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-यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - आधुनिक सन्दर्भ में जैन धर्म .
लिये दुर्बोध ही था। व्याकरण के अध्ययन की नई सहज एवं बोधगम्य प्रणाली को जन्म देने का श्रेय हेमचन्द्र को है। वह हेमचन्द्र का
था कि परवर्तीकाल में ब्राह्मण-परम्परा में इसी पद्धति को आधार बनाकर ग्रन्थ लिखे गए और पाणिनि के अष्टाध्यायी की प्रणाली पठन-पाठन से धीरे-धीरे उपेक्षित हो गयी। हेमचन्द्र के व्याकरण की एक विशेषता तो यह है कि आचार्य ने स्वयं उसकी वृत्ति में कतिपय शिक्षा सूत्रों को उद्धृत किया है। उनके व्याकरण की दूसरी विशेषता यह है कि उनमें संस्कृत के साथ-साथ प्राकृत के व्याकरण भी दिये गए हैं। व्याकरण के समान ही उनके कोशवन्य, काव्यानुशासन और छन्दानुशासन जैसे साहित्यिक सिद्धान्त ग्रन्थ भी अपना महत्त्व रखते हैं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित और परिशिष्टपर्व के रूप में उन्होंने जैनधर्म की पौराणिक और ऐतिहासिक सामग्री का जो संकलन किया है, वह भी निश्चय ही महत्त्वपूर्ण है। यहाँ उनकी योगशास्त्र, प्रमाणमीमांसा आदि सभी कृतियों का मूल्यांकन सम्भव नहीं है, किन्तु परवर्ती साहित्यकारों द्वारा किया गया उनका अनुकरण इस बात को सिद्ध करता है कि उनकी प्रतिभा से न केवल उनका शिष्यमण्डल अपितु परवर्ती जैन या जैनेतर विद्वान् भी प्रभावित हुए। मुनि श्री पुण्यविजयजी ने हेमचन्द्र की समग्र कृतियों का जो श्लोक-परिमाण दिया है, उससे पता लगता है कि उन्होंने दो लाख श्लोक परिमाण साहित्य की रचना की है जो उनकी सृजनधर्मिता के महत्त्व को स्पष्ट करती है। साधक हेमचन्द्र
हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि एक महान् साहित्यकार और प्रभावशाली राजगुरु होते हुए भी मूलतः हेमचन्द्र एक आध्यात्मिक साधक थे। यद्यपि हेमचन्द्र का अधिकांश जीवन साहित्य सृजन के साथ-साथ गुजरात में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार तथा वहाँ की राजनीति में अपने प्रभाव को यथावत् बनाये रखने में बीता, किन्तु कालान्तर में गुरु से उलाहना पाकर हेमचन्द्र की प्रसुप्त अध्यात्मनिष्ठा पुनः जाग्रत हो गई थी। कुमारपाल ने जब हेमचन्द्र से अपनी कीर्ति को अमर करने का उपाय पूछा तो उन्होंने दो उपाय बताए- १. सोमनाथ के मन्दिर का जीर्णोद्वार और २. समस्त देश को ऋणमुक्त करके विक्रमादित्य के समान अपना संवत् चलाना । कुमारपाल को दूसरा उपाय अधिक उपयुक्त लगा किन्तु समस्त देश को ऋणमुक्त करने के लिये जितने धन की आवश्यकता थी, उतना उसके पास नहीं था, अतः उसने गुरु हेमचन्द्र से धन प्राप्ति का उपाय पूछा। इस समस्या के समाधान हेतु यह उपाय सोचा गया कि हेमचन्द्र के गुरु देवचन्द्रसूरि को पाटन बुल वाया जाए और उन्हें जो स्वर्णसिद्धि विद्या प्राप्त है उसके द्वारा अपार स्वर्णराशि प्राप्त करके समस्त प्रजा को ऋणमुक्त किया जाए। राजा, अपने प्रिय शिष्य हेमचन्द्र और पाटन के श्रावकों के आग्रह पर देवचन्द्रसूरि पाटण आए किन्तु जब उन्हें अपने पाटण बुलाए
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जाने के उद्देश्य का पता चला तो न केवल वे पाटण से प्रस्थान कर गए अपितु उन्होंने अपने शिष्य को अध्यात्म-साधना से विमुख हो लोकैषणा में पड़ने का उलाहना भी दिया और कहा कि लौकिक प्रतिष्ठा अर्जित करने की अपेक्षा पारलौकिक प्रतिष्ठा के लिये भी कुछ प्रयत्न करो। जैनधर्म की ऐसी प्रभावना भी जिसके कारण तुम्हारा अपना आध्यात्मिक विकास ही कुंठित हो जाय तुम्हारे लिये किस काम की? कहा जाता है कि गुरु के इस उलाहने से हेमचन्द्र को अपनी मिथ्या महत्त्वाकांक्षा का बोध हुआ और वे अन्तर्मुख हो अध्यात्म साधना की ओर प्रेरित हुए। १६ वे यह विचार करने लगे कि मैंने लोकैषणा में पड़कर न केवल अपने आपको साधना से विमुख किया अपितु गुरु की साधना में भी विघ्न डाला। पश्चात्ताप की यह पीड़ा हेमचन्द्र की आत्मा को बराबर कचोटती रही जो इस तथ्य की सूचक है कि हेमचन्द्र मात्र साहित्यकार या राजगुरु ही नहीं थे अपितु आध्यात्मिक साधक भी थे।
वस्तुतः हेमचन्द्र का व्यक्तित्व इतना व्यापक और महान् है कि उसे समग्रतः शब्दों की सीमा में बाँध पाना सम्भव नहीं है। मात्र यही नहीं, उस युग में रहकर उन्होंने जो कुछ सोचा और कहा था वह आज भी प्रासंगिक है। काश! हम उनके महान् व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर हिंसा, वैमनस्य और संघर्ष की वर्तमान त्रासदी से भारत को बचा सकते।
सन्दर्भ
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९.
हेमचन्द्राचार्य, पृ० ५३-५६.
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१०. देखें महावीरचरित्र (हेमचन्द्र) ६५-७५ (कुमारपाल के सम्बन्ध में महावीर की भविष्यवाणी).
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१६.
हेमचन्द्राचार्य (पं० बेचरदास जीवराज दोशी), पृ० १२३. आचार्य हेमचन्द्र (वि० भा० मुसलगांवकर), पृ० १९१. देखें: महादेवस्तोत्र (आत्मानन्द सभा, भावनगर), पृ० १ १६ महादेवस्तोत्र, पृ० ४४.
योगशाख, २/९. योगशास्त्र,
११८]
वही २/१०.
वही, २/१३.
वही, १/४०.
योगशास्त्र, २/८४-८५.
हेमचन्द्राचार्य, पृ० ७७.
वही, पृ० १०१-१०४.
योगशास्त्र, १/४७-५६.
देखें : आचार्य हेमचन्द्र (वि० भा० मुसलगांवकर), अध्याय ७. हेमचन्द्राचार्य, पृ० १३-१७८.
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