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चतुर्थखण्ड / १४६
अब हम जैन धर्म में यत्र-तत्र वर्णित विशिष्ट श्रमणियों की चर्चा करें ताकि यह जाना जा सके कि श्रमणीरूप में उसने कैसी अनुपम उज्ज्वलता पाई है और किन स्थितियों में धैर्य और सहिष्णुता का परिचय देते हुए ऐसे प्रमाण प्रस्तुत किये हैं जो नारी की श्रेष्ठता, पूज्यता, वंदनीयता के उज्ज्वलतम प्रमाण हैं । इसे हम ऐतिहासिक एवं पौराणिक परिवेश में परखेंगे । श्रमणियों के कारण ही धर्मप्रचार में सुविधा रही। कई श्रमणियां तो महासतियों के रूप में पूज्य हैं । पार्श्वनाथ की कई शिष्याएं तो विशिष्ट देवियों के रूप में भी स्थापित हुईं।
प्रथम श्रमणी ब्राह्मी तीन लाख भ्रमणियों की प्रमुखा थी सुन्दरी के श्रमणी होने के पूर्व चक्रवर्ती भरत द्वारा व्यवधान होने पर भी उसने विनम्र रूप से आज्ञाप्राप्ति की स्थिति निर्मित की। यह एक सर्जकवृत्ति का प्रमाण है । उसने स्पष्ट विरोध या रोष व्यक्त करने की बजाय आयम्बिल तपादि द्वारा अपने शरीर को कृश कर लिया। अपनी रूप सम्पदा को विरूपता का स्वरूप देकर श्राखिरकार प्रव्रज्या की श्राज्ञा पा ही ली ।
ब्राह्मी और सुन्दरी द्वारा गर्वमण्डित भ्राता बाहुबलि को जिस अनूठी शैली में प्रतिबोध दिया गया यह भी एक अनुकरणीय उदाहरण है। उन्होंने बाहुबलि की भर्त्सना नहीं की वरन् 'गज से उतरों' इस वाक्य से एक व्यंजना द्वारा स्वयं बाहुबलि को प्रात्मचिन्तन के लिए प्रवृत्त किया। क्या ऐसा प्रनुपम उदाहरण अन्यत्र उपलब्ध है ?
अरिष्टनेमि की वाग्दत्ता राजीमती द्वारा प्रभु द्वारा प्रवृत्त पथ को ही अपने लिए अंगीकार करने की भावना ने उसकी चारित्रिक उज्ज्वलता को उजागर किया है। रेवताचल पर्वत पर वर्षा से भीगी साध्वी राजीमती पर श्रमण रथनेमि की विकृत दृष्टि पड़ी तो उसे संयम में स्थिर करने की जो संविधि साध्वी राजीमती द्वारा अपनाई गई, अपने आप में वह बेजोड़ है ।
पुष्पचूला का अपने भ्राता पुष्पचूल से विशेष अनुराग रहा । स्थितिवश उन्हें ही परस्पर ब्याह दिया गया। पर व्यावहारिक बुद्धि के वश इस दम्पती ने ब्रह्मचर्य कायम रखा। प्रव्रज्या की अनुमति भी भाई द्वारा उसी नगर में रहने की शर्त पर दी गई जिसे श्राचार्य ने उनकी स्नेह भावना को उज्ज्वलता के कारण स्वीकृत किया। उसी पुष्पचूला ने मोक्ष प्राप्त किया। क्या यह उस श्रमणी की म्रात्मोज्ज्वलता का प्रमाण नहीं ?
दमयन्ती, कौशल्या, सीता, कुन्ती, द्रौपदी, अञ्जना जैसी सतियां जिन्होंने प्रव्रज्या भी ग्रहण की, इतर धर्मों में भी पूज्य हुईं। इनमें से कुन्ती ने तो मोक्ष भी पाया ।
उदायन तापस- परम्परा को मानता था । उसकी पत्नी प्रभावती ने महावीर पर निष्ठा रखी। पति की कामनानुसार वह स्वर्ग से अपने पति को प्रतिबोध देने देव रूप में आयी । उसने पति को प्रतिबोध देकर उसे भ. महावीर के प्रति श्रद्धालु बनाया। पति के प्रति पतिव्रता का पूर्व प्रमाण प्रस्तुत किया। निर्वाण भी प्राप्त किया।
मृगावती दीक्षित होकर प्रार्या चन्दनबाला के संरक्षण में धर्मसाधना करने लगी। उसकी संयमसाधना ऐसी अनुपम थी कि उसने चन्दनबाला से पूर्व केवल्य प्राप्त कर लिया। चन्दनबाला ने मृगावती की वंदना की और उसी रात्रि उसने भी कैवल्य पा लिया । दिव्यता का यह उदाहरण कितना अनूठा है! मृगावती ने पश्चात् निर्वाण प्राप्त किया।
बड़े अटपटे प्रसंग भी श्रमणियों में आये । पद्मावती के मन में जब वैराग्य उत्पन्न हुआ तब वह गर्भवती थी । दीक्षा के उपरांत गर्भवृद्धि से भेद खुलने लगा तो विशेष स्थिति में गुरुणी
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