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- यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व - इन्हीं शब्दों से 'सुकुंबरा श्रमण' में स्थविरकल्पी मुनियों की पहचान कराई गई है, जिससे स्पष्ट होता है कि जैन साधुओं को श्वेत वस्त्र रखना चाहिए। तीर्थंकरों ने केवल ज्ञान से ऋजुजड़, ऋजुप्राज्ञ और वक्रजड़ इन तीन प्रकार के पुरुषों की स्वाभाविक प्रकृति को देखकर वस्त्र रखने की अनुज्ञा दी है। उनके अनुसार प्रथम व अंतिम तीर्थंकरों के साधु ऋजुजड़ और वक्रजड़ होने से वस्त्रों पर मोहित हो सकते हैं, अतः श्वेत
वस्त्र रखने की अनुज्ञा दी है। ४. आनंदचन्द्र मुनि द्वारा लिखित 'आगम विचार संग्रह के २०वें पत्र में किए गए उल्लेख से भी
सा यही स्पष्ट होता है कि जैन साधुओं को केवल श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिए। ५. श्री यशोविजयोपाध्यायारचित .. सझ्झाय 'रंगेल कपड़ा खंभे घावली
एहनुं नाम न लीजे' इस सझ्झाय की निम्न पंक्तियों में भी स्पष्ट किया गया है कि जैन साधुओं को रंगे हुए वस्त्र नहीं धारण करने चाहिए। तपागच्छ के प्रख्यात आचार्य श्री विजयदेव सूरीश्वरजी महाराज के प्रसादीकृत 'साधु मर्यादा पद्धक' में भी स्पष्ट रूप से लिखा है कि जैन श्वेताम्बरी साधुओं को रंगे हुए वस्त्र धारण नहीं
करने चाहिए। सय ७. गच्छाचार पयन्ना के प्रथमाधिकार की २६वीं गाथा
आज्ञां तीर्थंकरोपदेशवचनरूपां ....... ........... सावधाचार्य स्मेव ज्ञेयम। इस टीका भावार्थ भी यही है कि जो साधु तीर्थंकरों की उपदेश वनचरूप आज्ञा का उल्लंघन करता हुआ वस्त्र धारण करता है, वह आचार्य पुरुषाधम है, इसी प्रकार -
आचारांग २ श्रु.५ अ.२ उद्देश्य एवं
९. आचारांग १ श्रु. ५ अ. ४ उद्देश्य से भी यही स्पष्ट होता है कि जैन साधुओं को श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिए।
उपर्युक्त प्रमाणों को प्रस्तुत करने के साथ ही मुनिश्री ने स्पष्ट किया कि यथार्थ में वस्त्र स्थविरकल्पी मुनियों को संयम निर्वाह और लोकलज्जा के निमित रखने पड़ते हैं। शोभा या शोक के लिए नहीं। वस्त्रों को रँगने का कारण ही शोभा या शोक है, अन्यथा वस्त्रों को रँगने की आवश्यकता ही क्या है ? यदि इसके प्रत्युत्तर में यह कहा जाता है कि जो शिथिल हुए हैं, उनसे भेद दिखलाने हेतु वस्त्र रँगे गए हैं, तो यह तथ्य भी मान्य नहीं हो सकता, क्योंकि साधुधर्म की योग्यता क्रिया पर निर्भर है. वस्त्र रंजन पर नहीं। जो साधसाध्वी सदाचारी हैं, संयम क्रिया में रहते हैं और अप्रतिबद्ध विहार करते रहते हैं. उनको समाज के लोग वैसे ही जान सकते हैं कि यह साधु-साध्वी उत्तम व क्रियापात्र हैं।
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