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यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ चिंता वर्तमान पीढ़ी व सरकारों को कतई नहीं है। यही बात पेट्रोलियम पदार्थों पर भी घटित होती है उनका भी इसी प्रकार भयंकर दोहन हो रहा है। आज विश्व में पचास करोड़ कारें, अरबों दुपहिया वाहन तथा करोड़ों कारखानों में अरबों टन पेट्रोल जलाया जा रहा है, जिससे पेट्रोल के भण्डार खाली होते जा रहे हैं, इससे एक दिन भावी पीढ़ियों के लिए कुछ भी नहीं बचेगा । इस प्रकार पेट्रोल तथा लोहा आदि धातुओं के दोहन से होने वाला अभाव जलवायु प्रदूषण व तापमान वृद्धि का दुष्प्रभाव भावी पीढ़ियों के लिए अभिशाप बनने वाला है।
अपकाय का प्राणातिपात- प्रदूषण -
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जैन- दर्शन के अनुसार जल में अन्य पदार्थ मिलने से अपकाय के प्राणों का हरण होना माना गया है, यही जलप्रदूषण है। वर्तमान में धन कमाने के लिए बड़े-बड़े कारखाने लगे हैं, उनमें प्रतिदिन करोड़ों-अरबों लीटर जिस जल का उपयोग होता है, वह सब जल प्रदूषित हो जाता है। रासायनिक पदार्थों के संपर्क से तथा नगर के गंदे नालों का जल मल-मूत्र आदि गंदगी से दूषित होता जा रहा है। यह दूषित जल धरती में उतरकर कुंओं के जल को तथा नदी में गिरकर नदी के जल को दूषित करता जा रहा है। दूषित जल के कीटाणुओं का नाश करने के लिए पीने के पानी की टंकियों में पोटेशियम परमेगनेट मिलाया जा रहा है जो स्वास्थ्य के लिए अहितकर है। नलों से भी जल का बहुत अपव्यय होता है। यह सब जल का प्रदूषण ही है। जैन धर्म में एक बूँद जल भी व्यर्थ बहाना पाप तथा बुरा माना गया है। अतः जैनधर्म के सिद्धांतों का पालन किया जाए तो जल के प्रदूषण से पूर्णतः बचा जा सकता है।
वायुकाय का प्राणातिपातप्रदूषण -
वायु में विकृत तत्त्व मिलने से वायुकाय के प्राणों का तपात होता है, यही वायुप्रदूषण है। बड़े कारखानों की चिमनियों से लगातार विषैला धुआँ निकलकर वायु को दूषित करता जा रहा है, करोड़ों कारखानों में विषैली गैसों का उपयोग रहा है। वेगैसें वायु में मिलकर इसकी प्राणशक्ति का क्षय कर रही हैं। इस प्रदूषण के प्रभाव से ध्रुवों में ओजोन परत भी क्षीण हो गई है, उसमें छेद होते जा रहे हैं, जिससे सूर्य की हानिकारक किरणें सीधे मानव-शरीर पर पड़ेंगी जिसके फलस्वरूप केंसर आदि
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आधुनिक सन्दर्भ में जैनवर्स
भयंकर असंख्य, असाध्य रोगों का खतरा उत्पन्न हो जाने वाला है। वायु प्रदूषण से नगरों में तो नागरिकों को श्वास लेने के लिए स्वच्छ वायु मिलना भी कठिन हो गया है और दम घुटने लगता है, जिससे दमा, क्षय आदि रोग भयंकर रूप में फैलने लगे हैं। जैन दर्शन में इस प्रकार के वायु प्रदूषण को पाप माना गया है और इस पाप से बचने के लिए उपदेश दिया गया है।
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वनस्पतिकाय का प्राणातिपात- प्रदूषण
जैनागम आचारांगसूत्र के प्रथम अध्ययन में वनस्पति की तुलना मनुष्य जीवन से की गई है जैसे मनुष्य का शरीर बढ़ता है, खाता है, उसी प्रकार वनस्पति भी बढ़ती है, भोजन करती है। अतः वनस्पति को सजीव माना गया है तथा इसके संरक्षण का विधान है। परंतु वर्तमान में वनस्पतिकाय का प्राणातिपात भयंकर रूप से हो रहा है। लकड़ी के प्रलोभन से जंगल काटे जा हैं। पहले जहाँ पहाड़ों पर व समतल भूमि पर घने जंगल थे, जिन्हें पार करना कठिन था, जिन्हें अटवी कहा जाता था। उनका तो आज नाम-निशान ही नहीं रहा। जो जंगल बचे और जो वन सरकार के द्वारा सुरक्षित घोषित किए गए हैं उन वनों में भी चोरी छिपे भयंकर कटाई हो रही है। इसका प्रभाव जलवायु पर पड़ा है। इनके कट जाने से आर्द्रता कम हो गई जिससे वर्षा में बहुत कमी हो गई है। घने जंगलों में लगे वृक्ष प्रदूषित वायु का कार्बनडाइ - ऑक्साइड ग्रहण कर बदले में ऑक्सीजन देकर वायु को शुद्ध करते थे, वह शुद्धिकरण की प्रक्रिया अति धीमी हो गई है। फलतः वायु में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है जो मानव-जाति के स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक
रासायनिक खाद एवं कीटनाशक दवाइयाँ डालने से कृषि में अनाज, फल, फूल, व दालों की संरचना में उनका दूषित प्रभाव बढ़ता जा रहा है जो स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक है तथा पौष्टिक तत्त्वों - विटामिन, प्रोटीन, कैलोरी का भी घातक है। यही कारण है कि अमेरिका में रासायनिक खाद से उत्पन्न हुए गेहूँ के भाव से बिना रासायनिक खाद में उत्पन्न हुए गेहूँ का
मूल्य आठ गुना है।
यसकाय-प्राणातिपात -
दो इंद्रियों से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव जैसे केंचुए, चींटी, मधुमक्खी, भौरे, चूहे, सर्प, पक्षी, पशु आदि चलने फिरने
Ammon
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