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________________ जैन तात्त्विक परम्परा में मोक्ष : रूप-स्वरूप / ४३ ३८. जैनदर्शन में मूक्तिः स्वरूप और प्रक्रिया, लेखक-श्री ज्ञानमुनिजी महाराज (जैनभूषण), श्री पुष्करमुनिप्रभिनन्दनग्रन्थ, चतुर्थ खण्ड, पृष्ठ ३१६ ३९. चिन्तन की मनोभूमि, लेखक, उपाध्याय अमरमुनि, पृष्ठ ६० ४०. (क) उत्तराध्ययन सूत्र, अ० २९, सूत्र ७२ (ख) दशाश्रुतस्कन्ध, अ० ५, गाथा १३ (ग) मोक्ष असने । स प्रात्यान्तिक: सर्वकर्म निक्षेपो मोक्ष इत्युच्यते । -राजवार्तिक, ११११३७ (घ) धवला, १३१५,५,८२ (ङ) भगवती अाराधना, वि० ३८1१३४ (च) सर्वार्थसिद्धि, १।१ की उत्थानिका (छ) परमात्मप्रकाश, २०१० (ज) ज्ञानार्णव०, ३१६-१० (झ) द्रव्यसंग्रह (टीका), ३७ (अ) जं अप्पसहावादो-मूलोत्तर पयडिसंचियं मुच्चइ । -वृहद्नयचक्र, १६९ (त) आत्मबन्धयोद्विधाकरणं मोक्षः। -समयसार, प्रात्मख्याति, २८८ (थ) कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः । -तत्त्वार्थसूत्र, १०१२ ४१. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, क्षुल्लक जिनेन्द्रवर्णी, पृष्ठ ३३२ ४२. (क) उत्तराध्ययन सूत्र, अ० ३६, गाथा ५७ (ख) ज्ञानार्णव, ४२ (ग) तत्त्वार्थसूत्र, १०१५ (घ) नियमसार, मूल ७२ (ड) गोम्मटसार, जीवकाण्ड, मूल ६८।१७७ (च) पंचसंग्रह, प्राकृत १ ४३. कदाचिदष्टसमयाधिकषण्मासाभ्यन्तो चतुर्गतिजीवराशितो निर्गतेषु"। -गोम्मटसार, जीवकाण्ड (जी० प्र०) १९७१४४११५ ४४. (क) सामान्यादेको मोक्षः । द्रव्यभावभोक्तव्यभेदादनेकोऽपि। -राजवार्तिक, ११७।१४।४०।२४ (ख) धवला, १३।५, ५, ८२३।४८।१ ४५. (क) तं मुक्खं अविरूद्ध विहं खलु दव्व भावगदं ।-बृहद्नयचक्र, १५९ (ख) द्रव्यसंग्रह, टीका, ३७११५४७ ४६. (क) निरवशेषाणि कर्माणि येन परिणामेन""समस्तानां कर्मणां । -भगवती अाराधना, ३८.१३४११८ (ख) कर्मनिर्मूलनसमर्थः द्रव्यमोक्ष इति । -पंचास्तिकाय (ता. वृ.) ०१५।१७३।१० (ग) प्रवचनसार (ता. वृ०) ८४११०६।१५ (घ) द्रव्यसंग्रह, टीका २८1८५।१४ धम्मो दीवो संसार समुप में वर्म ही दीप है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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