________________
।
– यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन दर्शन अन्तर्व्याप्ति--पक्ष, सपक्ष तथा हेतु के न रहने पर भी वैशेषिक-दर्शन - वैशेषिकसत्र में अनुमान के प्रकारों साध्य और साधन के बीच पाई जाने वाली व्याप्ति अन्तर्व्याप्ति पर प्रकाश नहीं डाला गया है। किन्तु प्रशस्तपाद ने अपने भाष्य होती है।
में लिखा है११७--तत्तद्विविधम्। दृष्टं एवं सामान्यतोदृष्टं। अनुमान
के दो भेद हैं--दृष्ट एवं सामान्यतोदृष्ट। प्रसिद्ध साध्य एवं अनुमेय अनुमान के प्रकार -
इन दोनों में जातितः अत्यंत अभिन्न होने पर (सजातीय होने भारतीय प्रमाणशास्त्र में अनुमान के तीन वर्गीकरण मिलते पर) जो अनुमान किया जाता है, दृष्ट अनुमान कहलाता है। हेतु हैं--(१) पूर्ववत्, शेषवत् तथा सामान्यतोदृष्ट।
के साथ पहले से ज्ञात रहने वाला साध्य प्रसिद्ध साध्य और जिस (२) स्वार्थानुमान एवं परार्थानुमान।
साध्य की सिद्धि अभी अभिप्रेत है वह अनुमेय कहा जाता है।
जैसे पूर्व में किसी स्थान विशेष अर्थात् नगरनिष्ठ गाय में ही (३) केवलान्वयी, केवलव्यतिरेकी और अन्वयव्यतिरेकी।
केवल सास्ना को देखकर अन्य किसी स्थान अर्थात् वन में इन वर्गों की मान्यता दर्शन की किसी खास शाखा तक ही सास्ना को देखने के पश्चात गायविषयक जो प्रतीति (अनुमिति) सीमित है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। एक ही शाखा के कुछ होती है वह दृष्ट अनमान है११८ ॥ आचार्य प्रथम वर्गीकरण को मानते हैं, तो अन्य कुछ द्वितीय या
व्योमशिव आदि आचार्यों ने स्वनिश्चयार्थ (स्वार्थानुमान) तृतीय विभाजन को अंगीकार करते हैं।
तथा परार्थानुमान निरूपित किए हैं। किन्तु सप्तपदाथों में न्याय दर्शन - न्याय सूत्रकार गौतम ने अनुमान के भेद केवलान्वयी केवलव्यतिरेकी तथा अन्वयव्यतिरेकी की चर्चा पर विचार करते हुए कहा है११६ - अथं तत्पूर्वकं त्रिविधमनुमानं मिलती है११९। पूर्वच्छेषवत्सामान्यतोदृष्टम् अर्थात् अनुमान के तीन भेद हैं-पूर्ववत्,
मीमांसा - शबर स्वामी ने अनुमान के प्रकारों को बताते आकाश में बादल को देखकर वर्षा होने का अनुमान करना।
हुए प्रत्यक्षतो दृष्ट-संबंध तथा सामान्यतोदृष्ट-संबंध पर प्रकाश शेषवत-नदी की बाढ को देखकर ऐसा अनुमान करना कि वषा हुइ डाला है। प्रभाकर ने अनुमान के जो दो भेद माने है, व इस है। सामान्यतोदृष्ट--एक साथ पाई जाने वाली दो वस्तुओं में से
प्रकार हैं-दृष्टस्वलक्षण और अदृष्टस्वलक्षण। किसी एक को देखकर दूसरी का अनुमान करना, जैसे किसी पशु के सींग को देखकर उसकी पूँछ का अनुमान करना।
सांख्या - सांख्यकारिका में कहा गया है ५२० -
त्रिविधमनुमानमाख्यातम्। उसी के आधार पर आचार्य माठर ने भासवर्ग, केशव मिश्र आदि ने अनुमान को स्वार्थानुमान
बताया कि अनुमान के तीन प्रकार होते हैं--पूर्ववत्, शेषवत्, तथा परार्थानुमान के रूप में विभाजित किया है। जब हम स्वयं
सामान्यतोदृष्ट। सांख्यतत्त्वकौमुदी में पहले वीत और अवीत के कुछ समझने के लिए अनुमान करते हैं तो उसे स्वार्थानुमान (स्व
रूप में अनुमान का विभाजन हुआ है फिर वीत के दो भेद किए + अर्थ+ अनुमान) कहते हैं और जब पर-उपदेश के लिए अनुमान
गए हैं-पूर्ववत् तथा सामान्यतोदृष्ट। करते हैं तो उसे परार्थानुमान (पर + अर्थ + अनुमान) कहते हैं।
वेदान्त - वेदान्तपरिभाषा में अनुमान के दो भेद बताए . उद्योतकर ने अनुमान का वर्गीकरण अन्वयी, व्यतिरेकी
गए हैं--स्वार्थानुमान तथा परार्थानमान। इसी को अर्थदीपिका एवं अन्वय-व्यतिरेकी के रूप में किया है। इन्हीं तीन प्रकारों
में कहा गया है कि जो अनुमान अपनी समस्या को सुलझाने में को उदयन ने केवलान्वयी, केवलव्यतिरेकी तथा अन्वयव्यतिरेकी
सहायक होता है वह स्वार्थानुमान तथा जो अन्य की समस्या कहा है। जो अनुमान केवल अन्वय पर आधारित हो उसे केवलान्वयी ।
को सुलझाने में सहायक होता है, वह परार्थानुमान है। कहते हैं, जो मात्र व्यतिरेक पर आधारित हो उसे केवलव्यतिरेकी तथा जो अन्वय और व्यतिरेक दोनों पर आधारित हो उसे अन्वय
बौद्धदर्शन - दिङ्नाग ने अनुमान को दो प्रकारों में व्यतिरेकी कहते हैं। इसे गंगेश ने अच्छी तरह विवेचित किया है। विभाजित किया है--स्वार्थानुमान तथा परार्थानुमान। धर्मकीर्ति
के द्वारा भी इस विभाजन को समर्थन प्राप्त है। असंग ने अनुमान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org