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________________ श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी अभिनन्दन ग्रंथ के विमोचन समारोह अंखियों के झरोखे से........ आज गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की क्रियोद्धारक पुण्यभूमि जावरा के त्रिस्तुतिक समाज का प्रत्येक सदस्य अत्यंत प्रसन्न नजर आ रहा है। नगर में अनेकों परिवारों में बाहर से पधारे हुए अतिथियों के साथ धार्मिक वातावरण बना हुआ है। दोपहर १२.०० बजे के बाद का समय समाज की बहनें केशरिया रंग की पोषाखें धारण किये हुए पुरुष वर्ग श्वेत वस्त्र धारण किये हुए पीपली बाजार के प्राचीन एवं ऐतिहासिक जैन मन्दिर के परिसर में आज की भव्य शोभायात्रा में सम्मिलित होने हेतु एकत्र हो रहे हैं। गुरुदेव के चित्र से सजी हुई शोभायात्रा विजय मुहुर्त में मन्दिर प्रांगण से प्रारम्भ होकर बेण्ड पर गुरुदेव की मधुर गीतों की धुनों के साथ, ढोलों के उच्च उद्घोष के बीच नगर के प्रमुख मार्गों से निकल रही है। बहनों ने जरी और रेशम के वस्त्र में लिपटे ग्रंथ को रजत मंजूषा में रखकर अपने मस्तक पर ससम्मान उठाते हुए आज की इस शोभायात्रा को गरिमा प्रदान की है। जिनशासन और गुरुदेव की जयघोष करता हुआ यह जनप्रवाह प.पू.ज्योतिषाचार्य, मालवरत्न मुनिराज श्री जयप्रभविजयजी म.सा., "श्रमण' ,प.पू. प्रवचनकार मुनिराज श्री हितेशचन्द्र विजयजी म.सा., प.पू. मुनिराज श्री दिव्यचन्द्रविजयजी म.सा. की पावन निश्रा में नगर के वातावरण को गुरु भक्तिमय बनाते हुए लगभग दोपहर २.३० बजे श्री राजेन्द्रसूरि जैन दादावाड़ी के प्रांगण में निर्मित यतीन्द्र पाण्डाल में पहुंचता है, जहां आकर्षक सज्जा के साथ विशाल मंच एवं पाण्डाल बनाया गया है। ____ मुनि मण्डल, आमन्त्रित अतिथिगण, समाज के वरिष्ठ एवं युवा साथी तथा बहनें गुरुदेव को अपना वन्दन करते हुए उनकी प्रतिमा से आज के कार्यक्रम हेतु आशीर्वाद ग्रहण करते हुए विशाल पाण्डाल में पधारते हैं। उपस्थित समुदाय द्वारा जिनशासन एवं गुरुदेव की जयघोष के साथ पाण्डाल को गुंजायमान करते हुए मुनिमण्डल एवं आमंत्रित अतिथियों का स्वागत करता है। मंच के उद्घोष श्री विशाल छाजेड़ कार्यक्रम के आगामी संचालन हेतु लायन्स क्लब जावरा के अध्यक्ष - आनन्दीलाल संघवी को आग्रह के साथ आमंत्रित कर संचालन का दायित्व सौंपते हैं। पुनः जयघोष के साथ संचालक द्वारा आमंत्रित अतिथियों से गुरुदेव के चित्र को माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन के साथ कार्यक्रम प्रारंभ करने का आग्रह किया जाता है। अतिथि श्री के.के. सिंग (उपाध्यक्ष म.प्र. कृषि विपणन संघ, भोपाल), श्री नवकृष्णजी पाटील (विधायक मन्दसौर), प्रमुख वक्ता श्री सागरमलजी जैन (शाजापुर), श्री रमणभाई ची., शाह, मुम्बई, आयोजन के लाभार्थी श्री सुभाषचंद्रजी राजमलजी नागदा खाचरौद, श्री रमेशचन्द्रजी खटोड़ मनावर, श्री राजेन्द्रकुमारजी मेहता मुम्बई, जावरा श्री संघ, श्री दादावाड़ी ट्रस्ट के पदाधिकारी, स्वागताध्यक्ष श्री बाबुलालजी खेमसरा, कार्यक्रम संयोजक श्री धर्मचन्दजी चपड़ोद, श्री राजेन्द्र जैन नयुवक मण्डल अध्यक्ष महेन्द्र गोखरू, सचिव अभय चौपड़ा दीप प्रज्जवलन एवं माल्यार्पण का दायित्व निर्वाह कर गुरुदेव एवं मुनिश्री का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक मण्डल, श्री जावरा श्री संघ, श्री दादावाड़ी ट्रस्ट, श्री चौपाटी ट्रस्ट, श्री हेमेन्द्रसूरि सेवा मण्डल, श्री राजेन्द्र गुरू मित्र मण्डल, श्री राजेन्द्र श्रमण विद्यापीठ, श्री राजेन्द्रसूरि जैन फेडरेशन, महिला फेडरेशन के पदाधिकारियों द्वारा अतिथियों का पुष्पमालाओं से भावभीना स्वागत किया जाता है । इसी के साथ स्वागताध्यक्ष श्री बाबुलालजी खेमसरा द्वारा शब्द सुमनों से अतिथियों एवं आमंत्रित संघ का स्वागत किया गया। कार्यक्रम संयोजक श्री धरमचन्दजी चपड़ोद ने कार्यक्रम की जानकारी प्रदान करते हुए लगभग १२०० पृष्ठ के इस ग्रन्थ एवं इसके संयोजनकर्ता प.पू. मनिराज श्री जयप्रभ विजयजी म.सा. के अथक परिश्रम और प्रयासों की जानकारी देते हुए इसे एक ऐतिहासिक ग्रंथ बताया। ग्रंथ के संपादक मंडल के सदस्य श्री पुखराजजी ताराचंदजी बागरा ने ग्रंथ प्रकाशन की योजना एवं आचार्य देव श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के जीवन के संस्मरण प्रस्तुत कर भविष्य में अपने आपको समाज सेवा हेतु समर्पित करने का संकल्प व्यक्त किया। अनेकों जैन ग्रंथों के रचियता एवं तीर्थकर परिचय के लेखक, गुजराती एवं हिन्दी के प्रख्यात श्री रमणभाई ची. शाह ने अपने उद्बोधन में अमुद्रित जैन साहित्य के प्रकाशन का आग्रह करते हुए इस ग्रंथ प्रकाशन में आने वाली समस्याओं के संस्मरण प्रस्तुत किये। आगम वाचस्पति और अनेकों आचार्यों व जैन मुनियों के मार्गदर्शक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के पूर्व निर्देशक तथा ग्रंथ के प्रधान संपादक श्री सागरमलजी जैन, शाजपुर ने समस्त जैन श्रीसंघों और आचार्यों से आग्रह के साथ कहा कि "जितना खर्च आज हम अपने कार्यक्रमों की पत्रिकाओं पर कर रहे हैं, यदि उसका कुछ अंश भी जैन साहित्य शोध संस्थान पर खर्च किया जाये तो हम आने वाली पीढ़ी के लिये कुछ करते हुए साहित्य और समाज रक्षा हेतु प्रयास कर सकेंगे। परन्तु इस कार्य हेतु समर्पण, सक्रियता और जागरूकता की आवश्यकता है।" प.पू. मुनिराजश्री हितेशचन्द्रविजयजी म.सा. ने अपने गुरू की जयप्रभविजयजी म.सा. के चरणों में अपना नमन प्रस्तुत करते हुए कहा कि शारीरिक रूप से अस्वस्थता के बावजूद भी इस ग्रंथ का संयोजन मुनिश्री के प्रबल आत्मविश्वास और साहस का ही प्रतिफल है। आपने बताया कि मुनिराजश्री ने विगत वर्षों में जैन साहित्य की १० हजार पुस्तकों का संकलन किया है और निकट भविष्य में श्री राजेन्द्र श्रमण विद्यापीठ के माध्यम से हम श्री सागरमलजी जैन की भावनाओं को पूर्ण करने का प्रयास कर रहे हैं। इस हेतु श्री राजेन्द्रसूरि जैन दादावाड़ी के सामने ही श्री चिमनलालजी, महेन्द्रकुमारजी गोखरू परिवार द्वारा भूमि दान की घोषणा की गई है, जिस पर जल्द ही निर्माण कार्य प्रारंभ हो जायेगा। ग्रंथ का विमोचन करते हुए कार्यक्रम की मुख्य अतिथि श्रीमती जमुनादेवी (उपमुख्यमंत्री म.प्र. शासन) ने अपने आपको श्री मोहनखेड़ा तीर्थ की सेविका निरूपति करते हुए कहा कि विश्व में शांति स्थापना हेतु जैन धर्म का महत्वपूर्ण योगदान है और अब विश्वशांति और भाईचारे के प्रयास हेतु महिलाओं को आगे आकर कार्य करना होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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