैत आश्रम, मायावती, अल्मोड़ा १९५३ मारने लगता है। यही शिक्षा की ओजस्विता है और उद्देश्य की १०. छात्रादया: शालायाम् ,पाणिनि, ६/२/४७ पराकाष्ठा भी। . ११. ओघनियुक्ति, (द्रोणाचार्य), आ.वि.सू.जै. ग्रंथमाला, सूरत वैदिक एवं श्रमण वाङ्मय के इस अनुशीलन से हम इस । निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि वैदिक एवं श्रमण दोनों ही परंपराओं में १९५७, गाथा ६२२-६२३ नारी-शिक्षा की पर्याप्त एवं समुचित व्यवस्था थी। स्त्रियाँ जीवन १२. एफ.इ. की- इंडियन एडुकेशन इन इन्सिएन्ट एण्ड लेटर के प्रत्येक क्षेत्र में भाग लेती थीं। वे सफल गहिणी होने के इंडिया,पृ. ७८-७९ , आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, १९४२ साथ-साथ कुशल एवं परमविदुषी अध्यापिका भी होती थीं। वे १३.बहदारण्यक उपनिषद. ४/५/१ ललितकलाओं व ज्ञान -विज्ञान के विविध विषयों में निष्णात १४. की : इंडियन एडुकेशन इन एन्सिएन्ट एण्ड लेटर टाइम्स, प्रखर बुद्धि की धारिका होने के साथ-साथ आध्यात्मिक गुणों से पृष्ठ ७४ एवं ७९ सम्पन्न विवेकवान व्यक्तित्व की स्वामिनी भी होती थीं। १५. वही, पृ. ७५ संदर्भ १६. दीघनिकाय- १/९६, नालंदा देवनागरी पालि ग्रन्थमाला, १. सर्वं खल्विदं ब्रह्म। छान्दोग्य उपनिषद्, ३/१४/१, गीताप्रेस, बिहार, १९५८ गोरखपुर संयुत्तनिकाय ३/११, नालंदा देवनागरी पालि ग्रंथमाला, बिहार, २. शतपथ ब्राह्मण, ११/५,७, पूना संस्करण १९५९ ३. महापुराण (भाग-२), ३८/४३, अनु.-पं. पन्नालाल जैन, १७.अस्मिन्नगस्त्यप्रमुखाः प्रदेशे भूयांस उद्गीथविदो वसन्ति। भारतीय ज्ञानपीठ, काशी १९७१ तेभ्योऽधिगन्तुं निगमान्तविद्यां वाल्मीकिपादिहपर्यटामि। and-stariudriduod-ordeoduddidrordrobinirdnird-१४९idirandirbideoromotorioriritorionitoid-buildren Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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