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यतीन्द्र सूरि स रकान्य - जैन आगम एवं साहित्य - किसी भी भाषा का जन्म बोली के रूप में पहले होता है प्रकृति कहा जाता है। मूलशब्द से जो शब्द रूप बना है वह पि.र बोली से साहित्यिक भाषा का जन्म होता है जब साहित्यिक तद्भव है। प्राकृत-व्याकरण संस्कृत शब्द से प्राकृत का तद्भव भाषा बनती है तब उसके लिए व्याकरण के नियम बनाए जाते शब्दरूप कैसा बना है, इसकी व्याख्या करता है। अतः यहाँ हैं, ये व्याकरण के नियम जिस भाषा के शब्दरूपों के आधार पर संस्कृत को प्रकृति कहने का तात्पर्य मात्र इतना है कि तद्भव उस भाषा के शब्दरूपों को समझाते हैं वही उसकी प्रकृति कहलाते शब्दों के संदर्भ में संस्कृत के शब्द को आदर्श मानकर या हैं।यह सत्य है कि बोली का जन्म पहले होता है, व्याकरण उसके माडल मानकर यह व्याकरण लिखा गया है। अतः प्रकृति का बाद बनता है। शौरसेनी अथवा प्राकृत की प्रकृति को संस्कृत अर्थ आदर्श या माडल है। संस्कृत शब्दरूप को मॉडल, आदर्श मानने का अर्थ इतना ही है कि इन भाषाओं के जो भी व्याकरण मानना, इसलिए आवश्यक था कि प्राकृत-व्याकरण संस्कृत के बने हैं वे संस्कृत शब्दरूपों के आधार पर बने हैं। यहाँ पर भी जानकार विद्वानों को दृष्टि में रखकर या उनके लिए ही लिखे गए ज्ञातव्य है कि प्राकृत का कोई भी व्याकरण प्राकृत के लिखने थे। जब डा. सुदीप जी शौरसेनी के संदर्भ में प्रकृति: संस्कृतम् या बोलने वालों के लिए नहीं बनाया गया, अपितु उनके लिए का अर्थ माडल या आदर्श करते हैं तो उन्हें मागधी, पैशाची बनाया गया जो संस्कृत में लिखते या बोलते थे। यदि हमें आदि के संदर्भ में 'प्रकृतिः शौरसेनी' का अर्थ भी यही करना किसी संस्कृत के जानकार व्यक्ति को प्राकृत के शब्द या शब्दरूपों चाहिए कि शौरसेनी को माडल या आदर्श मानकर इनका व्याकरण को समझाना हो तो हमें उसका आधार संस्कृत को ही बनाना होगा लिखा गया है, इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि मागधी आदि और उसी के आधार पर यह समझाना होगा कि संस्कृत के किस प्राकृतों की उत्पत्ति शौरसेनी से हुई है। हेमचन्द्र ने महाराष्ट्री शब्द से प्राकृत का कौन सा शब्दरूप कैसे निष्पन्न हआ है। प्राकृत को आधार मानकर शौरसेनी, मागधी आदि प्राकृतों को इसलिए जो भी प्राकृत-व्याकरण निर्मित किए गए अपरिहार्य समा
समझाया है, अतः इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि महाराष्ट्री रूप से वे संस्कृत शब्दों या शब्दरूपों को आधार मानकर निर्मित
पर प्राचीन है या महाराष्ट्री से मागधी, शौरसेनी आदि उत्पन्न हुई। किए गए, अपरिहार्य रूप से वे संस्कृत शब्दों या शब्दरूपों को प्राचीन कौन? अर्धमागधी या शौरसेनी आधार मानकर प्राकृत शब्दों या शब्द रूपों की व्याख्या करते
इसी संदर्भ में टाँटिया जी के नाम से यह भी प्रतिपादित हैं। संस्कृत को प्राकृत की प्रकृति कहने का इतना ही तात्पर्य है। इसी प्रकार जब मागधी, पैशाची या अपभ्रंश की प्रकृति शौरसेनी
किया गया है कि "यदि वर्तमान अर्धमागधी आगम साहित्य को को कहा जाता है तो उसका तात्पर्य होता है कि प्रस्तुत व्याकरण ।
ही मूल आगम साहित्य मानने पर जोर देंगे तो इस अर्धमागधी के नियमों में इन भाषाओं के शब्दरूपों को शौरसेनी शब्दों को
भाषा का आज से १५०० वर्ष पहले अस्तित्व ही नहीं होने से इस आधार मानकर समझाया गया है। प्राकृतप्रकाश की टीका में
स्थिति में हमें अपने आगम साहित्य को ही ५०० ई. के परवर्ती वररुचि ने स्पष्टतः लिखा है 'शौरसेन्या ये शब्दास्तेषां प्रकृतिः
मानना पड़ेगा।" ज्ञातव्य है कि यहाँ भी महाराष्ट्री और अर्धमागधी संस्कृतम्' (१२/२) अर्थात् शौरसेनी के जो शब्द हैं उनकी
के अंतर को न समझते हुए एक भ्रांति को खड़ा किया किया प्रकृति या आधार संस्कृत शब्द हैं।
गया है। सर्वप्रथम तो यह समझ लेना चाहिए कि आगमों के
प्राचीन अर्धमागधी के 'त' श्रुति प्रधान पाठ चूर्णियों और अनेक यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि प्राकृतों में तीन प्रकार के शब्द -
प्राचीन प्रतियों में आज भी मिल रहे हैं, उससे नि:संदेह यह सिद्ध रूपलिते हैं, तद्भव, तत्सम और देशज। देशज शब्द वे हैं जो ।
होता है कि मूल अर्धमागधी 'त' श्रुति प्रधान थी और उसमें लोप किसी देश-विशेष में किसी विशेष अर्थ में प्रयुक्त हैं। इनके
की प्रवृत्ति नगण्य ही थी और यह अर्धमागधी भाषा शौरसेनी अर्थ की व्याख्या के लिए व्याकरण की कोई आवश्यकता नहीं
और महाराष्ट्री से प्राचीन भी है यदि श्वेताम्बर आगम शौरसेनी से होती है। तद्भव शब्द वे हैं जो संस्कृत शब्दों से निर्मित हैं,
महाराष्ट्री जिसे दिगंबर विद्वान्, भ्रांति से अर्धमागधी कह रहे हैं, जबकि संस्कृत के समान शब्द तत्सम हैं। संस्कृत व्याकरण में
बदले गए तो फिर उनकी प्राचीन प्रतियों में 'त' श्रुति के स्थान पर दो शब्द प्रसिद्ध हैं- प्रकृति और प्रत्यय। इनमें मूल शब्दरूप का '' श्रति के पाठ क्यों उपलब्ध नहीं होते हैं जो शौरसेनी का andidnianbidnidrodromorrorrowdubaridriodrira[११५/ doorbonirbrdasranAGAGrdasdrsandidroximiririrande
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