________________
- यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व २. सिरोही राज्यान्तर्गत पेथापुर निवासी भगवान जी व जयंतीबाई रेबारी के सुपुत्र देवीचंद को का दीक्षाव्रत प्रदान कर मुनिश्री शांतिविजयजी म.के नाम से विख्यात किया। ३. आहोर निवासी केसरीमल जी व श्रृंगार बहन की सुपुत्री भूरीबहन धर्मपत्नी शा.लक्ष्मीचन्द्र जी
निवासी हरजी को दीक्षा प्रदान कर साध्वीश्री क्षमाश्रीजी के नाम से विख्यात कर गुरुणी श्री
कमल श्री जी की शिष्या घोषित किया। २२. भूति में वि.सं. २००३ मार्गशीर्ष शुक्ला ५ को प्रतिष्ठोत्सव के शुभ अवसर पर जावरा निवासी
भेरूलाल जी व प्यारीबाई के सुपुत्र शांतिलाल को लघु दीक्षा प्रदान कर मुनिश्री देवेन्द्र विजय जी म.के नाम से विख्यात किया।
२३. थराद में वि.सं. २००५ माघ शुक्ला ६ को मुनि विमल विजय जी मुनि सौभाग्य विजयजी, मुनिशांति विजयजी मुनिदेवेन्द्र विजयजी तथा साध्वी श्री प्रसन्नश्रीजी देवेन्द्र श्रीजी, कुसुम श्रीजी कुमुदक्षजी और क्षमाश्री जी को बड़ी दीक्षा प्रदान की।
थराद में ही वि.सं.२००५ माघ शुक्ला६ को आकोली निवासी अब्बाजी की धर्मपत्नी धर्मीबाई को
दीक्षा प्रदान कर साध्वी चंद्रप्रभाश्रीजी के नाम से प्रसिद्ध किया। २५. थराद में ही वि.सं. २००५ माघ शुक्ला ८को मोरसिम जालौर निवासी कैरिंगजी व मनुबाई के सुपुत्र
कानजी को दीक्षा प्रदान कर मुनिश्री रसिक विजयजी म.के नाम से प्रसिद्ध किया। २६. जावरा निवासी भेरूलाल धाड़ीवाल के सुपुत्र कान्तिलाल एवं पेपराल थराद निवासी सरूपचंद
धरु के सुपुत्र पूनमचन्द्र आप के सान्निध्य में विगत आठ वर्षों से रहते हुए धार्मिक अध्ययन कर रहे थे। दोनों युवक दीक्षाव्रत अंगीकार करने के लिए विनती कर चुके थे । अंततः सियाणा वि.सं. २०१० माघ शुक्ला ४ रविवार को दोनों वैरागी युवकों को दीक्षाव्रत प्रदान कर कांतिलाल को मुनिश्री जयप्रभ विजयजी जी.म. तथा पूनमचन्द्र को मुनिश्री जयंत विजयजी म. के नाम से विख्यात किया।
वि.सं. २०११ मगसर वरि १० को आहोट में थराद निवासी माधुलालभाई को दीक्षा देकर
मुनिराज पुण्यविजयजी नाम दिया। वि.सं. २०१२ वैशाख सुदि १२ को अलिराजपुर में भीनमाल निवासी मनोहरमल को दीक्षा देकर
मुनिभूपन वि. जयजी नाम दिया। वि. सं. २०१२ आषाढ़ सुदि ११ को श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में अलिराजपुर निवासी अमोलरवचन्द
व कुक्षी निवासी श्री कमला बहिन को दीक्षा देकर मुनि लक्ष्ममाविजयजी श्री साध्वी स्वयंप्रभाश्रीजी नाम दिया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org