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यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ : सन्देश- वन्दन
कोटि कोटि वन्दनारे...
वे अजेय थे....
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हमारे संपर्क में अनेक व्यक्ति आते हैं और हम भी अनेक व्यक्तियों/गुरु भगवंतों के संपर्क में आते हैं। स्मृति में केवल वे ही रहते हैं, जिनमें कुछ वैशिष्ट्य होता है। प्रातः स्मरणीय व्याख्यान वाचस्पति परम श्रद्धेय गुरुदेव आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. भी एक ऐसी ही विरल विभूति थे, जो सदैव स्मृति पटल पर विराजमान रहते हैं।
कि परम पूज्य गुरुदेव ज्ञान के क्षेत्र में तो अपराजेय थे ही, वे अन्य क्षेत्रों में भी अजेय थे। शरीर और आत्मा के भेद को उन्होंने समझ लिया था। इसलिए आधिव्याधि की उन्हें चिंता नहीं रहती थी। इस दृष्टि से भी वे अजेय थे।
ऐसे ज्ञानी गुरुदेव की दीक्षा के सौ वर्ष होने के उपलक्ष्य में प्रकाशित होने वाले स्मारक ग्रंथ की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामना प्रेषित करते हुए परम कृपालु गुरुदेव के श्री चरणों में कोटिशः वंदन।
गोणीमावामिष्ट
प्रति,
ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण'
शांतिलाल फतेहराजजी वजावत श्री मोहनखेड़ा तीर्थ
आहोर - चेन्नई प्रधान सम्पादक
श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ RENxnwarRENENENINENERENENENENENENENENER2 (34) NENENERENESENENENENESENENERENENENENENERY
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