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________________ आगम का व्याख्यासाहित्य | १६५ चूणियों की रचना सातवीं-पाठवीं शताब्दी के लगभग की गई है। चणिकारों में सिद्धसेनसूरि, प्रलम्बसूरि और अगस्त्यसिंह-सूरि प्रमुख हैं। प्रसिद्ध चूणियाँ (१) आवश्यक (२) प्राचारांग (३) सूत्रकृतांग (४) दशवकालिक (५) उत्तराध्ययन (६) नन्दी (७) अनुयोगद्वार (८) व्याख्या-प्रज्ञप्ति (९) जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति (१०) जीवाभिगम (११) निशीथ (१२) महानिशीथ (१३) बृहत्कल्प (१४) व्यवहार (१५) दशाश्रुतस्कंध (१६) जीवकल्प (१७) पंचकल्प (१८) प्रोघ । इन चणियों में धर्म, दर्शन, संस्कृति, समाज और इतिहास आदि की विपुल सामग्री उपलब्ध है। आवश्यकचणि-विषय-विवेचन की दृष्टि से अावश्यक चणि का अत्यन्त महत्त्व है। इसकी भाषा प्रांजल है। इसमें संवाद और कथानकों की भरमार है। इसमें ऋषभदेव की सभी घटनाओं का क्रम से वर्णन है। विभिन्न कलानों शिल्पतत्त्व-कुम्भकार, चित्रकार, वस्त्रकार, कर्मकार और काश्यप का वर्णन, ब्राह्मी की लेखनकला, सुन्दरी की गणितकला और भरतादि की राजनीति का सुन्दर विवेचन हुआ है। महावीर का जन्मोत्सव, दीक्षा, साधना, उपसर्ग एवं कैवल्य आदि का वर्णन, पार्श्वनाथ की परम्परा के श्रमणों का कथन, मंखलिपुत्र गोशालक, लाढ देश की वज्र एवं शुभ्रभूमि जमालि, पार्यरक्षित, तिष्यगुप्त, वज्रस्वामी और वज्रसेन के कथानक तथा विविध राज्यों का वर्णन यथाप्रसंग हो गया है। यह चूणि लोक-कथा एवं ऐतिहासिक तथ्यों से पूर्ण है । ___ आचारांगचूणि-आचारांग की चूणि में श्रमण के प्राचार-विचार के साथ लोक-कथाएँ भी सरल एवं सुबोध ढंग से प्रस्तुत हुई हैं ___ "एगम्मि गामे एक्को कोडुबिनो धणमंतो बहुपुत्तो य' प्रादि बहुत ही सरल भाषा में कथानक प्रस्तुत किए गए हैं। सूत्रकृतांगणि-इसमें दार्शनिक तत्त्व एवं लोक-कथाओं की बहुलता है । आर्य एवं अनार्य देश की प्रसिद्ध कथाओं का भी उल्लेख है। अनार्य देश में रहनेवाले आर्द्र कुमार की अभयकुमार के साथ मित्रता का भी उल्लेख है । दशवकालिकणि-इस चणि में लोक-कथाओं और लोक-परम्पराओं का उल्लेख है। जिनदास महत्तर ने इसमें श्रमण के प्राचार-विचार की व्याख्या प्रस्तुत की है। प्राकृत के शब्दों की व्युत्पति पर्याप्त रूप से की गई है। उदाहरण के लिए–'दुम', रुक्ख, पादप की व्याख्या देखिए "दुमा नाम भूमीए, रुत्ति पुहवी, खत्ति आगास, तेसु दोसु वि जहा ठिया, तेणं रुक्खा पादेहि पिवन्तीति पादपा । पादा मूलं भण्णंति" कहीं-कहीं पर संवाद-शैली भी है, जो पढ़ने में एकांकी एवं नाटकों जैसा आनंद देती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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