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________________ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व म आजकल विभिन्न प्रकार की आदतें, मनुष्यों में पड़ गई हैं। बात-बात में यही कहते पाये जाते हैं कि क्या करें आदत पड़ गई है। ऐसा कहने वाला मनुष्य यह भूल जाता है कि आदत भी उसी ने डाली। यदि कोई व्यसन है, तो उसने ही उसे स्वीकारा है, फिर वह उसे छोड़ने के लिए यह बहाना क्यों बनाता है कि आदत पड़ गई है। क्या आदत को मिटाने की औषधि नहीं है ? इस प्रवचन में आचार्यश्री ने फरमाया है - 'संसार में पशु दमन, अग्नि, धाम, रोग आदि मिटाने का उपाय है, परन्तु जिस मनुष्य में जो आदत पड़ जाती है, उसको मिटाने का कोई भी उपाय नहीं है। आदत ही मनुष्यों को उत्तम या अधम बनाती है। यहाँ आदत से मतलब खोटे स्वभाव पड़ जाने से है। मनुष्य में दुर्व्यसनादि स्वभाव पड़ जाते हैं। उनको मिटाना अशक्य है। (पृष्ठ ५४)। इसका समाधान आपने यह बताया कि मनुष्य को मानवता प्राप्त करने के लिए बचपन से ही अच्छी आदतें डालने का प्रयत्न करना चाहिए। 'पत्र लिखने में पाँच श्री की मर्यादा' प्रवचन में आपने सर्वमान्य कहावत - “पहली पेट पूजा फिर देवपूजा।" सभी देवों में पेट देव बड़ा है का बहुत ही सुन्दर रित्यानुसार प्रयोग किया है। 'गृहिणी गृहमुच्यते' प्रवचन में आप ने स्त्री की महत्ता बताते हुए फरमाया - 'कोई भी घर को घर नहीं कहता, किन्तु स्त्री को घर कहते हैं। जो घर स्त्री से रहित है, वह श्मशान के समान दिखाई देता है।' (पृष्ठ ६०)। इसी प्रवचन में आप ने आगे कहा है - "वही स्त्री है, जो घर के कार्यों को सँभालने में चतुर हो, वही स्त्री है जो सन्तान वाली हो और वही स्त्री है, जो पति की प्राणरूप और पतिव्रताअखण्डशील हो। ठीक ही है कार्यदक्षा, सन्तानसम्पन्ना, पतिप्राव्रता और सुशील स्त्री अपने घर को स्वर्ग, अपनी संतान को शिक्षित, अपने कुटुम्ब या पति को सदाचारी और अपने साथियों को सुशील बना सकती है।" (पृष्ठ ६१)। इसी प्रकार आप ने स्वास्थ्य पर भी प्रकाश डाला है। आपका कहना है कि तन स्वस्थ है, तो सब कुछ ठीक है, अन्यथा सब कुछ शून्य है। 'व्यक्तित्व' नामक प्रवचन में आप ने व्यक्तित्व की पहचान बताने हुए फरमाया- “ऐसी शक्ति जो दूसरों के ऊपर प्रभाव डालकर अपनी तरफ खींच सके और अपने विषय में उनका विश्वास करा सके, वह 'व्यक्तित्व' कहलाती है।" (पृष्ठ ६७) इस प्रवचनसंग्रह में कुछ जैन धर्म से सम्बन्धित प्रवचन भी हैं। ऐसा होना स्वाभाविक ही है। वास्तविक जैनत्व धर्माज्जयोऽधर्मात्क्षया, विश्व के शहंशाह, प्रभु महावीर, वास्तविक वैराग्य रंग, भवरक्षा कैसे होय? पर्युषण महापर्व, साधु विहार से लाभ, तपस्या की असफलता, इयापपिथिरी प्रतिक्रमण, पर्युषण पर्व तब और अब पर्वाधिराज का रहस्य कुछ ऐसे ही प्रवचन है। यद्यपि अन्य प्रवचन भी इसी श्रेणी में आते हैं, किन्तु विषयवस्तु को ध्यान में रखते हुए उन्हें किसी धर्मविशेष या सम्प्रदायविशेष के घेरे में नहीं रखा जा सकता। जैन धर्म से सम्बन्धित प्रवचन भी सांकेतिक रूप से जनसामान्य के लिए उपयोगी हैं। 'स्त्री जाति का महत्त्व शीर्षक वाले प्रवचन में आप ने स्त्री के महत्त्व पर प्रकाश डाला है और वर्तमान फैशन पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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