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________________ तस्य चिन्तन के सन्दर्भ में अनुभूतियरक सत्य का एक अद्भुत उपक्रम / ३४७ भगवत बोसो नित नवी विद खेतरे मांय, एक भव तारी संत जन जनम धरे वहाँ आय । जनम धरे वहाँ आय मोख वासु हंस जावे, हर बिन दर्शण भगवान ग्यान घट ना ही आवे ॥ सुखरामदास वा समय हो हंस मोख नित जाय, भगवत बीसी नित नवी विद खेतरे मांय ॥ इस पद्य में विदेह क्षेत्र में विहरण या बीस तीर्थकरों की फोर संत का इंगित है। जैन परम्परा के मौलिक स्वरूप के प्राकट्य का यह एक प्रद्भुत उदाहरण है, जो एक महान् संत की अनुभूति से निःसृत हुग्रा, जिससे इस परम्परा का सातत्य, शाश्वत रूप सम्यक् परिपुष्ट होता है । जैनदर्शन कर्मवादी दर्शन है। जीव स्वकृत कर्मों के अनुसार विविध रूपों में उत्पन्न होता है । वह रूप - वैविध्य गतियों में विभक्त है – १. नरकगति, २ तियंचगति, ३ मनुष्यगति तथा ४. देवगति । . संसारी जीव जब तक कर्मबद्ध है, इन्हीं चार गतियों में चक्कर काटता रहता है । कर्मानुरूप सुख-दुःख भोगता है। सन्तप्रवर सुखराम ने इन चार गतियों का चार खानों के रूप में वर्णन किया है, जो इस प्रकार है अब चार खाण में ऊपजे, जीव जहाँ तां जाय, सुख दुःख जहाँ तहाँ एक ही कम नहीं जाका मांय । कम नहीं जाका मांय नरक सरगां लग जावे, घरी देह का डंड, विसन आगे विसन आगे लग पावे । तीन लोक सुखराम कह यूं जग वणियो आय अब चार खाण में ऊपने, जीव जहाँ तां जाय ॥ सन्त बड़े उन्मुक्त शब्दों में यहाँ उद्घोषित करते हैं, देह दण्ड कर्मफल सब किसी को, - यहाँ तक कि अति विशिष्ट देव विष्णु तक को भोगना पड़ता है । उपर्युक्त उद्धरणों से यह स्पष्ट है, रामस्नेही परम्परा के इन महान् सन्त की वाणी में स्थान-स्थान पर प्रार्हत परम्परा का सन्निवेश सन्त के विराट्, परम सत्यान्वेषी, व्यापक, सूक्ष्म, गहन चिन्तन, विचारवत्ता तथा अनुभूतिगम्य उपलब्धिवत्ता का संसूचक है, जहाँ शाश्वत सत्य का वैविध्य सहजतया ऐक्य में प्रनुस्यूत हो जाता है । धन्य इन महान् सन्त की गरिमामयी साधना तथा विश्वजनीन चिन्तनधारा । 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only धम्मो दीवो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है www.ahelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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