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________________ सन्तों का नि:स्पृह जीवन गृहस्थों के लिए प्रेरणा का विषय होता है. आलोक 0 लादूलाल बिराणी, विजयनगर परम श्रद्धया पूज्यश्री उमरावकुंवरजी अर्चनाजी म. सा. के दो चौमासे हमारे विजयनगर में हुए । मुझ पर म. सा. की असीम कृपा रही है । मैंने आपके दिव्यगुणों को बहुत निकट से देखा है। आपमें अहं, माया, छल, कपट एवं यश की कामना लेशमात्र भी नहीं है। मुझे लिखने में गर्व का अनुभव होता है कि मेरी दो पुत्रियाँ-पुष्पादेवी एवं मंजुदेवी ने म० सा० श्री के सामने दीक्षा के विचार रखे और समय-समय पर अपनी भावना पत्रों में भी व्यक्त करती रहीं किन्तु म० सा० श्री ने स्पष्ट कहा कि पहले अपने पापको इस योग्य बनायो और अपने माता-पिता के विश्वास को जीतो। जब-जब मैं म. सा. की सेवा में पहँचा म० सा० ने मेरी पुत्रियों द्वारा प्रेषित पत्र मुझे दिखाये और कहा कि अभी उनमें साधना-पथ पर चल पाने की परिपक्वता नहीं है। ___जयपुर में मेरे तीन चार बड़े-बड़े आपरेशन हुए। मेरे मन में निरंतर म० सा० श्री का ही ध्यान रहा जिससे मेरे कष्ट के बन्धन सुगमता से कट गये । आपका ध्यान मुझे बहुत सम्बल प्रदान करता है और आपके दर्शनों से मुझे परम शांति का अनुभव होता है । वास्तव में आप वंदनीय एवं अभिनन्दनीय हैं। अनेक श्रद्धालुओं के साथ कोटि-कोटि वन्दन-अभिनन्दन करता हूँ। आप शतायु हों और ज्ञान के आलोक से जीवों का हृदय आलोकित करते रहें और मुझ जैसे अकिंचन पर दया-दृष्टि बनाये रखें। जब गाँव के मुस्लिम भाइयों ने महासती 'अर्चनाजी' के चातुर्मास के लिए सत्याग्रह किया. उलझन सुलझ गयी... [] जालिम बाबू, स्टेशन मास्टर, किशनगढ़ मेरे हृदय में महासती श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' के प्रति अपार श्रद्धा है । उन्हें मैं अपनी बड़ी बहन एवं सत्पथप्रदर्शिका के रूप में मानता हूँ। वैसे तो मैं शिवजी का भक्त हूँ लेकिन म० सा० श्री के सान्निध्य से जैनधर्म में भी विश्वास Jain Education International For Private & Personal Use Only wwwgelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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