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द्वितीय खण्ड | २३० हमारे परिवार में पीहर व ससुराल पक्ष में कईयों को ध्यान-समाधि लगती है और अनेक प्रकार के अनुभव भी होते हैं लेकिन मेरी प्रबल इच्छा होते हुए भी कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ । एक बार मेरे अन्तर् में ऐसी आवाज आयी कि तुम्हें जो समाधि लगेगी वह पूज्य श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म० सा० के द्वारा ही लगेगी। तब से मैं निष्ठा के साथ बराबर बाबजी की सेवा में हाजिर होती रहती हूँ और बाबजी ने भी हमारी विनती स्वीकार करके तीन बार हमारे गाँव में पधारने की कृपा की और उन्होंने जैनधर्म सम्बन्धी ज्ञान हमको अच्छी तरह समझाया । म० सा० श्री की कृपा से इन्दौर के बाद में मेरी ध्यान समाधि अच्छी तरह से लगने लग गई है । मैं पूरी रात एक आसन पर बैठ सकती हूँ। उस अपूर्व प्रानन्द का वर्णन करना सम्भव नहीं है। यह मैं अपना सौभाग्य माने या म० सा० श्री की कृपा, कुछ समझ में नहीं आता; लगता है तराजू के दोनों पलड़े बराबर हैं। हृदय की यह तमन्ना है कि आपका साथ जन्म-जन्म तक मिलता रहे और मैं इसी प्रकार ध्यान समाधि में लगी रहूँ।
मेरे दिवंगत देवरजी श्रीमान् गोविन्दसिंहजी की पाँच-छः साल की बालिका, जिसका नाम पूर्णिमा है, उसको महासतीजी के प्रायः स्वप्न में दर्शन होते रहते हैं
और वह हम लोगों को सब बता देती है। विहार के बारे में कि आज म० सा० ने किधर विहार किया। उनकी तबीयत आदि के सम्बन्ध में भी बराबर बताती है । जब हम पत्र देकर बाबजी से इसके बारे में पूछते हैं सब सही एवं बराबर निकलता है। बालिका की विशेषता है कि वह न किसी के साथ खाना खाती है न ही सोती है, अधिकतर एकान्त में ही रहती है । हम लोगों ने म० सा० से यह प्रतिज्ञा कर ली है कि यह आपके चरणों में दीक्षित होना चाहे तो हम मना नहीं करेंगे ।
बाबजी की कृपा से हमारे गुरु महाराज श्री गुलाबदासजी के कई शिष्य जैसे श्री पाँचारामजी म. सा० आदि सन्त जैनपद्धति से साधना करते हैं। पैरों में जूते नहीं पहनते, पैदल यात्रा करते हैं, किसी स्त्री को स्पर्श नहीं करते हैं, रात्रि को भोजन नहीं करते हैं और भी अनेक जैनधर्म के नियमों का पालन करते हैं। श्री मुक्तिरामजी, श्री मृगारामजी, श्री भक्तिरामजी, श्री हरिनारायणजी और श्री भगवानदासजी आदि की महाराज सा० श्री 'अर्चनाजी' के प्रति अनन्य भक्ति एवं श्रद्धा है । सभी सन्तों की हमारे गाँव के प्रति बड़ी कृपा है। इसी कारण इस गाँव को रामनगरी कहकर पुकारते हैं ।
मैं अपने हृदय की श्रद्धा का शब्दों से वर्णन नहीं कर सकती। हम सभी गागुडी निवासियों की भगवान से प्रार्थना है कि म. सा. 'अर्चना' जी दीर्घायु हों और हमारे जैसे जीवों को सन्मार्ग को ओर प्रवृत्त करते रहें।
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