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________________ वाणी का वैभव | १६१ खाचरौद में पदार्पण किया। जैसे पुष्प जहाँ भी खिलता है उसकी महक चारों ओर फैल जाती है वैसे ही श्री अर्चना जी म. सा. जहाँ-जहाँ जाते हैं उनकी कीर्ति चतुर्दिक फैल जाती है । मैंने अनेक भक्तों से उनकी यशोगाथा सुनी थी। प्रथम दर्शनलाभ से ही मैं उनका भक्त बन गया। महासतीजी से मुझे जो आत्मीयता मिली उसकी अभिव्यक्ति शब्दातीत है । गत कई वर्षों से मैं अनेक चिन्तायों से ग्रस्त था, आपने मेरे दुःख की कहानी मित्रवत् सुनी और मेरे निराश हृदय में आशा का संचार किया। मुझे लगा जैसे मैं अन्धकार से निकलकर उजाले में आ गया हूँ। आपके आदेशानुसार मैंने पूज्य श्री जयमलजी म. सा० के नाम की माला का जाप प्रारम्भ कर दिया, परिणामतः प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी अनुकूल होने लगीं। अब मैं सुखी एवं सन्तुष्ट हूँ, मेरी कामना है मैं उस पथ की रज बनूं जहाँ आपके दिव्यचरण पडें । महासती जी के प्रवचनों से प्रभावित होकर अनेक अजैन भी जैन-जीवनपद्धति को धारण कर चुके हैं. वाणी का वैभव श्रीमती सावित्रीदेवी पाराशर, धनोप अमीरों की तो सभी सहायता करते हैं पर जो दुखी और गरीब की सहायता करे वह महान होता है। महासती श्री उमरावकुंवर 'अर्चना' जी म. सा० का हृदय परदुख से तुरन्त द्रवित हो जाता है। उनका मुझ पर बड़ा उपकार है। मेरे पति के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने पर आपने मुझे और मेरे बच्चों को जो अपनत्व दिया उससे हमारे कष्ट और प्रभाव दूर हो गये। मेरे श्वसुर श्री माधवप्रसाद 'जैन प्रकाश' और 'तरुण जैन' आदि पत्र-पत्रिकाओं के प्रचारक थे। वह महासतीजी के जीवन से सम्बन्धित अनेक अनुभूत दिव्य घटनायें सुनाते थे। उनके द्वारा श्रुत एक घटना इस प्रकार है-अनन्तनाग और पहलगांव के बीच जनकपुर नाम का एक गांव है जहाँ अधिकांश घर मुस्लिमों के हैं । जब हमारी बस पहलगांव जा रही थी तो एक मस्जिद के बाहर मैंने लगभग ७०-८० व्यक्तियों को मुखपत्ती बाँधे नमाज पढ़ते हुए देखा विस्मित होकर मैं बस से यह सोचकर उतर गया कि एक मस्जिद के पास इतने जैन संत ! वहाँ जाकर देखा तो ज्ञात हुआ यह सभी इस्लामधर्म को मानने वाले हैं। चार दिन पूर्व ही जैन साध्वी श्री उमरावकुंवरजी अपनी शिष्याओं के साथ यहाँ ठहरी थीं और ज्ञानोपदेश में खुदा की इबादत करते समय मुख पर कपड़ा रखने का रहस्य बतलाया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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