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________________ - यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्थ - इतिहास. साहित्यिक साक्ष्यों के अंतर्गत सम्यक्त्वकौमुदी(रचनाकाल वि.सं. १५०४/ई. सन् १४४८) और भक्तामरस्तवव्याख्या गुणदेवसूरि वि.सं. १५३५-१५७७ (रचनाकाल वि.सं. १५२४/ई. सन् १४६८) के कर्ता चैत्रगच्छीय गुणाकरसूरि का नाम आ चुका है, किन्तु वे किसके शिष्य थे, जिनदेवसूरि वि.सं. १५०७-१५०८ यह बात उक्त साक्ष्य से ज्ञात नहीं होती। अभिलेखीय साक्ष्यों में जयानन्दसूरि के पट्टधर मुनितिलकसूरि (वि.सं. १५०१-१५०८, रत्नदेवसूरि वि.सं. १५११-१५५८ .. प्रतिमालेख) के शिष्य गुणाकरसरि (वि.सं. १४९९-१५१९, प्रतिमालेख) का उल्लेख मिलता है। अतः समयामयिकता के आधार पर मुनितिलकसूरि के पट्टधर गुणाकरसूरि को सम्यक्त्वकौमुदी आदि के कर्ता गुणाकरसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। जयानन्दसूरि मुनितिलकसूरि वि.सं. १५०१-१५०८ गुणाकरसूरि वि.सं. १४९९-१५१९ जयानन्दसूरि मुनितिलकसूरि (वि.सं. १५०१-१५०८) प्रतिमा लेख वीरदेवसूरि गुणाकरसूरि (वि.स. १४९९-१५१९) प्रतिमा लेख पासदेव (पार्श्वदेव) सूरि वि.सं. १५०९ वि.सं. से १५०४/ई. सन् १४४८ में सम्यक्त्वकौमुदी और वि.सं. १५२४ / ई. सन् १४६८ में भक्तामरस्तवव्याख्या के रचनाकार ठीक इसी प्रकार चैत्रगच्छीय सोमकीर्तिसरि के शिष्य चारुचन्द्रसूरि (वि.सं. १५२७-१५४०, प्रतिमा लेख) और वि.सं. १५५४/ई. सन् १४९८ में प्रतिलिपि की गई भक्तामरस्तवव्याख्या की दाता प्रशस्ति में उल्लिखित चैत्रगच्छीय चारुचन्द्रसूरि एक ही व्यक्ति मालूम पड़ते हैं-- सोमकीर्तिसूरि चारुचन्द्रसूरि वीरचन्द्रसूरि वि.सं. १५२७-१५४० वि.सं. १५३१-१५३४ परंतु इन सबको मिलाकर भी चैत्रगच्छीय मनिजनों की गुरु-शिष्य परंपरा की नामावली की अविच्छिन्न तालिका का पुर्नगठन कर पाना कठिन है। రంగురంగురువారంవారు గురువారందరగారం లో రంగురంగురువారందరగారురంగురంగులో Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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