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- यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व इसी प्रकार ग्राम वाघासन (वाकडाऊ) के अनेक किसानों ने आप के उपदेश से प्रेरणा लेकर खेतों में एकत्र किए हुए कचरे को, जिसे सूड़ कहा जाता है, जलाने का त्याग किया। सूड को जलाने से इसमें छिपे हुए असंख्य जीव जलकर मर जाते थे। सूड़ जलाने का त्याग कर यहाँ के किसानों ने आचार्य के साथ ही अहिंसा के प्रति अपनी भक्ति-भावना का परिचय दिया।
मारवाड़ से विहार कर आप अपने शिष्यों के साथ मालवा में पधारे और वि.सं. २०१२ का वर्षावास आप ने राजगढ़ (धार) में व्यतीत किया। वर्षावास की समाप्ति के पश्चात् आप ने राजगढ़ से विहार कर दिया और मार्गवर्ती ग्राम-नगरों में जिनवाणी की अमृतवर्षा करते हुए आप जावरा पधारे। जावरा में आप का नगर प्रवेश समारोहपूर्वक हर्षोल्लासमय वातावरण में हुआ। इस अवसर पर आप ने अपने प्रवचन में ज्ञान-प्रसार की बात के साथ ही संगठन की एकता पर भी जोर दिया। यहाँ आपके सम्मुख यह बात आई कि पिपलौदा के जाति भाई ५०० ओसवाल घर लगभग तीन सौ वर्षों से जाति से बहिष्कृत हैं। आप ने इन जाति भाइयों को पुनः जाति में सम्मिलित करने के लिए उपदेश दिए। एकता पर जोर दिया। परिणाम शीघ्र ही सामने आए। दो ही दिन में जावरा श्री संघ ने खाचरौद, रतलाम, बड़नगर, इन्दौर, उज्जैन, नागदा, महिदपुर, निम्बाहेड़ा, नीमच, मंदसौर आदि आसपास के समाज के प्रतिनिधियों को बुलाकर सर्वसम्मति से पिपलौदा के जाति-भाई ओसवाल घरों के साथ खान-पान आदि व्यवहार प्रारम्भ करने की आचार्य भगवन् के सम्मुख घोषणा की। a इस घोषणा के साथ ही चहुँ ओर हर्ष व्याप्त हो गया। आनन्द की लहर छा गई। इस प्रकार तीन सौ' वर्षों से बहिष्कृत जाति-भाइयों का समाज में मिलन हुआ। आप की प्रेरणा से खाचरौद वर्षावास के समय खाचरौद में भी पिपलौदा समाज के साथ खान-पान आदि शुरू करने का प्रस्ताव पारित रखा हुआ। F उपर्युक्त उद्धरणों से स्पष्ट हो जाता है कि आचार्य भगवन संघ-एकता के प्रति सजग थे। साथ ही वे व्यसन-मुक्त समाज का भी निर्माण करना चाहते थे। यदि उनके समग्र जीवन का गहराई से अध्ययन किया जाए, तो सम्भव है, ऐसे और भी अनेक उदाहरण मिल सकते हैं। उनके इन कार्यों से उनका समाजसुधारक का एक नया रूप हमारे सामने प्रकट होता है। वैसे यहाँ एक बात स्पष्ट करना प्रासंगिक ही होगा कि गुरुदेव आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का व्यक्तित्त्व ही इतना प्रभावशाली था कि उनके कथन का विरोध करने का साहस भी कोई जुटा नहीं पाता था। उनकी ओजस्वी वाणी और तेजस्वी व्यक्तित्व के सम्मुख प्रत्येक दर्शनार्थी स्वतः उनके समक्ष नतमस्तक होकर श्रद्धावनत हो जाया करता था।
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