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________________ म-न एक वीणा है। विचार इसके तार हैं। वीणा की आवाज बड़ी मधुर होती है। जब वीणा की आवाज निकलती है तो सभी के मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। सुनने वाले श्रोता ये कहेंगे एक बार वीणा की तान फिर से सुनायो। मधुर बोलने वाले लोकप्रिय बनते हैं । यह लोकप्रिय बनने का सबसे अच्छा तरीका है। हा-र कमजोरी का सूचक है । हार कर बैठ जाना असफलता है। विपत्तियों का डट के मुकाबला करो जिससे सफलता मिलेगी। सफलता जायेगी कहाँ, अपने आप पास में पाजायेगी। हार एक बादल है, जो साहस के सूर्य को ढक देती है। साहस पाया और असफलता के बादल छंटकर दूर हो गये । धैर्य व साहस के चमकते ही सूर्य दिखाई देने लग जायेगा, साहस को कायम रखते हुए आगे बढ़ चलो। राह पर चले वह राहगीर । यात्रा करे वो यात्री। मुसाफिरी करे वो मुसाफिर । व्यापार करे वो व्यापारी । शिक्षा दे वो शिक्षक । शिक्षा ग्रहण करे वो शिक्षार्थी । अच्छाइयों को लेकर चलो, फल अच्छा ही मिलेगा। अच्छे को ग्रहण करना ये काम है आँखों का । संसार के बगीचे में फल व शूल दोनों ही दृष्टिगोचर होते हैं। फूल लेना या शूल, यह निर्णय तो आँखें करेंगी । फूल है यश, शूल है अपयश, सौरभमय सुगंधित फूलों को चुनकर हम लोग एक बेमिसाल माला बनायें, जिसके माध्यम से यह जीवन सुरभित हो जाएगा। जरा हम अपने नयनों को फलों की ओर ले जायें। ज-ब-जब धरती पर पापाचार बढ़े तब-तब महापुरुषों ने जन्म लिया। अपने उपदेशों के द्वारा सही रास्ता बताया। उन महान ज्ञानियों के उपदेशों में जीवन को बदलने का करिश्मा है. ताकत है। हम लगन व निष्ठा के साथ उपदेश श्रवण करें । अमल करें। उपदेश में किसी प्रकार की कोई गड़बड़ नहीं । कमी हमारे अन्दर है कि हम सही तरीके से सुन नहीं पाते । जिस दिन तल्लीनता के साथ सुनना प्रारंभ कर लेंगे, उसी दिन अपनी शक्ति को पहचान लेंगे। सा-फ-सुथरा घर का प्रांगन कितना सुन्दर लगता है। एकदम घर में प्रवेश करते ही मन मोह लेता है। घर में कड़ा करकट अच्छा नहीं लगता । ये मन भी अपना एक प्रांगन है । क्रोध, मान, माया, लोभ, मद, घृणा, नफरत का गहरा कचरा भरा है। ज्ञान, विवेक व चातुर्य का झाड़ लेकर इस कचरे को दूर करें। हृदय-भवन सुन्दर बन जायेगा। सफाई ऐसी की जाये कि पुनः कचरा प्रा न पाये। ह-र घड़ी हर पल प्रभु की भक्ति ही जीवन को सुखी बना सकती है। प्रभु की की गई भक्ति कभी भी निष्फल नहीं जाती। मन साफ होगा, तब भक्ति भी साफ होगी । भक्ति एक दीपक है, उसमें सत्य, अहिंसा का तेल व बाती दो तो दीपक फिर बुझने वाला नहीं। तेज लगी लो लुप्त होने वाली नहीं । जीवन के भवन में ऐसे दीप को जलाने की अत्यन्त अावश्यकता है । ऐसा प्रकाश ही हमारे जीवन को सुखद बनायेगा। ब-रतन पर धूल जमने पर चमक में थोड़ी कमी आ जाती है। चमक को रखने के लिये दुकान का मालिक बराबर ध्यान रखता है कि बर्तनों पर रज (धूल) कहीं अधिक जम न जाये। सभी बरतनों की बार-बार देख-रेख करता है । पूरा-पूरा ध्यान रखता है। आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की प्रथम खण्ड / १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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