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________________ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व - आचार्यश्री द्वारा रचित अन्य चरित्र ग्रंथों में - १. अघट कुमार चरित्रम्, २. रत्नसारचरित्रम्, ३. हरिबलधरचरित्रम्, ४. श्री जगडूशाहचरित्रम्, ५. श्री कयवन्नाचरित्रम्, ६. श्री चम्पकमालाचरित्रम् आदि भी हैं। ये चरित्र रचनाएँ, सामान्यतः साधु-साध्वियों के प्रवचन के लिए उपयोगी हैं। इनके चरित्र शिक्षाप्रद है। इनके दृष्टांतों से धर्माराधना की ओर प्रवृत्ति को आलम्बन मिलता है। चरित्र रचनाओं के विवरण के पश्चात् अब यहाँ कुछ अन्य रचनाओं का परिचय देने का प्रयास किया जा रहा है। ये विविध विषयों की रचनाएँ इस प्रकार हैं १. भावना स्वरूप - यह पुस्तक सरल हिन्दी भाषा में है। यह अनित्यादि बारह भावनाओं का अत्यल्प स्वरूप जानने के लिए अच्छे वैराग्य रस की पोषक है। २. गौतमपृच्छा - किसी जैनाचार्य द्वारा रचित ६४ प्राकृत गाथाओं वाला गौतमपृच्छा नामक एक छोटा-सा ग्रंथ है। उसका यह हिन्दी अनुवाद है। संसार में कोई राजा है तो कोई रंक, कोई सुखी है तो कोई दुःखी, कोई काना है तो कोई अंधा, कोई लूला है, तो कोई कुबड़ा और कोई बहरा है, तो कोई मूक। यह सब किन-किन कर्मों से उदित होता है। इस बात को समझने के लिए यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी है। ____ सत्यबोधभास्कर - इस पुस्तक का दूसरा नाम 'प्रतिमासंसिद्धि है। स्थानकवासी सम्प्रदाय. के लोग मूर्तिपूजा और मूर्तिप्रतिष्ठा के विरुद्ध हैं। नाना प्रकार के प्रश्न करते हैं। इन्हीं प्रश्नों के युक्ति संगत उत्तर इस पुस्तक में हैं। उत्तरों में जिनेन्द्रों की प्रतिमा-प्रतिष्ठा की आवश्यकता और उपयोगिता बताई गई है। इसके अतिरिक्त शास्त्राभ्यास, व्याकरण के अध्ययन की आवश्यकता, युक्तियुक्त प्रश्नोत्तर आदि का भी विवेचन किया गया है। पुस्तक उपयोगी है। ४. गुणानुराग-कुलकम् - इस पुस्तक में श्री जिन हर्षगणि निर्मित २९ आर्यावृत्त-प्राकृत भाषा में हैं। परन्तु आप ने उसका विस्तृत विवेचन करके ग्रंथ का आकार मूल से कई गुना बढ़ा दिया है। आप ने प्राकृत-गाथाओं की संस्कृत छाया, उसका शब्दार्थ और उनका भावार्थ भी लिख दिया है। आप के द्वारा किया गया विवेचन अति सुन्दर और शिक्षाप्रद है। इसकी भूमिका में आप ने लिखा है - 'जो मनुष्य विवेचन-गत सिद्धांतों के अनुसार अपने चाल-चलन को सुधारेगा, वह संसार में आदर्श पुरुष बनकर अपना और दूसरों का भला कर सकेगा।' यह कथन निःसंदेह सत्य है। पुस्तक अत्यंत उपयोगी है। इस पुस्तक की अनेक तत्कालीन विद्वानों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है। ५. जन्म-मरण सूतक निर्णय - इस पुस्तक में जन्म-मरण सूतक का विस्तृत विवरण है। सूतक सम्बन्धी झंझट को दूर करने के लिए यह पुस्तक महत्त्वपूर्ण है। ६. जीवभेद-निरूपण - (हिन्दी) - इस पुस्तक की रचना जैन पाठशालाओं में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए जीवविचार आदि ग्रंथों के आधार पर की गयी है। इस पुस्तक में कुल १६ पाठ हैं। प्रथम आठ पाठों में जीवों के भेद-प्रभेदों का स्वरूप और बाद के आठों पाठों में उनके शरीर, मान, आय, आदि पाँच द्वारों का विवरण दिया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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