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प्राचीन लक्ष्मण
वि
तीर्थ है। इस तीर्थ की
वर्णन करने चले हैं वह लक्ष्मणी प्राचीनता कम से कम २००० वर्षों से भी अधिक काल की सिद्ध होती है, जिसे हम आगे दिए गए प्रमाण - लेखों से जान सकेंगे।
क्रम की सोलहवीं शताब्दी के जिस तीर्थ का हम यहाँ
जब मांडवगढ़ यवनों का समराङ्गण बना था उस वक्त इस बृहत्तीर्थ पर भी यवनों ने हमला किया और मंदिरादि तोड़े, तब से ही इसके ध्वंस होने का कार्य प्रारंभ हो गया और क्रमशः विक्रमीय १९वीं शताब्दी में उसका केवल नाममात्र ही अस्तित्व रह गया और वह भी अपभ्रंश लखमणी होकर जहाँ पर भीलभिलालों के २०-२५ टापरे ही दृष्टिपथ में आने लगे।
१.
२.
३.
४.
एक समय एक भिलाला कृषिकार के खेत में से सर्वाङ्गसुंदर ११ जिन प्रतिमाएँ प्राप्त हुई। कुछ दिनों के व्यतीत होने के पश्चात् ११ प्रतिमाजी जहाँ से प्राप्त हुई थीं वहाँ से दो-तीन हाथ की दूरी पर दो प्रतिमाएँ और निकलीं। एक प्रतिमा तो पहले से ही निकली हुई थी, जिन्हें भिलाले लोग अपने इष्टदेव मानकर तेल सिन्दूर से पूजते थे । भूगर्भ से निर्गत इन १४ प्रतिमाओं के नाम व लेख इस प्रकार हैं
क्रं.
श्री लक्ष्मणी तीर्थ का इतिहास
५.
६.
७.
८.
नाम
श्री पद्मप्रभस्वामी
श्री आदिनाथजी
श्रीमहावीरस्वामीजी
श्रीमल्लीनाथजी
श्रीनमिनाथजी
श्री ऋषभदेवजी
श्री अजितनाथजी
श्री ऋषभदेवजी
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ऊँचाई (इंच)
३७
२७
३२
२६
२६
१३
२७
१३
९.
. १०.
११.
१२.
१३.
१४.
मुनिराज जयंतविजय.......
श्रीसंभवनाथजी
श्रीचन्द्रप्रभस्वामीजी
श्री अनन्तनाथजी
श्रीचौमुखजी
श्रीअभिनंदनस्वामी (खं.) श्रीमहावीरस्वामीजी (खं.)
१० ॥
१३ ।।
१३ ।।
१५
१०
चरमतीर्थाधिपति श्रीमहावीरस्वामीजी की ३२ इंच बड़ी प्रतिमा सर्वाङ्गसुन्दर श्वेतवर्ण वाली है। उसके ऊपर लेख नहीं है, परंतु उस पर रहे चिह्नों से ज्ञात होता है कि ये प्रतिमाजी महाराजा सम्राट् संप्रति के समय में प्रतिष्ठित हुई होंगी ।
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९॥
अजितनाथ प्रभु की १५ इंच बड़ी प्रतिमा वेलू-रेती की बनी हुई दर्शनीय एवं प्राचीन प्रतीत होती है।
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श्रीपद्मप्रभुजी की प्रतिमा जो ३७ इंच बड़ी है, वह भी श्वेतवर्णी परिपूर्णांग है, उस पर का लेख मंद पड़ जाने से 'सं. १०१३ वर्षे वैशाख सुदि सप्तम्यां केवल इतना ही पढ़ा जाता है । श्री मल्लीनाथजी एवं श्याम श्रीनमिनाथजी की २६-२६ इंच बड़ी प्रतिमाएँ भी उसी समय की प्रतिष्ठित हों ऐसा आभास होता है। इस लेख में ये तीनों प्रतिमाएँ १ हजार वर्ष प्राचीन है।
श्री आदिनाथजी की २७ इंच और ऋषभदेवस्वामी की १३-१३ इंच बादामी वर्ण की प्रतिमाएँ कम से कम ७०० वर्ष प्राचीन हैं एवं तीनों एक ही समय की प्रतीत होती हैं।
श्रीआदिनाथस्वामी की प्रतिमा पर लेख इस प्रकार है-
'संवत् १३१० वर्षे माघसुदि ५ सोमदिने प्राग्वाटज्ञातीय मंत्रीगोसल तस्य चि. मंत्री आ (ला) लिगदेव तस्य पुत्र गंगदेव तस्य पत्नी गांगदेवी, तस्याः पुत्र मंत्री पदम तस्य भार्या मांगल्या प्र. ।'
शेष पाषाण-प्रतिमाओं के लेख बहुत ही अस्पष्ट हो गए हैं, परंतु उनकी बनावट से जान पड़ता है कि ये भी पर्याप्त प्राचीन हैं । उपरोक्त प्रतिमाएँ भूगर्भ से प्राप्त होने के बाद श्री पार्श्वनाथस्वामीजी की एक छोटी सी धातुप्रतिमा चार अंगुल
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