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________________ - यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य छेदसूत्रों की संख्या किया गया है। जीतकल्प, पंचकल्प और महानिशीथ का उल्लेख छेदसूत्रों की संख्या के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं। जीतकल्प. दिगम्बर-साहित्य में नहीं मिलता। चूर्णि में छेदसूत्रों के रूप में निम्न ग्रंथों का उल्लेख हुआ है - समवाओ में दशाश्रत को छेदसूत्र में प्रथम स्थान दिया कल्प, व्यवहार, कल्पिकाकल्पिक, क्षुल्लकल्प, महाकल्प, गया है।६ चूर्णिकार ने छेदसूत्रों में दशाश्रुतस्कन्ध को प्रमुख निशीथ आदि।३८ आदि शब्द से यहाँ संभवतः दशाश्रतस्कंध रूप से स्वीकार किया है। इसको प्रमुखता देने का संभवत: यही ग्रन्थ का संकेत होना चाहिए। कल्पिकाकल्पिक, महाकल्प एवं कारण रहा होगा कि इसमें मुनि के लिए आचरणीय एवं अनाचरणीय क्षुल्लकल्प आदि ग्रन्थ आज अनपलब्ध हैं। पर इतना नि:संदेह तथ्यों का क्रमबद्ध वर्णन है। शेष तीन छेदसत्र इसी के उपजीवी हैं। कहा जा सकता है कि ये प्रायश्चित्त-सूत्र थे और इनकी गणना विंटरनिट्स के अनुसार व्यवहार बृहत्कल्प का पूरक है। छेदसूत्रों में होती थी। बृहत्कल्प में प्रायश्चित्त-योग्य कार्यों का निर्देश है तथा व्यवहार आवश्यकनियुक्ति में छेदसूत्रों के साथ महाकाव्य का उसकी प्रयोग-भूमि है। अर्थात् उसमें प्रायश्चित्त निर्दिष्ट हैं। उनके उल्लेख मिलता है।३९ संभव है तब तक इस ग्रन्थ का अस्तित्व अनुसार निशीथ की रचना अर्वाचीन है। निशीथ में बहुत बड़ा भाग था। सामाचारी शतक में छेदसूत्रों के रूप में छह ग्रन्थों के नामों व्यवहार से तथा कुछ भाग प्रथम और द्वितीय चूला से लिया गया है। का उल्लेख मिलता है। दशाश्रुत, बृहत्कल्प, व्यवहार, निशीथ, कुछ आचार्य दशाश्रुत, बृहत्कल्प एवं व्यवहार, इन तीनों जीतकल्प, महानिशीथ। पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री ने जीतकल्प को एक श्रृतस्कंध ही मानते हैं तथा कुछ आचार्य दशाश्रत को के स्थान पर पंचकल्प को छेदसूत्रों के अन्तर्गत माना है। एक तथा कल्प और व्यवहार को दूसरे श्रुतस्कंध के रूप में हीरालाल कापडिया के अनुसार पंचकल्प का लोप होने स्वीकार करते हैं।४८ के बाद जीतकल्प की परिगणना छेदसूत्रों में होने लगा। कुछ टपर किस शनयोग में ? मुनियों का कहना है कि पंचकल्प कभी बृहत्कल्पभाष्य का ही एक अंश था पर बाद में इसको अलग कर दिया गया जैसे अनुयोग विशिष्ट व्याख्या पद्धति है। उसके मुख्य चार भेद ओघनियुक्ति और पिण्डनियुक्ति को।४३ ।। हैं- १. चरणकरण, २. धर्मकथा, ३. गणित, ४. द्रव्य। आर्यरक्षित से पूर्व अपृथक्त्वानुयोग प्रचलित था। उसमें प्रत्येक आगम के वर्तमान में पंचकल्प अनुपलब्ध है। जैन -ग्रंथावली के सूत्रों की व्याख्या चरणकरण, धर्म, गणित तथा द्रव्य की दृष्टि से अनुसार १७वीं शती के पूर्वार्द्ध तक इसका अस्तित्व था। की जाती थी। वह प्रत्येक के लिए सुगम नहीं होती थी। आर्यरक्षित किन्तु निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि इसका लोप ने इस जटिलता और स्मृतिबल की क्षीणता को देखकर कब हुआ? पंचकल्प भाष्य की विषयवस्तु देखकर ऐसा लगता पृथक्त्वानुयोग का प्रवर्तन कर दिया। उन्होंने विषयगत वर्गीकरण है कि किसी समय में पंचकल्प की गणना छेदसत्रों में रही होगी। के आधार पर आगमों को चार अनुयोगों में बाँटा - १. विंटरनिट्स के अनुसार छेदसूत्रों के प्रणयन का क्रम इस चरणकरणानयोग, २. धर्मकथानयोग, ३. गणितानयोग, ४. द्रव्यानयोग। प्रकार है - कल्प, व्यवहार, निशीथ, पिंडनियुक्ति, ओघनियुक्ति आचारप्रधान होने के कारण छेदसूत्रों का समावेश महानिशीथ।५ विंटरनिट्स ने छेदसूत्रों में जीतकल्प का समावेश चरणकरणानुयोग में किया गया। इस सन्दर्भ में निशीथचूर्णि में नहीं किया। जीतकल्प की रचना नंदी के बाद हुई अत: उसमें शिष्य आचार्य से प्रश्न पूछता है कि निशीथ आचारांग की पंचमचूला जीतकल्प का उल्लेख नहीं मिलता। पिंडनियुक्ति तथा ओघनियुक्ति होने के कारण उसका समावेश अंग में है तथा वह चरणकरणानुयोग साधु के नियमों का वर्णन करती हैं इसीलिए संभवत: विंटरनिट्स के अन्तर्गत है, लेकिन छेद सूत्र अंगबाह्य हैं वे किस अनुयोग के ने इन दोनों का छेदसूत्रों के अन्तर्गत समावेश किया है। अन्तर्गत होंगे? निशीथ-भाष्यकार ने छेदसूत्रों का समावेश दिगम्बर-साहित्य में कल्प, व्यवहार और निशीथ-इन तीन चरणकरणानयोग के अन्तर्गत किया है। ग्रन्थों का ही उल्लेख मिलता है, जिनका समावेश अंगबाह्य में pootomorrorderdrobardwardroborderindiadrid-९१kidniridiroonbroideodworkedwidwobooranorambanda Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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