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द्वितीय खण्ड / १३४
सा० 'अर्चना' से भगवान पार्श्वनाथ की निसरणी नामक स्तोत्र सनाने का प्राग्रह किया । बहनों के अत्यधिक प्राग्रह करने पर आपने स्तोत्रपाठ प्रारम्भ कर दिया । उस समय मेरी धर्मपत्नी श्रीमती धापुकुंवर भी वहीं स्थानक में उपस्थित थी। महासतीजी स्तोत्रपाठ कर रही थीं और उपस्थित बहनें सुन रही थीं कि अचानक न जाने कहाँ से एक विशालकाय काला सर्प पाकर कुंडली डालकर महासती जी के घुटने के पास बैठ गया। अपना फन उठाकर वह भी तन्मय हो कर स्तोत्र का पाठ सुन रहा था। बहनों की दृष्टि जैसे ही उस सर्प पर पड़ी, वे सभी साँप-साँप चिल्लाते हुए नीचे की ओर भाग चलीं। महासतीजी अविचलित भाव से वहीं खड़ी हो गयीं।
कुछ बहनों ने देखा कि आपके खड़े होते हो वह सर्प भी खड़ा हो गया। सर्प के स्थानक में महासतीजी के पास होने की बात बाहर बैठे हम लोगों ने जैसे ही सुनी दौड़कर स्थानक में जा पहुँचे। किन्तु जब तक हम लोग वहाँ पहुँचे तब तक नागराज अदृश्य हो चुके थे। लगभग दस पन्द्रह मिनिट तक नागराज वहाँ रहे । इस अवधि में महासतीजी पूर्णतः निडर और अविचलित रहे। बाद में गुरुणीजी म. सा. श्री उमरावकंवरजी म. सा० ने चर्चा के दौरान बताया कि रविवार और मंगलवार को इस स्तोत्र का पाठ नहीं किया जाता है। जिन बहनों ने स्तोत्र पाठ सुनाने का अत्यधिक आग्रह किया था, उन्होंने क्षमायाचना की और संकल्प किया कि भविष्य में वे कभी इस प्रकार का आग्रह नहीं करेंगी। इस घटना के पश्चात् महासतीजी के प्रति हमारी श्रद्धा और अधिक बढ़ गई।
सन्तों का आशीर्वाद कलह और सन्तापों से मुक्ति दिलवाता है. रोग और कलह से छुटकारा
0 गोपीचन्द लोढा, थारा (अजमेर)
मैं लगभग १६-१७ वर्ष से बीमार था। अनेक डॉक्टरों, हकीमों आदि से उपचार करवाया किन्तु कोई लाभ नहीं हुअा । परिवार के लोगों ने अन्त में यह निष्कर्ष निकाला कि मेरे शरीर में कोई प्रेतबाधा है। अस्वस्थता के मुझे दौरे पड़ने लगे । तीन-तीन चार-चार दिन तक मेरी बत्तीसी जुड़ी रहती थी। कई दिनों तक कुछ भी खाने की इच्छा नहीं रहती थी। ऐसी स्थिति में मैं अपने जीवन से हताश और निराश हो चुका था।
__ यह मेरा सौभाग्य ही है कि पूजनीया महासतीजी उमरावकवरजी 'अर्चना' महाराज सा० का चातुर्मास अजमेर स्थित लाखन कोठरी में हुया । मुझे जब
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