SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व श्री यतीन्द्रसूरि - दीक्षा - शताब्दी | कुमारी सोनाली लोढा, जावरा, निशा श्रीमुख पर रहती थी सदा प्रसन्न मद्रा खिली-खिली य यकीनन जिनके जीवन की ज्योति जग-आलोकहित जली ती तीक्ष्ण बुद्धि के स्वामी विमल वृत्तियाँ जीवन में ढली । । न् न्याय-त्याग की सरस धारा जीवन में बहती चली । द्रवणशील अन्तर में वैराग्य की तरंगावलि पली । RREFERE । । । सू सूझ-बूझ से निर्मल, निश्छल, मृदुल भाव विश्व में बिखेरे रिक्त हृदय को स्नेह से भर दे वाणी के थे ऐसे चितेरे दी दीप्त जगत् को कर दिया ऐसा था जिनका आचार क्षा क्षार को मिश्री कर दे ऐसे थे अनुपम विचार श शत् - शत् नमन् हो चरणों में गुरुदेव हैं अनंत उपकारी । । । ता तारना हमें भी ओ जिनशासन के प्रबल प्रचारी ब् बलिदान कई किये जिसने साधना में जिंदगी गुजारी दी दीनदयालु चरणों में हैं आपके यही है विनती हमारी मना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy