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' अर्चनार्चन | २५
permansurta
श्री पं. शोभाचन्द्रजी भारिल्ल एवं श्री देवकुमारजी जैन ने ग्रंथ के प्रूफ संशोधन का भार वहन कर शुद्ध मुद्रण हो सके ऐसा प्रयास किया है। इसलिये मैं इनके प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ।
प्रस्तुत ग्रंथ के मुद्रण में अनावश्यक विलम्ब हुआ है। इसके लिये कारण तो अनेक हैं किंतु उनकी चर्चा न करते हुए सीधे-सीधे यह स्वीकार करता हूँ कि विलम्ब हुआ है। विषम परिस्थितियों में वैदिक यंत्रालय, केसरगंज, अजमेर के व्यवस्थापक श्री सतीशचन्द्रजी शुक्ल तथा वहाँ के अन्य कार्यकर्ताओं ने ग्रंथ के मुद्रण कार्य को सम्पन्न किया, इसके लिये वे भी धन्यवाद के पात्र हैं।
यहाँ मैं एक बात यह कहना प्रासंगिक ही समझता हूँ कि श्वेताम्बर स्थानकवासी जैनसमाज में किसी महासतीजी के सम्मान में अभिनन्दन-ग्रंथ प्रकाशित कर उनके पावन चरणों में समर्पित करने का सर्वप्रथम विचार हमारे मस्तिष्क में ही उत्पन्न हुप्रा । भले ही उसे समपित करने में हम पिछड़ गए हों। जब हमने अपने प्रस्तावित ग्रंथ की रूपरेखा प्रसारित कर दी तभी कुछ अन्य स्थानों पर भी इस प्रकार के अभिनन्दन-ग्रंथ के प्रकाशन की योजनायें सामने आई। यह भी हमारे लिये प्रसन्नता की बात है।
इस ग्रंथ में जो कुछ अच्छा बन पड़ा, उसका श्रेय पूजनीया महासतीजी के साधनामय व्यक्तित्व, उनके शिष्य परिवार और सम्पादक-मण्डल को है। जो कुछ कमी और त्रुटियां रही हैं उसका उत्तरदायित्व मैं अपने ऊपर लेता हूँ।
___ अंत में मेरी यही अपेक्षा है कि जिस प्रकार का स्नेह, सहयोग इस अवसर पर सभी ओर से मिला, वही स्नेह, सहयोगभाव भविष्य के लिये भी बना रहे। इन्हीं अपेक्षाओं के साथ
विनीत
तेजसिंह गौड़ उज्जैन (म० प्र०) भाद्रपद शुक्ला त्रयोदशी, सं० २०४५ दिनांक २४ सितम्बर, १९८८
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
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