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एक विरल साधिका...
0 श्रीचन्द सुराना 'सरस'
"योगविद्या; जो कभी आत्मा को परमात्मा से मिलाने की साधना थी, वह आज ख्याति और सम्पत्ति बटोरने का व्यापार बन रही है, जो विद्या पत्थर को पारस बनाने की मनोरासायनिक प्रक्रिया सिखाती थी वह प्राज केवल पत्थर पर पालिश करने की कारीगरी के रूप प्रयुक्त हो रही है। यदि हमारी अध्यात्मिकता का, श्रेष्ठ विद्याओं का इसी प्रकार दुरुपयोग होता रहा तो एक दिन हम शून्य हो जायेंगे, आध्यात्मिकता खोखली हो जायेगी"-ये वेदना भरे विचार व्यक्त करती हैं-अध्यात्मसाधिका जैनसाध्वी श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना'।
साध्वी श्री उमरावकंवर जी का सान्निध्य, सत्संग जोर विचारचर्चा ज्योति-स्पर्श जैसा है । जैसे गैस सिलेंडर खोलकर माचिस का हलका स्पर्श देते ही अग्नि प्रज्वलित हो उठती है, ज्योति फैल जाती है, उसी प्रकार जब-जब पूज्य महासतीजी की वाणी मुखर होती है, अनुभूतियों की धारा उत्प्रवाहित होती है, तो ऐसा ही अनुभव होता है, कोई पालोक जगमगा रहा है, अनबुझे अजात रहस्य की परतें भेदकर साधना की सहज-उपलब्धियां रूपायित हो रही हैं।
__महासतीजी की तेजोदीप्त मुखमुद्रा ही यह साफ साफ विश्वास करा देती है कि यहाँ, इस मृण्मय देह में चिन्मय ज्योति जगमगा रही है, आलोक बाहर आने को ललक रहा है, साधना की विरल उपलब्धियाँ जैसे आँखों के झरोखों से बाहर झांक-झांक रही हैं-कुछ देने को, अन्तर-सागर में उच्छ्वसित उमियाँ किनारे खड़े दर्शक को अपनी शीतलता से प्राप्लावित कर देना चाहती हैं।
वे बहुत ही अल्प बोलती हैं, यं ऐसे साधकों को बोलने की जरूरत भी कम रहती है, उनका मौन ही प्रवचन है, समाधान है
गुरोस्तु मौनं व्याख्यातं शिष्यास्तु छिन्नसंशयाः । और जब भी बोलती हैं-शिष्ट , मिष्ट, इष्ट । उनका एक-एक शब्द बहुमोला मोती है जिसमें सुदीर्घ-साधना एवं योगाभ्यास जनित विशिष्ट उपलब्धियों की आभा चमकती रहती है।
मैं लगभग दो दशक से महासती जी के निकट संपर्क में हूँ । प्रारम्भ में उनको एक 'ज्ञानयोगी प्रात्मा' के रूप में ही जानता था। स्व. युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी की सेवा में जब-ज्ञब भी उपस्थित होता, प्राय: कुछ क्षणभर का उनका सत्संग भी उपलब्ध होता। युवाचार्य श्री जी का मुझपर अत्यन्त आत्मीय भाव था, इसलिए महासती जी का वात्सल्य भी सहज प्राप्त था। धीरे-धीरे उनका आत्मिक-नकट्य बढ़ता गया, महसूस होता गया। इस ज्ञानयोगी आत्मा में एक सिद्ध ध्यानयोगी प्रात्मा का भी स्वरूप निखरा हुमा है। उनकी साधना प्रचार से बहुत दूर है, आडम्बरों से मुक्त है । प्रदर्शन नाम से ही उन्हें भय है। फिर भी जो सम्पर्क में आता है, वह इस तेजस्विता का आभास पाये बिना कैसे रहेगा? क्या अग्निपंज के समीप पहँचकर
आई घड़ी
चरण कमल के वंदन की
अर्चनार्चन | २८
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