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________________ गुरुजाप के बिना जीवन उस पुष्प के समान है जिसमें सुगंध नहीं है. स्वप्न में सन्देश । कुमारी मंजु भण्डारी, खाचरौद पूजनीया गुरुणी श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म० सा० के दिव्य व्यक्तित्व ने मेरे जीवन को इतना अधिक प्रभावित किया है कि मैं जब तक आपके नाम का जाप न कर ल मेरा किसी कार्य में मन नहीं लगता है। मझे आज भी वह स्वप्न याद है जब गुरुणी सा० ने दर्शन देकर ध्यान की विधि बतलाई । मैं प्रातः आपकी सेवा में पहुँची और स्वप्न की बात बतलाई । म० सा० श्री ने पुनः मुझे स्वप्न के अनुरूप ध्यान की पद्धति के विषय में समझाया और मैं नियमित रूप से इसमें रुचि लेने लगी। मुझे अटल विश्वास है कि मैं आपके आशीर्वाद से योगध्यान के मार्ग पर आगे बढुंगी। भाई राजेन्द्र जी महासतीजी की कृपा से अनेक विघ्न-बाधाओं से बच गये. क्रोध से अक्रोध । राजेन्द्रकुमार श्रीश्रीमाल, (केराफ) खाचरौद NR संत का जीवन उस वक्ष की भांति होता है जो अपने फल स्वयं न खाकर अन्य को देता है, उस सरिता के समान होता है जो दूसरों के लिए जल का संचय करती है । मैं स्वयं को परम सौभाग्यशाली मानता हूँ कि सन् १९८६ में हमारे नगर में मालवज्योति प्रवचनशिरोमणि श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म० सा० का चातुर्मास हुआ । मैं पहले संत महात्माओं के पास जाने के लिए कभी इच्छुक नहीं रहता था। पूर्वजन्म के पुण्योदय से मैं इन्दौर निवासी भाई देवेन्द्रजी के साथ महासतीजी के दर्शनार्थ गया। प्रथम दर्शनलाभ से ही मैं इतना आह्लादित हुआ कि प्रतिदिन स्थानक जाने लगा, मेरे मन में उत्पन्न जटिल से जटिल प्रश्नों का समाधान आप सरल ढंग से कर देतीं। आपके प्रति श्रद्धा बलवती होती रही। अनेक बार अापने स्वप्न में दर्शन देकर मेरी समस्याओं का हल किया। एक बार मैंने स्वप्न में महाराजश्री से अनुरोध किया कि मैं 'अग्निपथ' तो पढ़ चुका हूँ, मुझे कोई अन्य पुस्तक दीजिये । प्रातः दर्शन के लिए गया तो मैं हैरान हो गया, आपने मुझे 'यात्मविश्वास' नामक पुस्तक देते हए कहा कि इसे पढ़ना। . मैं उग्र और क्रोधी स्वभाव का था। एक दिन आपने मुझे क्रोध का दुष्प्रभाव समझाते हुए कहा कि "हम क्रोध किसी पर नहीं, अपने ऊपर ही करते हैं । क्रोध से हमारा चेहरा राक्षस की भांति भयानक हो जाता है, नसें खिंच जाती हैं और हमारा लहू जलने लगता है । जिस क्रोध से किसी को लाभ नहीं होता, उसका परित्याग ही कर देना चाहिए।" Jain Education International For Private & Personal Use Only w inelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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