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- यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्य : जैन-धर्म हुआ बताया जाता है। इनकी माता विष्णु देवी थीं।१२१ इनके १४. अनन्त शरीर की ऊँचाई ८० धनुष तथा वर्ण स्वर्णिम बताया गया है।१२२
अनन्त जैन-परम्परा के चौदहवें तीर्थंकर माने गए हैं।५३८ इन्होंने २ माह की कठिन तपस्या के बाद तिन्दुक वृक्ष के नीचे
इनके पिता का नाम सिंहसेन एवं माता का नाम सुयशा और बोधि-ज्ञान प्राप्त किया था।१२३ इनको भी सम्मेत शिखर पर
जन्मस्थल अयोध्या माना गया है। १३९ इनके शरीर की ऊँचाई निर्वाण प्राप्त हुआ था।१२४ इनके संघ में ८४ हजार भिक्षु और १
५० धनुष और वर्ण काञ्चन बताया गया है।१४० इनको अशोक लाख ६ हजार भिक्षुणियाँ थीं।२२५ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में
वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था।१४१ इन्होंने ३० लाख वर्ष इनके दो पूर्वभवों - नलिनीगुल्म राजा और ऋद्धिमान देव का
की आयु पूर्ण कर निर्वाण प्राप्त किया।१४२ इनकी शिष्यसम्पदा उल्लेख हुआ है।
में ६६ हजार भिक्षु और एक लाख आठ सौ भिक्षुणियों के होने अन्य परम्पराओं में इनका भी उल्लेख उपलब्ध नहीं है। का उल्लेख है।१४३ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों
- पद्मरथ राजा और पुष्पोत्तर विमान में बीस सागरोपम की १२. वासुपूज्य
स्थिति वाले देव का उल्लेख है। वासुपूज्य वर्तमान अवसर्पिणी काल के बारहवें तीर्थंकर
इनका उल्लेख हमें अन्य परम्पराओं में नहीं मिलता है। माने जाते हैं।१२६ इनके पिता का नाम वसुपूज्य एवं माता का नाम जया था तथा इनका जन्मस्थान चम्पा माना गया है।१२७ १५. धर्म इनके शरीर की ऊँचाई ७० धनुष बताई गयी है।१२८ इनके शरीर
धर्म वर्तमान अवसर्पिणी काल के पंद्रहवें तीर्थंकर माने का वर्ण लाल बताया गया है।१२९ इन्होंने भी तपश्चरण कर
गए हैं।१४४ इनके पिता का नाम भानु एवं माता का नाम सुवृता पाटला वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त किया था।१३० इनकी
और जन्मस्थान रत्नपुर माना गया है।४५ इनके शरीर की ऊँचाई शिष्य-सम्पदा में ७२ हजार भिक्षु और एक लाख ३ हजार
४५ धनुष और वर्ण स्वर्णिम बताया गया है।१४६ इन्होंने जीवन भिक्षणियाँ थीं।१३९ त्रिषष्टिशलाकापरुषचरित्र में इनके दो पर्वभवों
की सान्ध्यवेला में कठिन र पाया कर दधिपर्ण वृक्ष के नीचे - पद्मोत्तर राजा और ऋद्धिमानदेव का उल्लेख मिलता है।
केवलज्ञान प्राप्त किया।१४७ इन्होंने एक लाख पूर्व वर्ष की आयु अन्य परम्पराओं में इनका भी उल्लेख नहीं मिलता है।
पूर्ण कर निर्वाण प्राप्त किया। जन-ग्रंथों के अनुसार इनके संघ १३. विमल
में ६४ हजार साधु एवं ६२ हजार ४ सौ साध्वियाँ थीं। १४८
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों - दृढरथ राजा जैन-परम्परा में विमल को तेरहवाँ तीर्थंकर माना गया और अहमिन्द्रदेव का वर्णन उपलब्ध है। है।९३२ इनके पिता का नाम कृतवर्मा एवं माता का नाम श्यामा
अन्य परम्पराओं में इनका कोई उल्लेख नहीं मिलता है। और जन्मस्थान काम्पिल्यपुर माना गया है।१३३ इनके शरीर की ऊँचाई ६० धनुष और रंग काञ्चन बताया गया है।१३४ इन्होंने भी १६. शान्ति अपने जीवन के अंतिम चरण में कठिन तपस्या की और जम्बू
जैनपरम्परा में शान्तिनाथ की सौलहवाँ तीर्थंकर माना वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया।२३५ अपनी साठ लाख वर्ष की
गया है।१४९ इनके पिता का नाम विश्वसेन एवं माता का नाम आयु पूर्ण कर अंत में सम्मेतशिखर पर निर्वाण प्राप्त किया।१३६
अचिरा और जन्मस्थान हस्तिनापुर माना गया है।१५० इनके शरीर इनके संघ में ६८ हजार साधु एवं एक लाख एक सौ आठ
की ऊँचाई ४० धनुष और वर्ण स्वर्णिम कहा गया है।५१ इन्होंने साध्वियों के होने का उल्लेख प्राप्त होता है। १३७
एक वर्ष की कठिन तपस्या के बाद नन्दी वृक्ष के नीचे बोधिज्ञान त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों - पद्मसेन राजा।
या केवलज्ञान प्राप्त किया।१५२ अपनी एक लाख वर्ष की आयु और ऋद्धिमान देव का उल्लेख हुआ है।
पूर्ण करने के पश्चात् इन्होंने सम्मेतशिखर पर निर्वाण प्राप्त इनका भी उल्लेख अन्य परम्पराओं में उपलब्ध नहीं है। किया।१५३ इनकी शिष्यसम्पदा में ६२ हजार भिक्षु और ६१
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