SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 764
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मध्यकालीन राजस्थानी काव्य के विकास में कवयित्रियों का योगदान | २१९ द्वारा राजाओं को अपनी विस्मृत शक्ति का ज्ञान कराया। इस धारा की प्रमुख कवयित्रियाँ निम्नलिखित हैं १. झीमा चारणी (रचनाकाल सं० १४८० के आसपास) यह कच्छ देश के अंजार नगर निवासी वरसड़ा शाखा के मालव जी नामक चारण व्यापारी की कनिष्ठा पुत्री थी । एक चारण युवक ने इनका अपमान किया था तब से इन्होंने चारण युवक से विवाह न करने की प्रतिज्ञा ली थी। इसी कारण इनका विवाह जैसलमेर के तणोट निवासी भाटी बुध के साथ हुआ था। कवयित्री भीमा की लेखनी में अद्भुत बल छिपा था। अपनी कविता द्वारा प्रेरणा देकर उसने गागरोण गढ़ के राजा अचलदास खींची, जो लालादे के प्रेम में फंस गये थे, उन्हें सदा के लिए अपनी पत्नी उमा दे सांखली का बना दिया। हृदयस्थ भावों की मार्मिक अभिव्यक्ति इनके पदों में मिलती है । इनका जन्म एवं रचनाकाल १५ वीं शताब्दी है । भाषा, भाव, और अभिव्यक्ति की दृष्टि से डिंगल काव्यधारा में भीमा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनकी कविता के नमूने के रूप में दो दोहे यहाँ दिये जाते हैं १. धिन उमावे सांखली, ते पिव लियो मुलाय । सात बरस रो बीछड़ियो, तो किम रैन विहाय ॥ २. पगे बजाऊं घूघरा, हाथ बजाऊं तूंब । ऊमा अचल मोलावियो, ज्यू सावण री लूब ॥ २. पद्मा चारणी (र० का० सं० १५९७ के आसपास) कवयित्री पद्मा चारणी ऊदाजी सांदू की सुपुत्री और शंकर बारहठ की पत्नी थी। बीकानेर के महाराजा कल्याणसिंह के पुत्र और रायसिंह के अनुज अमरसिंह का अन्तःपुर इनका प्रावास था। पिता और पति की भाँति डिंगल गीत और कवित्त लिखने में ये कुशल थीं। इनकी समस्त रचनाएं वीररस पूर्ण हैं। राजस्थानी भाषा के सुप्रसिद्ध अलंकार वयणसगाई का निर्वाह इनके छन्दों में मिलता है। इनका जन्म एवं रचनाकाल १६ वीं शताब्दी है। सोये अमरसिंह को युद्ध की प्रेरणा देने वाली इनकी कविता का नमूना देखिये बीकहर सीहघर मार करतो बसु, अमंग अर वन्द तौ सीस आया। लाग गयणाग भुज तोल खग लंकाल, जाग हो जाग कलियाण जाया । ३. चाम्पादे रानी (र० का० वि० सं० १६५०) कवयित्री चाम्पादे जैसलमेर के महारावल हरराज की पुत्री और बीकानेर के प्रख्यात कवि राठौड़ पृथ्वीराज की पत्नी थीं। काव्यसृजन की प्रेरणा इन्हें अपने पितृगह से ही मिली थी। महारावल हरराज के दरबार में कवियों का बड़ा आदर था। वहाँ काव्यकृतियों का निर्माण निरन्तर चलता रहता था । ऐसे साहित्यिक वातावरण में चाम्पादे की काव्य प्रतिभाको बड़ा बल मिला । इनके और पृथ्वीराज के काव्यविनोद की कई आख्यायिकाएं प्रसिद्ध धम्मो दीवो | संसार समुद्र में धर्म ही दीप है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibran org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy