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________________ पातंजल-योग और जन-योग : एक तुलनात्मक विवेचन / ७ मे मलिन अात्मा विशुद्ध हो जाती है, चिरसंचित पाप नष्ट हो जाते हैं, समस्त विपत्तियां नष्ट हो जाती हैं, योगी का कफ, विष्ठा, स्पर्श आदि औषधि रूप हो जाते हैं, अणिमा, लघिमादि ऋद्धियां प्राप्त हो जाती हैं, वारणविद्या, प्राशीविषलब्धि, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान, केवलज्ञान एवं मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, समस्त महापाप नष्ट हो जाते हैं और "योग" इन दो अक्षरों को न सुनने वाले मनुष्य का जन्म पशु के समान निरर्थक माना जाता है। इस प्रकार के योग के विषय में यह जिज्ञासा होना स्वाभाविक है कि उसका प्रादुर्भाव कब और कहाँ हुप्रा और उसके पुरस्कर्ता अथवा उद्भावक कौन हैं ? इन प्रश्नों का उत्तर देना सरल नहीं है। पुनरपि दर्शनशास्त्र के इतिहास का पालोड़न करने से ज्ञात होता है कि भारतवर्ष में सर्वप्रथम योग का उद्भव या प्राविष्कार हुआ था। हमारे इस कथन की पुष्टि निम्नांकित प्रमाणों से होती है (१) भारतवर्ष का इतिहास साक्षी है कि यहाँ प्रारंभ से प्राध्यात्मिक धारा बहती रही है। अन्य देशों में इस प्रकार की प्राध्यात्मिकता का दर्शन नहीं होता है। प्रवधत, तपस्वी, परिव्राजक, श्रमण शब्द यहां के योग की प्राचीनता को सिद्ध करते हैं। (२) दूसरा प्रमाण यह है कि सभी प्रकार के भारतीय वाङमय-काव्य, नाटक, उपन्यास, दर्शन आदि में योग के लक्ष्यभूत मोक्ष का विवेचन उपलब्ध होता है। इस तरह का विवेचन अन्य देशों के वाङमय में उपलब्ध नहीं है। (३) तीसरा प्रमाण यह है कि योग का स्वरूप और उसकी प्रक्रिया प्रादि का जितना सूक्ष्म विवेचन भारतीय योग-साहित्य में मिलता है, उतना अन्यत्र नहीं। (४) आज भौतिकता की चकाचौंध से व्याकुल होकर यूरोपीय देशों में योग के प्रति आकर्षण होना भी यही सिद्ध करता है कि योग का उद्भव सर्वप्रथम भारतवर्ष में हा है। (५) पण्डित सुखलाल संघवी ने भी योग के प्राविष्कार का श्रेय भारतवर्ष को दिया है। वे कहते हैं-"योग का सम्बन्ध प्राध्यात्मिक विकास से है । अतएव यह स्पष्ट है कि योग का अस्तित्व सभी देशों और सभी जातियों में रहा है, तथापि इन्कार नहीं कर सकता है कि योग के आविष्कार या योग को पराकाष्ठा तक पहुँचाने का श्रेय भारतवर्ष और प्रार्यजाति को है। इसके प्रमाण में मुख्यतया तीन बातें हैं-(१) योगी, ज्ञानी, तपस्वी आदि महापुरुषों की बहुलता, (२) साहित्य के प्रादर्श की एकरूपता, (३) लोकरुचि।"" यद्यपि भारतवर्ष में योग का उद्भव हुमा लेकिन इसके उद्भावक कौन थे ? आज भारतवर्ष में पातंजल-योग बहुत प्रसिद्ध है। इसका प्रसार और प्रचार भी इतना हना है कि पातंजल-योग ही "योग" का पर्यायवाची बन गया है। इससे कुछ लोगों ने अनुमान लगाया है कि भगवान पतंजलि ही योगसिद्धांत के पुरस्कर्ता हैं। लेकिन उनका यह कथन युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता है। पतंजलि योग के अनुशास्ता हैं-महर्षि पतंजलि का समय विवादास्पद है। विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न विचार व्यक्त किए हैं। जैकॉबी और एम० हिरियन्ना ने उनका समय १. दर्शन और चिन्तन, पृ. २३२ आसमस्थ तम आत्मस्थ मम तब हो सके आश्वस्त जम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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