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हे जिन्होको साधुवाद
महापुरुषो की जन्म तिथि, स्वर्गगमन तिथि, और यदि संत/आचार्य हुए तो दीक्षा तिथि, आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने की तिथि आदि तिथियों का विशेष महत्व होता है। उनके अनुयायी इन तिथियों के अवसर पर विशेष आयोजन कर अपने आराध्य का गुणगान कर उन्हे अपनी हार्दिक भावंजली देते है। इतना ही नहीं कभी कभी उनकी स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए कुछ स्थाई प्रकार के ऐसे कार्य भी करते है। जो सार्वजनिक हित में होते हुए उनकी कीर्तिपताका फहराते रहे । पूज्य गुरुदेव व्याख्यान वाचस्पति, बाल ब्रह्मचारी, आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. भी एक महापुरुष थे । इसके साथ ही वे तीर्थ निर्माता, तीर्थोद्धारक, आओजस्वी वक्ता, पीताम्बर विजेता, आगममनीषी, गम्भीर गणनायक एवं महान साहित्यकार, सम्पादक भी थे । वे एक कुशल संगठक भी थे।
मात्र 14-15 वर्षकी वासंतीवय में उन्होने अपना जीवन गुरुदेव प्रातः स्मरणीय, विश्व पूज्य जैनाचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. के श्री चरणों मे समर्पित कर दिया था। इसके पश्चात पू. गुरुदेव के चरणों में रहते हुए आपने काफी विकास किया । परिणाम स्वरुप केवल चालिस वर्ष की आयु में आपने आचार्य श्री सागरानन्द सूरि को शास्त्रार्थ में पराजित कर एक स्व-गुरुगच्छ का ध्वज फहरा दिया।
_पू. गुरुदेव ने आपकी प्रतिभा को काफी पहले ही जान लिया था फलस्वरुप उन्होने अपने अन्तीम समय में 23 वर्ष की उम्र में आपके सुदृड़ कंधो पर संघ और समाज का उत्तरदायित्व डाल दिया था । पू. गुरुदेव श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी म. सा.केस्वार्गगमन के पश्चात आचार्य श्रीमद्विजय धनचन्द सूरीश्वरजी म. सा. एवं उनके पश्चात आचार्य श्रीमद्विजय भूपेन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. के नेतृत्व में आपने संघ एवं समाज हित मे अनेक कार्य सम्पन्न किये/करवाये तत्पश्चात आचार्य पद का दायित्व भी आपके ही कन्धो पर आ गया।
पूज्यश्री ने अपने सम्पूर्ण संयम काल में अनेक महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित किये जो आप ही आपकी कीर्ति का गुणगान कर रहे है । उन सबका विवरण प्रस्तुत ग्रन्थ के अन्दर पढ़ने को मिलेगा । शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त कर आपने अपनी ज्ञान गरिमा प्रकट कर दी, लक्ष्मणी तीर्थ (जिला- झाबुआ) की स्थापना की जिससे आप तीर्थ निर्माता कहलाये । श्री भाण्डवपुर तीर्थ का जिर्णोद्धार करवाकर आप तीर्थोद्धारक कहलाये । इसी प्रकार आपने श्री मोहनखेड़ा तीर्थ के विकास में भी अपना अनुपम 64 वर्ष तक योगदान दिया है इससे आज यह तीर्थ देश के महान जैन तीर्थो मे से एक है, एवं अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि में गणना अग्रगण्यता में होती है।
पू. गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा रचित श्री अभिधान राजेन्द्र कोष का कुशलता पूर्वक सम्पादन कर उसे मुद्रित करवाकर आप एक कुशल सम्पादक के रुप में हमारे सामने आते है । इतना ही नहीं आपने लगभग साठ से भी अधिक विभिन्न विषयों से सम्बन्धित पुस्तको की रचना की है जिससे आप एक साहित्यकार आचार्य भगवन्त के रुप में विख्यात हुए। आप गुण ग्राहक भी थे विद्वानों का आप सदैव सम्मान करते थे, करवाते थे आपने कुछ विद्वानो की प्रतिभा पहचान कर उनसे भी उच्च कोटी के ग्रन्थो की रचना करवाई । वैसै ग्रन्थ आज दुर्लभ हो गये है।
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