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यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म
बौद्ध-साहित्य में धम्मपद में 'उसभं परवं वीरं (४२२) के रूप में ऋषभ का उल्लेख है, यद्यपि यह शब्द ब्राह्मण का एक विशेषण है अथवा ऋषभ नामक तीर्थंकर को सूचित करता है, यह विवादास्पद ही है। मञ्जुश्रीमूलकल्प में भी नाभिपुत्र ऋषभ और उनके पुत्र भरत का उल्लेख उपलब्ध है । ६६ २. अजित
अजित जैन - परम्परा के दूसरे तीर्थंकर माने जाते हैं । ६७ इनके पिता का नाम जितशत्रु और माता का नाम विजया था तथा इनका जन्मस्थान अयोध्या माना गया है । ६८ इनका शरीर ४०० धनुष ऊँचा और काञ्चन वर्ण बताया गया है। इन्होंने भी अपने जीवन के अन्तिम चरण में संन्यास ग्रहण कर १२ वर्ष तक कठिन तपस्या की, तत्पश्चात् सर्वज्ञ बने । अपनी ७२ लाख पूर्व वर्ष की सर्व आयु में इन्होंने ७१ लाख पूर्व वर्ष गृहस्थ धर्म और १ लाख पूर्व वर्ष संन्यास धर्म का पालन किया । ७१ इनके संघ में १ लाख मुनि और ३ लाख ३० हजार साध्वियाँ थीं। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके पूर्वभवों का उल्लेख है और इन्हें सागर चक्रवर्ती का चचेरा भाई बताया गया है।
बौद्ध परम्परा में अजित थेर का नाम मिलता है किन्तु इनकी तीर्थंकर अजित से कोई समानता परिलक्षित नहीं होती है । इसी प्रकार बुद्ध के समकालीन तीर्थंकर कहे जाने वाले ६ व्यक्तियों में एक अजितकेशकम्बल भी हैं किन्तु ये महावीर के समकालीन हैं, जबकि दूसरे तीर्थंकर अजित महावीर के बहुत पहले हो चुके हैं। डॉ. राधाकृष्णन की सूचनानुसार ऋग्वेद में भी अजित का नाम आता है - ये प्राचीन हैं अतः इनकी तीर्थंकर अजित से एकरूपता की कल्पना की जा सकती है किन्तु यहाँ भी मात्र नाम की एकरूपता के अतिरिक्त अन्य कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
३. संभव
संभव वर्तमान अवसर्पिणी काल के तीसरे तीर्थंकर माने गए हैं। इनके पिता का नाम जितारि एवं माता का नाम सेनादेवी था तथा इनका जन्म स्थान श्रावस्ती नगर माना गया है । ४ इनके शरीर की ऊँचाई ४०० धनुष, वर्ण काञ्चन और आयु ६० लाख पूर्व वर्ष मानी गई है । ७५ इन्होंने भी अपने जीवन की संध्या-वेला में संन्यास ग्रहण किया और १४ वर्ष की कठोर
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साधना के पश्चात् साल वृक्ष के नीचे इन्हें केवज्ञान प्राप्त हुआ। इन्होंने सम्मेतशिखर पर निर्वाण प्राप्त किया । ७७ इनकी शिष्यसम्पदा में २ लाख भिक्षु और ३ लाख ३६ हजार भिक्षुणयाँ थीं। अन्य परम्पराओं में इनका उल्लेख हमें कहीं नहीं मिलता है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों का उल्लेख है। ४. अभिनन्दन
अभिनन्दन जैन - परम्परा के चौथे तीर्थंकर माने जाते हैं। इनके पिता का नाम संवर एवं माता का नाम सिद्धार्था था तथा इनका जन्मस्थान अयोध्या माना गया है । ७९ इनके शरीर की ऊँचाई ३५० धनुष और वर्ण सुनहरा बताया गया है।" इन्होंने जीवन के अन्तिम चरण में १००० मनुष्यों के साथ संन्यास ग्रहण किया और कठिन तपस्या के बाद सम्मेतपर्वत पर निर्वाण प्राप्त किया । " इन्होंने अपनी ५० लाख पूर्व वर्ष की आयु में साढ़े बारह लाख पूर्व वर्ष कुमार अवस्था में, साढ़े छत्तीस लाख पूर्व वर्ष गृहस्थ जीवन में और एक लाख पूर्व वर्ष में संन्यास धर्म पालन किया। इनको प्रिअंक वृक्ष के नीचे कैवल्य प्राप्त हुआ था।
इनके ३ लाख मुनि और ३० हजार साध्वियाँ थीं । ८२ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों - महाबल राजा और अनुत्तर स्वर्ग के देव का उल्लेख हुआ है।
५. सुमति
सुमति वर्तमान अवसर्पिणी काल के पाँचवें तीर्थंकर माने गए हैं।८३ इनके पिता का नाम मेघ एवं माता का नाम मंगला तथा इनका जन्म स्थान विनय नगर माना गया है । ४ इनके शरीर की ऊँचाई ३०० धनुष और वर्ण काञ्चन माना गया है । ५ इन्होंने जीवन की अन्तिम संध्यावेला में संन्यास ग्रहण किया था और १२ वर्ष की कठोर साधना के पश्चात् प्रियंगु वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त किया था। ६ इन्होंने अपनी ४० लाख पूर्व वर्ष की आयु में १० लाख पूर्व कुमारावस्था, २९ लाख पूर्व वर्ष गृहस्थ जीवन और १ लाख पूर्व वर्ष संन्यास धर्म का पालन किया।८७ इनकी शिष्यसम्पदा में ३ लाख २० हजार भिक्षु और लाख ३० हजार भिक्षुणियाँ थीं। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों- पुरुषसिंह राजकुमार और ऋद्धिशाली देव का उल्लेख हुआ
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है।
अन्य परम्पराओं में हमें इनका कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
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