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द्वितीय खण्ड /४
) २. आचार्य श्री रायचन्द्रजी म. सा.
जन्मतिथि-पासौज शुक्ला एकादशी, सं. १७९६ माता-श्रीमती नंदादेवी पिता-श्री विजयराजजी धाड़ीवाल जन्मस्थान-जोधपुर, वैराग्य-विवाहपूर्व प्रायोजित वन्दोलों में जीमण
जीमते हुए वैराग्योत्पत्ति । दीक्षातिथि-आषाढ शुक्ला एकादशी, सं. १८१४ दीक्षास्थान-पीपाड़ शहर, दीक्षागुरु-स्वामी श्री गोवर्धनदासजी म. आचार्यपद-नागौर में ज्येष्ठ शुक्ला द्वितीया, सं. १८५३ स्वर्गगमन-माघ कृष्णा चतुर्दशी, सं. १८६८ जोधपुर
आप कुशल प्रवचनकार, सफल कवि एवं अत्यंत ज्ञानवान संतरत्न थे ।
शिष्यपरिवार-आपने सात शिष्यों को दीक्षा प्रदान की थी, किन्तु अधिकृत रूप से पांच शिष्यों की जानकारी मिलती है, जिनके नाम इस प्रकार हैं-१. श्री आसकरणजी २. श्री दीपचंदजी ३. श्री गुमानचन्द्रजी ४. श्री कुशालचंद्रजी और ५. श्री धनरूपजी। ३. आचार्य श्री आसकरणजी म. सा.
जन्मतिथि-मार्गशीर्ष कृष्णा द्वितीया, संवत् १८१२ माता-श्रीमती गीगांदे पिता-श्री रूपचन्दजी बोथर जन्मस्थान-जोधपुर परगनान्तर्गत ग्राम तिवरी (तिमरपुर) । वैराग्य–सगाई के समय वैराग्योत्पत्ति दीक्षातिथि-वैशाख कृष्णा पंचमी, सं. १८३० दीक्षास्थान–ग्राम तिवरी दीक्षागुरु-पू. प्राचार्य श्री जयमल्लजी म. सा. युवाचार्यपद-आषाढ़ कृष्णा पंचमी, संवत् १८५७ प्राचार्यपद-माघ शुक्ला पूर्णिमा, संवत् १८६८ मेड़ता शहर में स्वर्गवास-कार्तिक कृष्णा पंचमी, संवत् १८८२
शिष्यपरिवार-आपके दस शिष्य हुए-१. श्री सबलदासजी म. २. श्री हीराचन्दजी म. ३. श्री ताराचन्दजी म. ४. श्री कपूरचन्दजी म. ५. श्री बुधमलजी म. ६. श्री नगराजजी म. ७. श्री सूरतरामजी म. ८. श्री शिवबक्षजी म. ९. श्री बच्छराजजी म. और १०. श्री टीकमचन्दजी म.।
आचार्य श्री प्रासकरणजी म. अपने समय में एक अच्छे कवि माने जाते थे। ४. प्राचार्य श्री सबलदासजी म. सा.
जन्मतिथि-भाद्रपद शुक्ला द्वादशी, संवत् १८२८
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