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________________ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व वर्तमान सन्दर्भ में आचार्यदेव का प्रवचन-साहित्य आचार्यदेवश्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी म. -शिष्य संयमवय स्थिविर मनिराज श्रीसौभाग्यविजयजी....) मा भाव तो प्राणिमात्र में उत्पन्न होते हैं पर भावों को अभिव्यक्त करने की क्षमता केवल मनुष्य में ही है। यही कारण है कि मनुष्य सब प्राणियों में श्रेष्ठ माना जाता है। विचारों की इस अभिव्यक्ति को वाणी कहा जाता है, जो मनुष्य की सर्वोत्तम उपलब्धि है। यही मनुष्य को अलंकृत करने वाला सच्चा आभूषण है। वाणी मोह-प्रमाद एवं अज्ञान की नींद में सोये प्राणी को जगाने में प्रचण्ड शंखनाद है, तो कर्तव्यहीन और आलसी को सचेत करने में संजीवनी बूटी है। वाणी की शक्ति अपरिमित है। उसमें जादुई शक्ति है। वाणी के माध्यम से असम्भव को भी सम्भव किया जा सकता है। ऐसा कोई कार्य नहीं, जो वाणी के माध्यम से नहीं किया जा सकता। तोप और तलवार जो कार्य नहीं कर सकते, वे वाणी द्वारा किए जा सकते हैं, किन्तु वाणी की यह अनुपम शक्ति विचारों की पवित्रता तथा शुद्धता पर आधृत है। कहने का तात्पर्य यह है कि वाणी को विचारों से परिष्कृत कर अभिव्यक्त किया जाता है। हीन विचारों को यहाँ स्थान नहीं है। इसी प्रकार जो वाणी विचारशून्य है, उसका भी महत्त्व नहीं है। विचार या भाव प्रत्येक मानव के मानस पटल पर प्रकट होते हैं। उन विचारों को व्यवस्थित रूप से अभिव्यक्त करना भी एक कला है। प्रत्येक मनुष्य इस कला में पारंगत नहीं होता है। अनेक मनुष्य बहुत अच्छे लेखक होते हैं, किन्तु जब उन्हें अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए कहा जाता है, तब वे. व्यवस्थित एवं स्पष्ट रूप से अपने भावों को अभिव्यक्ति प्रदान करने में असमर्थ रहते हैं और जब उनसे लिपिबद्ध कर अपने विचार स्पष्ट करने को कहा जाता है, तो वे इतने सुन्दर ढंग से भावाभिव्यक्ति करते हैं कि पाठक आश्चर्यचकित रह जाता है। ठीक इसी प्रकार कुछ मनुष्य अपने भावों तथा, विचारों को बोलकर उत्तम प्रकार से अभिव्यक्त कर सकते हैं। वे लिखने में उतने सुन्दर विचार प्रकट नहीं कर पाते हैं। कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं, जो मौखिक और लैखिक दोनों रूपों में अपने भावों को उत्तम रूप में प्रकट कर सकते. हैं। ऐसे मनुष्यों का प्रतिशत कम ही होता है। ऐसे मनुष्यों की गणना सामान्य मनुष्यों में नहीं की जा सकती। मानामुनि भगवन्तों का कार्य अपनी साधना करने के साथ-साथ समाज का मार्गदर्शन करना भी होता है। वे नित्य स्वाध्याय करते हैं। चिंतन करते हैं। अपने चिंतन के परिणामस्वरूप वे नए अनुभव भी प्राप्त करते हैं। वे जिस बात में, कामया मानव जगत का कल्याण देखते हैं, उसके लिए उपदेश देते हैं। वे अपना उपदेश जिसे व्याख्यान या प्रवचन कहा जाता है, प्रायः नित्य प्रति देते हैं। सामान्य व्यक्ति का कथन, वचन कहा जाता है और आचार्य, मुनि आदि का कथन प्रवचन कहलाता है। भगवान महावीर स्वामी की वाणी का लाभ विश्व के प्राणिमात्र उठाते थे। भगवान के उपदेश सार्वकालिक एवं सार्वदेशिक हैं। उन्हें For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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