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- यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य - 'क्रियाविहीना: खरवद् वहन्ति।' अर्थात् बिना क्रिया के ज्ञान गधे कल्पवृक्षोऽस्ति वृक्षेषु श्रेष्ठः प्राणिषु मानवः। के समान बोझा ढोना है।
तद्वत् सर्वेषु लोकेषु, चारित्रमुत्तमं स्मृतम्॥ अठारह पापों में से एक मिथ्यादर्शन को छोड़कर शेष जैसे वृक्षों में कल्पवृक्ष, तथा सब प्राणियों में मनुष्य श्रेष्ठ सत्रह पाप चारित्र से रुकते हैं। अतः बिना चारित्र के मनुष्य छत माना गया है, वैसे ही चारित्र तीनों लोगों में श्रेष्ठ है। रहित मकान जैसा है जिसमें वह आनंद से ही नहीं रह सकता।
आत्मनः शुद्धिकरणं, दोषध्वान्तनिवारकम्। आचरण की एक बूंद भी विचारों के समुद्र से अधिक कर्मधूरिहरं प्रोक्तमक्षयं सुखदायकम्।। प्रभावकारी होती है। आचरण के कण के समक्ष विचारों का मण - यह चारित्र आत्मा की शुद्धि करने वाला, दोष रूपी भी नगण्य है। चक्रवर्ती सम्राट् और देवेन्द्र भी एक मुनि का . अन्धकार को दूर करने वाला, कर्मरज को दूर करने वाला और चारित्र के कारण ही वंदन करते हैं। स्वामी विवेकानंद जब अक्षय सुख का दाता है। अमेरिका गए थे तब उनके पहनावे को देखकर लोग उन पर
चारित्र सर्वोत्तम आभूषण है, इससे बढ़कर संसार में कोई हँसते थे। किन्तु वे चारित्रवान् थे, उन्होंने कहा कि- “तुम्हारी
आभूषण नहीं हैसंस्कृति को दर्जी सीता है, जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण चारित्र करता है।" स्वामीजी के आत्मबल और चारित्रबल का
सत्यैकभूषणा वाणी, विद्या विरतिभूषणा। उन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि वे स्वामीजी के भक्त बन गए।
धर्मकभूषणा मूर्तिः, लक्ष्मी सद्दानभूषणा।
सत्य का भषण वाणी, विद्या का भूषण विरति, धर्म का महात्मा गांधी जब लंदन में पढ़ते थे, तब एक पादरी उन्हें
भूषण मर्ति और लक्ष्मी का भूषण सद्दान है। ये चारों ही भषण नित्य भोजन करने घर बुलाता था। पर गांधीजी को ईसाई बनाना चाहता था। गांधी के लिए वह शाकाहारी भोजन बनाता
चारित्र महाभूषण के ही अंग हैं। था। जब पादरी के बच्चों ने गांधीजी से मांस नहीं खाने का सम्यक् चारित्र के बिना त्रिकाल में भी सद्गति संभव कारण पूछा तो गांधीजी ने उन्हें अहिंसा का महत्त्व समझाया। नहीं है। आगम में कहा गया है - गांधीजी के चारित्र का बच्चों पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि बच्चों ने जहा खरो चंदनभाववाही, भारस्स भागी न तु चन्दनस्स। भी मांस खाना छोड़ दिया। फिर तो पादरी ने गांधीजी को बुलाना एवं खुणाणी चरणेण हीणओ, णाणस्स भागी न तु सग्गईए। ही बंद कर दिया।
चंदन को ढोने वाला गधा भार का ही भागीदार होता है, आचरण में बड़ी शक्ति होती है। आचरणवान् व्यक्ति चंदन का भागीदार नहीं होता। इसी प्रकार चारित्र के बिना ज्ञानी बैठा रहे, कुछ भी नहीं बोले, तो भी उसका प्रभाव पड़े बिना नहीं मात्र ज्ञान का भार ढोता है, वह सुगति को प्राप्त नहीं कर सकता। रहता है। कहा गया है
चारित्र के बिना चौदहपूर्वधारी महाज्ञानी भी संसार में आचार विचार का द्योतक है, चाहे वह कुछ भी कहे नहीं। परिभ्रमण करते हैं और नरक निगोद तक में जाते हैं। घनपटल बीच रहकर भी रवि, चलने में पीछे रहे नहीं। आवश्यकनियुक्ति में कहा गया है
चारित्राष्टक में एक मुनि ने चारित्र की महिमा कितने सुन्दर "चरणगुण विप्पहीणो, बुड्डइ सुबहुं पि जाणंतो।" . शब्दों में गायी है
बहुत शास्त्रों का ज्ञाता भी चारित्र के बिना संसार-समुद्र में वनेषु नन्दनः श्रेष्ठः, ब्रह्मचर्यव्रतं व्रते। निरवद्यं वचः सत्यं, तथा चारित्रमुत्तमम्॥
डूब जाता है। जैसे वनों में नन्दनवन, व्रतों में ब्रह्मचर्य, वचनों में निर्दोष ।
__ व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए चारित्र की
अत्यंत आवश्यकता है। आज संसार में जो अशान्ति, युद्ध, सत्य वचन श्रेष्ठ है, वैसे ही सभी साधनाओं में चारित्र श्रेष्ठ है।
दुःख, रोग, अनैतिकता आदि बढ़ रहे हैं, उन सबका मूल कारण
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