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कोटि कोटि वन्दना
यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ : सन्देश - वन्दन
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रे......कशीत
वे सच्चे गुरु थे.....
गुरु शब्द देखने में जितना छोटा हैं, उतना ही उसकी महत्ता है। उसकी विराटता / विशालता की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। गु का अर्थ होता है अंधकार और रू का अर्थ होता है दूर करने वाला। अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान रूपी प्रकाश प्रदान करने वाला गुरु । हमारा मार्गदर्शक होता है।
वह एक मित्र की भांति हमें मार्गदर्शन प्रदान करता है। गुरु के संबंध में पाश्चात्य विद्वानों ने भी गुरु की महत्ता स्वीकार करते हुए कहा है कि गुरु एक दीपक या मोमबत्ती के समान होता है, जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश प्रदान करता है। एक अन्य विद्वान ने कहा है कि गुरु जहाज के कप्तान के समान होता है जो स्वयं डूबकर अन्यों के प्राणों की रक्षा करता है। महात्मा कबीरदासजी ने भी गुरु की महत्ता इस प्रकार बताई है
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गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागु पाय । बलिहारी गुरु आपनी, गोविंद दियो बताय ॥
इस दृष्टि से जब हम परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. के जीवन पर दृष्टिपात करते हैं, तो पाते हैं कि वे सच्चे अर्थों में गुरु थे। उनके दीक्षा शताब्दी वर्ष के अवसर पर प्रकाशित हो रहे स्मारक ग्रंथ के लिए मैं अपनी ओर से हार्दिक शुभकामना प्रेषित करता हूं और पूज्य गुरुदेव के पावन चरणों में कोटि-कोटि वंदन करता हूं।
प्रति,
ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण'
श्री मोहनखेड़ा तीर्थ
प्रधान सम्पादक
श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ
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कमलराज चुन्नीलालजी संघवी
सूरत-भूति
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