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बहुआयामी व्यक्तित्व
। अजित मुनि 'निर्मल'
सहज एवं सारल्य जो है, प्रथम परिचय में ही स्नेह तथा सौजन्य वर्षाती कोमलवाणी अपना अमिट प्रभाव स्थापित कर देती है । परिचित तो क्या अपरिचित को भी जो कभी ऐसा अहसास नहीं होने देती कि वह उनके प्रथम बार ही दर्शन कर रहा है। काश्मीर में जिन्होंने जैनधर्म की पताका को फहराया और अनेकानेक जैन-जनेतरों को अपना ही नहीं जैनधर्म का परम श्रद्धालु बनाया ऐसी साध्वीरत्न, ध्यानयोग की परमाराधिका, प्रवचन शिरोमणि उच्चकोटि की साधिका महासती श्री उमरावकुंवरजी म. स. 'अर्चना' के नाम से आज जैनसमाज तो क्या अजैन समाज भी अपरिचित नहीं है । ___आपके जीवन की कुछ विशिष्टतायें स्पष्ट दिखाई देती हैं। जिन्हें विशिष्टगुणों की संज्ञा भी दी जा सकती है। यथा-विनम्रता, सरलता, उदारता, दृढता, सहिष्णुता, समन्वयवादिता, समता-वात्सल्यता, धैर्य, निर्भीकता, साहस, दया, क्षमा, करुणा एवं अध्ययन-अध्यापन-दक्षता आदि-आदि । क्रोध आपके पास फटकता नहीं और लोभ, माया, मोह से आप कोसों दूर रहती हैं ! ऐसा प्रतीत होता है जैसे आपने कषायों पर विजय प्राप्त कर ली है। आपके आन्तरिक एवं बाह्यजीवन में कोई अन्तर नहीं मिलता है। माया, दंभ, प्रपंच, ढोंग एवं बहुरूपिया की भाँति दुहरा जीवन जीना आपको बिल्कुल सुहाता नहीं है।
वक्तृत्व कला आपका सहज स्वभाव है। आपको वाणी में मधुरता और सहज सुन्दरता के साथ कुछ ऐसा आकर्षण पाया जाता है कि श्रोता उस ओर खिचा चला पाता है और आपके प्रवचन-पीयूष का पान कर झूम उठता है । आप इस तथ्य से भली-भाँति परिचित हैं कि किस समय क्या बोलना है, कैसे बोलना और कितना बोलना ! आपकी वाणी में प्रोज, तेज, शान्ति और प्रवाह है । उस दृष्टि से देखा जाय तो हम आपको वाणी की जादूगर भी कह सकते हैं। ___आपका विहारक्षेत्र अति विस्तृत है। उल्लेखनीय बात यह है कि जहाँ भी आप पधारती हैं अपनी अमिट छाप छोड़ जाती हैं। विदाई के क्षणों में ग्राम नगरवासियों की एक ही चाह होती है-"काश कुछ दिन और आप ठहर जातीं।" किन्तु साधुजीवन की भी कुछ मर्यादायें हैं। निश्चित समय से अधिक अकारण एक स्थान पर नहीं ठहरा जा सकता। इस तथ्य को भी सभी जानते हैं, और तभी तो अश्रुपूरित नेत्रों से आपको विदाई देते हैं।
आपके चतुर्मास जिस भी ग्राम या नगर में हुये वे अविस्मरणीय हो जाते हैं।। आपकी साधना का कुछ ऐसा प्रभाव परिलक्षित होता है कि वह घटना एक
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