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भगवान् महावीर की नीति / ९ को लोकहितकारी बताया ही है ।१८ ..
भगवान् स्वयं तो अपना हित कर ही चुके होते हैं; किन्तु अरिहन्तावस्था की सभी क्रियाएँ, उपदेश आदि लोकहित ही होती हैं।
साधु जो निरन्तर (नवकल्पी) पैदल ही ग्रामानुग्राम विहार करते हैं, उसमें भी स्वहित के साथ लोकहित सन्निहित है।
श्रमण साधनों के समान ही श्रावकवर्ग और साधारण जन भी, जो भगवान् महावीर की आज्ञापालन में तत्पर रहते हैं, स्वहित के साथ लोकहित को भी प्रमुखता देते है।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भगवान महावीर द्वारा निर्देशित सिद्धान्तों में लोकहित को सदैव ही उच्च स्थान प्राप्त हुआ है और उनका अनुयायीवर्ग स्वहित के साथसाथ लोकहित का भी प्रविरोधी रूप से ध्यान रखता है तथा इस नीति का पालन करता है।
भगवान् महावीर ने इन विशिष्ट नीतियों के अतिरिक्त सत्य, अहिंसा, करुणा-जीवमात्र पर दया आदि सामान्य नीतियों का भी मार्ग प्रशस्त किया तथा इन्हें पराकाष्ठा तक पहुंचाया।
नीति के सन्दर्भ में भगवान ने इसे श्रमण नीति और श्रावक नीति के रूप में वर्गीकृत किया।
श्रावक चूंकि समाज में रहता है, सभी प्रकार के वगों के व्यक्तियों से उसका सम्बन्ध रहता है, अतः इसके लिए समन्वयनीति का विशेष प्रयोजन है। साथ ही धर्माचरण का भी महत्त्व है। उसे लौकिक विधियों का भी पालन करना आवश्यक है । इसीलिए कहा गया है
सर्व एव हि जनानां, प्रमाणं लोकिको विधिः। यत्र सम्यक्त्वहानिर्न, यत्र न व्रतदूषणम् ॥
-सोमदेवसूरि : उपासकाध्ययन -जैनों को सभी लौकिक विधियां प्रमाण हैं, शर्त यह है कि सम्यक्त्व की हानि न हो और व्रतों में दोष न लगे। .
श्रावक-व्रतरूपी सिक्के के दो पहलू होते हैं-१. धर्मपरक और २. नीतिपरक । श्रावक व्रतों के अतिचार भी इसी रूप में सन्दभित हैं। उनमें भी नीतिपरक तत्त्वों की विशेषता है।
ठाणांगसूत्र में जो अनुकंपादान, संग्रहदान, अभयदान, कारुण्यदान, लज्जादान, गौरवदान, अधर्मदान, धर्मदान, करिष्यतिदान और कृतदान-यह दस प्रकार के दान। बताये गये हैं, वे भी प्रमुख रूप से लोकनीतिपरक ही हैं। उनकी उपयोगिता लोकनीति के सन्दर्भ में असंदिग्ध है।
१८. श्रावक व्रत और उनके अतिचारों के नीतिपरक विवेचन के लिए देखें लेखक की जैन
नीतिशास्त्र पुस्तक का सैद्धान्तिक खण्ड (अप्रकाशित) दसविहे दाणे पण्णत्ते, तंजहाअणुकंपासंगहे चेव, भये कालुणिये इ य । लज्जाए गारवेण य, अहम्मे पुण सत्तमे । धम्मे य अमे वृत्ते काहीइ य कतंति य । ठाणांग १०१७४५
धम्मो दीयो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है
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