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द्वितीय खण्ड / १४४
इन्द्रजीतजी आप मांगलिक सुनकर तत्काल दिल्ली के लिये रवाना हो जावें। मैं महासतीजी के इस आदेश को सुनकर अवाक रह गया। मैंने आगरा तक साथ चलने का संकल्प दोहराया। इस पर महासतीजी ने कहा कि आपको वही करना है जो कहा गया है । इसके आगे मुझे कुछ भी कहने का साहस नहीं हुआ और मांगलिक सुनकर तत्काल दिल्ली के लिये रवाना हो गया । मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। बस में चुपचाप बैठा मैं बाहर की ओर देखे जा रहा था । बस अपनी गति से आगे बढ़ती चली जा रही थी। तभी अचानक सड़क पर एक ओर मुझे महासती जी खड़े दिखाई दिये । मैंने तत्काल बस रुकवाई और नीचे उतर गया। मेरे नीचे उतरने के बाद बस चल दो। मैं उस स्थान पर जा पहुँचा जहाँ मुझे महासतीजी दिखाई दिये थे । किन्तु यह क्या ! वहाँ तो कोई भी नहीं था। मुझे पश्चाताप होने लगा । उतरते समय मुझे ड्राईवर ने भी मना किया था किन्तु उस समय मैंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया था। लेकिन अब क्या हो सकता है ? जहाँ मैं उतरा था वहाँ से थोड़ी देर बाद दूसरी बस पर सवार होकर सदर बाजार दिल्ली पहुंचा। सदर बाजार दिल्ली में ही मेरी दूकान थी । अपनी दूकान पर पहुंच कर मैंने देखा कि दूकान के ताले पर दूसरा ताला लगा हुआ है। यह देखकर मैं आश्चर्य में पड़ गया। पड़ोसी व्यापारी भाइयों से पूछने पर जानकारी मिली कि मेरे जीजाजी ने यह ताला लगवाया है और दस-बारह गुण्डों को लेकर मेरे घर गये हैं। पहले जीजाजी और हमारे बीच व्यापारिक सम्बन्ध था। बीच में कुछ वर्षों से परस्पर अनबन चल रही थी। जिसने आज यह रूप धारण कर लिया था। मैं रात भर दुकान पर ही रहा, प्रातः होने पर घर गया। सारी स्थिति का पता चला! मैंने तत्काल निर्णय कर लिया कि क्या करना है । मैंने जीजाजी को समझौते के समाचार भेजे। उन्होंने जितना जो माँगा देकर समझौता कर लिया और फिर पत्नी और बच्चों को लेकर तीसरे दिन महासतीजी के दर्शन करने आगरा जा पहुँचा। मैंने तीन दिन में कुछ भी खाया पीया नहीं था। महासतीजी के दर्शन कर संतोष किया। महासतीजी मेरी स्थिति देखकर तनिक मुस्करा भर दिये । कुछ पूछा नहीं। मैंने ही उन्हें सारी स्थिति बताई और बताया कि किस प्रकार खतरे से बचा। उस दिन बस से उतर कर मैं सदर बाजार न पहुँचता और कमलानगर अपने आवास पर पहुँच जाता तो न जाने क्या होता । महासतीजी की कृपा से ही मैं बच पाया। ऐसा मैं मानता हूँ। आपने तो केवल यही कहा कि जब व्यक्ति के अपने पुण्य प्रबल होते हैं और गुरुदेव की कृपा होती है, तो सभी प्रकार के संकट टल जाते हैं और आनन्द छा जाता है । ऐसे प्रसंगों से सहज ही जीवन में श्रद्धा की सुरसरिता प्रवहमान हो जाती है।
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