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________________ मध्यकालीन राजस्थानी काव्य के विकास में कवयित्रियों का योगदान / २२५ म्हारे मन बसिया नन्दलाल, पन माली म्हाने लागो छो व्हाला । मन्द मन्द मुख हास विराजत, बांके नयन बिसाला । सुन्दर श्याम सलौनी सूरत, शोभित गल श्री सौभाग्य बिहारी छवि निरखत भई कहै सौभाग्य कुंबरी कर जोरे, बीजं वनमाला । मैं निहाला ॥ दरस दयाला । ७. बाघेली रणछोर कुवरी (र. का. सं १९२३ से १९६३ ) ये रींवा के महाराज विश्वनाथ के भाई बलभद्रसिंह की पुत्री और जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह की रानी थीं कहा जाता है कि इनके पिता राधावल्लभ की मूर्ति को युद्ध में जाते समय साथ ले जाया करते थे, उसे ही कवयित्री अपने साथ जोधपुर लाई थी और उसकी प्रतिष्ठा करवा कर एक मन्दिर बनवाया था। कृष्ण के प्रति इनकी अटूट भक्ति थी एक कवित्त देखिये । आभा तो निर्मल होय सूरज किरण उगे ते, चित्त तो प्रसन्न होय गोविन्द गुण गाये से । पीतर तो उज्ज्ल होय, रेती के मांजे से, हृदय में ज्योति होय, गुरु ज्ञान पाये से ॥ भजन में विछेप होय, दुनियां की संगति से, अनन्द अपार होय, गोविन्द के ध्याये से। मन को जगावो अरु, गोविन्द के शरण आओ, तिरने के ये उपाय, गोविन्द मन भाये से । ८. सम्मान बाई (र. का. सं. १९२५ के लगभग ) सम्मान बाई अलवर के रामनाथ कविया की पुत्री थी । इनके हृदय में कृष्ण के प्रति अटूट भक्ति-भावना थी । इन्होंने पति के रूप में ही ईश्वराधना की। इनका 'पतिशतक' बहुत ही प्रसिद्ध ग्रन्थ है । कृष्णबाललीलाविषयक दोहे, सवैये, पद आदि भी लिखे हैं । Jain Education International १८२२ ) ९. रसिकबिहारी बनीठनी (र. का. सं. १७६७ से कवयित्री बनीनी हिन्दी साहित्य के यशस्वी कवि किशनगढ़ के महाराज नागरीदास की दासी थी । उनके सम्पर्क से इनमें कृष्णभक्ति के भाव जागृत हुए। इनके कृष्ण जन्मोत्सव, होली, राधाजन्म, पनघटलीला आदि से सम्बद्ध अनेक पद उपलब्ध होते हैं । कवयित्री ने अपने आपको राधा के रूप में मान करके कृष्ण के प्रति भावार्पण किया है। कृष्ण के बारे में लिखा हुआ उनका निम्न पद शील-मर्यादा के कारण अत्यन्त प्रभावक बन पड़ा है...... कैसे जल लाऊं मैं पनघट आऊँ । होरी खेलत नंदलाडलो री, क्योंकर निवह न पाऊं। वे तो निलज फाग मदमाते हों कुलवधू कहाऊं । जो छुआ अंग रसिक बिहारी, ती हूं धरती फार समाऊं ॥ For Private & Personal Use Only धम्मो दीयो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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