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- यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन दर्शन (१२२) माया पुत जहा नटुं, जुवाणं पुणरागयं।
(१३४) न्यायसार, पृष्ठ ३५ काई पच्चभिजाजेज्जा पव्वलिंगेण केणई।।
(१३५) भारतीय दर्शन में अनुमान, पृष्ठ ३३४ तथा (१२३) न्यायावतार - १०
न्यायसूत्र - १/२/७ (१२४) वही - १३
(१३६) भारतीय दर्शन में अनुमान, पृष्ठ ३५३ (१२५) साधनं प्रकृतभावेऽनुपपन्नं ततो परे।
(१३७) खण्डनखण्डखाद्य, पृष्ठ ३७५-७८ विरुद्धसिद्धसंदिग्धअकिंचित्करविस्तराः।
(१३८) उपायहृदय, पृष्ठ १४-१७ न्या.वि-२/१०१, १०२, पृष्ठ १०२, १२७
(139) Buddhist Logic before Dinnag, Page 480 (१२६) तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - १/१३/२०२ तथा
(140) bid, Page 481 प्रमाणपरीक्षा, पृष्ठ २०८
(१४१) जैन-तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार, पृष्ठ २२६ तथा (१२७) तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, १/१३/२०३, २०४
साध्यसाधनविज्ञप्तेर्यदि विज्ञप्तिमात्रता। (१२८) परीक्षामुख - ३/५२-५६
न साध्यं न च हेतुश्च प्रतिज्ञाहेतुदोषत: ८०
आप्तमीमांसा (१२९) प्रमाणनिर्णय, पृष्ठ ३३, ३६ (१३०) (क) प्रमेयकमलमार्तण्ड - ३/५२-५६
(१४२) न्यायावतार - २१ (ख) प्रमेयरत्नमाला - ३/४८-५२
(१४३) वही - २२ (ग) प्रमाणनयतत्त्वालोक - ३/९, १०, २३ (१४४) वही - २३ (१३१) प्रमाणमीमांसा - १/२ ८,९
(१४५) न्यायावतार - २४ (१३२) वैशेषिकसूत्र - ३/१/१४
(१४६) वही, पृष्ठ ८० (१३३) वैशेषिकसूत्र - ३/१/१५
(१४७) न्यायावतार - २५
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