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________________ • यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ जैन दर्शन क्या तत्व का सबसे छोटा अंश भी है? अगर छोटा अंश है तो क्या वही मूलतत्त्व या मूलकण है? अगर किसी तत्त्व का सबसे छोटा भाग मूलतत्त्व है तो वह किस प्रकार वस्तुओं का निर्माण करता है? ये कैसे एक-दूसरे के साथ परस्पर जुड़े रहते हैं? वस्तुओं की भिन्नता का कारण क्या है? क्या यही मूलकण भिन्न-भिन्न वस्तुओं के स्वरूप का निर्धारण करता है ? इत्यादि अनेकों प्रश्न हैं, जो परमाणुवाद की नींव हैं। दार्शनिकों एवं वैज्ञानिकों ने इस दिशा में पर्याप्त ऊहापोह किया और विविध प्रकार के मन्तव्य प्रकाश में आए। प्रायः दार्शनिकों ने जगत् को पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश का एक संघात माना है। कुछ दार्शनिकों ने मात्र ४ तथ्यों को ही इसके लिए उत्तरदायी माना और आकाश को इससे अलग रखा। लेकिन इस संघात के पीछे मूलरूप से कौन कार्य करता है, तथा किसे मूलतत्त्व स्वीकार किया जाए, इस संदर्भ को लेकर दार्शनिकों के बीच एक मत नहीं रहा। किसी ने मात्र भूतों को ही इसके लिए प्रभावी माना तो किसी ने अचेतन प्रकृति को इसका श्रेय दिया। किसी ने ब्रह्म अथवा चरम सत्ता को इसका कारण माना तो कोई परमशक्ति को ही मूलतत्व मान बैठा । सचमुच मूलतत्त्व का प्रश्न भी अत्यंत गूढ़ एवं रहस्यमय बनता गया। लेकिन इसका महत्त्व कभी कम नहीं हुआ। यह अभी भी दार्शनिकों के समक्ष एक ज्वलंत समस्या बना हुआ है जिस पर निरंतर चिंतन हो रहा है। विस्तारभय से बचने के लिए हम इस दार्शनिक चिंतन पर यहीं विराम लगाते हैं। मूलकण और विज्ञा विज्ञान के समक्ष भी मूलकण का प्रश्न उपस्थित हुआ । इसके लिए यह मात्र चिंतन का ही विषय नहीं रहा, बल्कि एक व्यवहारिक समस्या भी रही । विज्ञान अपने प्रयोग एवं निरीक्षण के लिए प्रसिद्ध रहा है और इस हेतु उसे चिंतन के धरातल के साथ-साथ व्यवहारिक प्रयोग के क्षेत्र में भी प्रयाण करना पड़ता है। मूलकण के संबंध में भी वैज्ञानिकों ने इसी नीति का अनुपालन किया। सर्वप्रथम उसने मूलकण के स्वरूप का निर्धारण किया और यह मत व्यक्त किया- किसी भी तत्त्व का सबसे छोटा भाग जो पुनः विभाजित नहीं हो सकता मूलकण कहलाता है। प्रारंभ में इसे अणु (Molecule) कहा गया। लेकिन अणु का भी विभाजन हो गया और इस विभाजित कण को परमाणु (Atom) [ १८ Jain Education International For Private कहा गया। बहुत दीर्घ अवधि तक परमाणु को मूलभूत कण माना जाता रहा। वैज्ञानिक इस दिशा में निरंतर प्रयोग एवं निरीक्षणों का अभ्यास करते रहे और उनके साथ मूलभूत कण के सन्दर्भ में नए-नए तथ्य प्रकाशित होते रहे। वैज्ञानिकों का मूलकण इससे अछूता नहीं रहा और परमाणु भी विभाजित हो गया। इसका श्रेय थामसन नामक वैज्ञानिक को मिला और उसने परमाणु को दो भागों में बाँटकर इसे इलेक्ट्रॉन (Electron) और प्रोटॉन (Proton) नाम दिया। इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन को विद्युत आवेश से युक्त माना गया । विद्युत आवेश दो प्रकार का होता है - ऋणावेश (Negative Charge) एवं धनावेश (Postitive Charge) । इलेक्ट्रॉन ऋणावेशित होता है, जबकि प्रोटॉन धनावेशित होता है" । पुनः इस दिशा में और अधिक अन्वेषण हुआ और परमाणु तीन भागों में विभाजित हो गया । यह तीसरा भाग न्यूट्रॉन (Neutron) कहलाया । यह प्रोटॉन का आवेशरहित भाग है १३ । प्रोटॉन का यह विभाजन यहीं नहीं रुका। वैज्ञानिक शोधों ने इस दिशा में प्रगति का क्रम निरंतर बनाए रखा। फलतः नए मूलभूत कणों की अवधारणा विकसित होती गई और मनुष्य न्यूट्रीनो (Nuetrino), बीटाकण (Beta Particles), पॉजीट्रान (Positron) जैसे सूक्ष्म कणों से अवगत होता रहा। फोटॉन (Photon) और फोनॉन (Phonan) जैसे सूक्ष्मतम कणों की खोज ने वैज्ञानिकों के समक्ष मूलभूत कण के संदर्भ में एक नया मापदण्ड प्रस्तुत किया। लेकिन वैज्ञानिक प्रगति का क्रम यहीं अवरुद्ध नहीं हुआ। यहाँ होने वाले प्रायोगिक अन्वेषणों के परिणामस्वरूप मेसॉन (Meson), ग्लूकॉन (Glucon), स्ट्रेंज (Strange) आदि के रूप में १०० से अधिक सूक्ष्म कण प्राप्त हो गए हैं, जिन्हें वैज्ञानिक मूलकण स्वीकार करते हैं। लेकिन विज्ञान ने सूक्ष्मकण अथवा प्रारंभिक कण के संदर्भ में अपनी खोज का क्रम गतिमान रखा तथा क्वार्क (Quark) के रूप में एक ऐसे मूलभूत कण को प्राप्त कर लिया है, जिसका प्रायः और अधिक विभाजन संभव नहीं है ९५ । परमाण्विक संरचना परमाणु चाहे कितने ही भागों में विखण्डित क्यों न हो जाए, इसका अस्तित्व अथवा इसकी संरचना तीन कणों पर आधारित होती है। ये तीन कण हैं--इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और Personal Use Only के www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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