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________________ जीवन - अन्तर्यात्रा को सजग पथिका मुनि राजेन्द्रकुमार 'रत्नेश' जीवन एक महायात्रा है, जिसमें कई उतार-चढ़ाव, आरोह-अवरोह प्राते हैं । प्रत्येक मोड़ पर पूर्ण जागृत । श्रप्रमत्त होकर - प्रगर पथिक कदम बढ़ाता है तो उसे प्राप्त होती है उसकी मनसंकल्पित मंजिल । इस महायात्रा में कदम बढ़ाने के साथ यह आवश्यक है कि पथिक को लक्ष्यबोध, दिशाबोध हो । अन्यथा फिर एक अन्तहीन भटकाव से उसे घिर जाना होगा । उसकी जिन्दगी यायावर बन जायेगी । जीवन अन्तर्यात्रा का सजग-पविक विषमताओं विभावों-विजातीय वृतियों के कंटकों से परे, "सुभाश्रो नियट्टणं सुभाओ पयट्टणं" को जीवनसूत्र बनाकर जीवन में निहित परम श्रेय को समुपलब्ध कर लेता है । मैंने देखा है इस सूत्र को रूपायित होते अध्यात्मयोगिनी महाश्रमणी अर्चनाजी म. में । वे प्रतिस्रोत की ओर उन्मुख जागृत चेतना है, जिसने ध्यान के अतल का स्पर्श किया है। उनके भीतर एक समग्र चेतना है जो ध्यान के द्वारा ऊर्जारोहण की ओर अग्रसर है। उनका अंत गहरा है, बहुत गहरा जहाँ से एक शून्य निनाद मौन विहित संगीत गूंजता रहता है जिसे "कायोत्सर्ग" अवस्था में जीकर हम सुन सकते हैं । I समादरणीया महाश्रमणी जी का जीवन स्वयं एक दर्शन है जो अपने करीब आने वाली प्रत्येक चेतना को एक दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। मैंने उनका सान्निध्य पाया है, उनमें देखा है एक अलौकिक तेजोवलय जो उनके भीतर छिपे विराट का प्रतिविम्ब है। उनके भीतर पैदा हुआ यह विराट रूपान्तरण की प्रक्रिया है। इस विराट, उत्कान्त चेतना के जीवन का यह वैशिष्ट्य है। उनमें साधुख के दर्शन हुए हैं, प्रदर्शन नहीं । साधुता, साधना के इस दर्शन की जीती जागती मिसाल महाश्रमणी अर्चनाजी म. सा. के साधना की अर्धशताब्दी के उपलक्ष्य में हृदय की असीम ग्रास्था के साथ श्रात्मवन्दन । प्रथम खण्ड / १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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