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________________ यतीन्द्र सूरि स्मारकगन्य - जैन आगम एवं साहित्य - कि ये दोनों भद्रबाहु भी भिन्न-भिन्न व्यक्ति थे, परन्तु नियुक्तिकार व्याख्या की गई है। इसके बाद की नियुक्तियों में उन विषयों की भद्रबाहु इन दोनों से भिन्न तीसरे व्यक्ति थे। ये चतुर्दशपूर्वधर संक्षिप्त चर्चा करते हुए विस्तृत व्याख्या के लिए आवश्यकनियुक्ति भद्रबाहु न होकर विक्रम की छठी शताब्दी में विद्यमान एक अन्य की ओर संकेत कर दिया गया है। इस दृष्टि से अन्य नियुक्तियों ही भद्रबाहु हैं जो प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् वाराहमिहिर के भाई माने को समझने के लिए आवश्यकनियुक्ति का ज्ञान आवश्यक है। जाते हैं। नियुक्तियों में इतिहास की दृष्टि से भी अनेक ऐसी बातें जैन आगामिक साहित्य में आवश्यक-सूत्र का विशेष स्थान है। आई हैं जो श्रुतकेवली भद्रबाहु के बहुत काल बाद घटित हुई। इसमें छः अध्ययन है। प्रथम अध्ययन का नाम सामयिक है। अतः नियुक्तिकार भद्रबाहु द्वितीय हैं जो छेदसूत्रकार शेष पाँचों अध्ययनों के नाम चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, श्रुतकेवलीभद्रबाहु से भिन्न हैं। इनका समय विक्रम सं.५६२ के कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान है। आवश्यकनियुक्ति इसी सूत्र की लगभग है। ये अष्टांगनिमित्त मंत्रविद्या के पारगामी अर्थात् नैमित्तिक आचार्यभद्रबाहुकृत पद्यात्मक प्राकृतव्याख्या है। इसी व्याख्या के रूप में भी प्रसिद्ध हैं .इन्होंने अपने भाई के साथ धार्मिक के प्रथम अंश अर्थात् सामायिक अध्ययन से सम्बन्धित नियुक्ति स्पर्धाभाव रखते हुए “भद्रबाहु संहिता" एवं "उपसर्गहरस्तोत्र" की विस्तृत व्याख्या आचार्यजिनभद्र ने विशेषावश्यकभाष्य की रचना की। इन दो ग्रंथों के अतिरिक्त इन्होंने निम्न दस नाम से की है। इस भाष्य की भी अनेक व्याख्याएँ हुई हैं, जिनमें नियुक्तियों की रचना की - १. आवश्यकनियुक्ति, २. मलधारी हेमचन्द्रकृत व्याख्या विशेष प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त दशवैकालिकनियुक्ति, ३. उत्तराध्ययननियुक्ति, ४. आचारांगनियुक्ति, आवश्यकनियुक्ति पर अनेक टीकाएँ लिखी गई हैं जो प्रकाशित ५. सूत्रकृतांगनियुक्ति, ६. दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति, ७. कल्प- भी हैं। उनमें से मलयगिरिकृतवृत्ति, हरिभद्रकृतवृत्ति, मलधारी (बृहत्कल्प) नियुक्ति, ८. व्यवहारनियुक्ति, ९. सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति, हेचन्द्रकृत प्रदेशव्याख्या तथा चन्द्रसूरिकृत प्रदेशव्याख्याटिप्पण, १०. ऋषिभाषितनियुक्ति। माणिक्यशेखरकृत आवश्यकनियुक्तिदीपिका, जिनदासगणि आचार्यभद्रबाहु की इन दस नियुक्तियों का रचनाक्रम महत्तरकृतचूर्णि एवं विशेषावश्यक की जिनभद्र की स्वोपज्ञवृत्ति वही है, जिस क्रम में उन्होंने आवश्यकनियुक्ति में प्रमुख ह। नियुक्तिरचनाप्रतिज्ञा की है। नियुक्तियों में जो नाम, विषय उपोद्घात् - आवश्यकनियुक्ति के प्रारम्भ में उपोद्घात है, इसे आदि आए हैं, वे भी इस तथ्य को प्रकट करते हैं।' इस ग्रन्थ की भूमिका कहा जा सकता है। इसमें ८८० गाथाएँ हैं। ___इन दस नियुक्तियों में से सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित की उपोद्घात में आभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मनः पर्यय और नियुक्तियाँ अनुपलब्ध हैं। ओघनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति, केवल इन पाँच प्रकार के ज्ञान, इनके अवान्तर भेद, प्रत्येक का पंचकल्पनिर्यक्ति और निशीथनियुक्ति क्रमश: आवश्यकनिर्यक्ति, काल-प्रमाण, आभिनिबोधिक ज्ञान की निमित्तभूत पाँच इन्द्रियाँ, दशवैकालिकनियुक्ति, बृहत्कल्पनियुक्ति और आचारांगनियुक्ति आभिनिबोधिक ज्ञान के समानार्थक शब्द, अक्षर, संज्ञी, सम्यक्, की पूरक हैं। संसक्तनियुक्ति क्रमशः आवश्यक, दशवैकालिक, सादिक,सपर्यवसित, गमिक, अंगप्रविष्ट, अनक्षर, असंज्ञी, मिथ्या, बृहत्कल्प और आचारांगनियुक्ति की पूरक है। संसक्तनियुक्ति अनादिक, अपर्यवसित, अगमिक और अंगबाह्य° इन चौदह बाद के किसी आचार्य की रचना है। गोविन्दाचार्यप्रणीत प्रकार के निक्षेपों के आधार पर श्रुतज्ञान, उसके स्वरूप व भेद गोविन्दानियुक्ति वर्तमान में अनुपलब्ध है। एवं अवधि तथा मन:पर्ययज्ञानके स्वरूप व प्रकृतियों की विशद विवेचना की गई है। इसे ज्ञानाधिकार भी कहते हैं। इसके बाद आवश्यक नियुक्ति षडावश्यकों में से सामायिक को सम्पूर्णश्रुत के आदि में रखते आचार्यभद्रबाहु प्रणीत दस नियुक्तियों में आवश्यकनियुक्ति है। इसका कारण यह है कि हैं। इसका कारण यह है कि श्रमण के लिए सामायिक का की रचना सर्वप्रथम हुई है। यही कारण है कि यह नियुक्ति अध्ययन सर्वप्रथम अनिवार्य है। सामायिक के अध्ययन के कथ्य, शैली आदि सभी दृष्टियों से अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस पश्चात् हा अन्य आगम साहित्य के पढ़ने का विध नियुक्ति में अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों की विशद एवं व्यवस्थित चारित्र का प्रारम्भ ही सामायिक से होता है, इसलिए चारित्र की पाँच भूमिकाओं में प्रथम सामायिक चारित्र की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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